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Ashok Bhatia

महाराष्ट्र एवं झारखण्ड विधानसभा चुनाव के लिए बुधवार को मतदान पूरा हो गया। महाराष्ट्र में वोटिंग खत्म होते ही सबकी नजरें दोनों प्रदेशों के एग्जिट पोल पर रही । नतीजे 23 नवम्बर शनिवार को आने हैं। इससे पहले बुधवार शाम को अलग-अलग एजेंसियों के एग्जिट पोल जारी किए है । इन पोल के जरिए ये बताने की कोशिश हो रही है कि किस राज्य में कौन सी पार्टी सरकार बन सकती है या कितनी सीटें जीत सकती है। महाराष्ट्र में चाणक्य के एग्जिट पोल में एनडीए को 130 -138 सीट दे रही है तो पोपुल्स 85 -112। झारखण्ड में चाणक्य एनडीए को 45 -50 सीट दे रहा है और एक्सिस माय इंडिया 25 सीट।

एग्जिट पोल के में किए गए दावे कितने सटीक होते हैं यह बड़ा सवाल है ? यदि हम हरियाणा विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल के नतीजे देखे तो 21 सितंबर 2019 को चुनाव आयोग ने हरियाणा में विधानभा चुनावों का एलान किया था। 90 सदस्यीय विधानसभा के लिए 21 अक्तूबर 2019 को वोट डाले गए थे। 24 अक्तूबर 2019 को मतगणना कराई गई थी। मतदान के बाद तमाम न्यूज चैनलों और चुनाव सर्वे एजेंसियों ने एग्जिट पोल नतीजे में आसानी से भाजपा की सरकार बनती दिखाया था। चार प्रमुख एग्जिट पोल में सत्ताधारी भाजपा को एकतरफा 70 से ज्यादा सीटें जीतते हुए दिखाया गया था। वहीं एक चैनल ने भाजपा को 50 से 65 के बीच सीटें दी थीं।

जब नतीजे आए तो तमाम एग्जिट पोल काफी हद तक गलत साबित हुए। किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। भाजपा को सबसे ज्यादा 40 सीटें मिलीं। कांग्रेस 31 सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी पार्टी बनी। जजपा 10 सीटें जीतने में सफल रही। सात निर्दलीय, इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) एक और हरियाणा लोकहित पार्टी को एक सीट पर जीत मिली। भाजपा ने 10 सीटों वाली जजपा के साथ गठबंधन कर अपनी सरकार बनाई।

हरियाणा के 2024 विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल में इंडिया टुडे-सी वोटर ने कांग्रेस को 50 से 58 सीटें और बीजेपी को 20 से 28 सीटें दी थी। एक्सिस माई-इंडिया ने कांग्रेस को 53 से 65 सीटें और बीजेपी को 18 से 28 सीटें दी। भास्कर रिपोर्टर्स पोल में कांग्रेस को 44 से 54 और बीजेपी को 19 से 29 सीटें दिखाई गई थीं। रिपब्लिक मैट्रिज ने कांग्रेस को 55 से 62 और बीजेपी को 18 से 24 सीटें दी। ये कुछ एग्ज़िट पोल हैं जिनमें हरियाणा में कांग्रेस की स्पष्ट बहुमत से सरकार बनने की बात कही गई थी. लेकिन जब नतीजे आए तो इसके ठीक उलट हुआ। जबकि नतीजों में बीजेपी को 48 और कांग्रेस को 37 सीटें मिली। 90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 46 है। इन चुनावी नतीजों ने एक बार फिर एग्ज़िट पोल और उनको करने वाली एजेंसियों की विश्वसनीयता को सवालों के घेरे में ला दिया।

हालांकि जम्मू-कश्मीर के नतीजे एग्ज़िट पोल के इर्द-गिर्द रहे। यहां नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन को बहुमत मिला है। 2014 में जम्मू-कश्मीर राज्य में पिछले विधानसभा चुनाव हुए थे। तब 87 सीटों वाली विधानसभा के लिए 25 नवंबर से 20 दिसंबर तक पांच चरणों में मतदान हुआ था। 2014 के एग्जिट पोल में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने का अनुमान जताया गया था। जम्मू कश्मीर में सत्ता में किसकी वापसी होगी, इसका अनुमान स्पष्ट नहीं था। हालांकि, उस वक्त 87 सीटों वाले जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और बीजेपी दोनों के बीच कांटे की टक्कर दिखाई गई थी। इन एग्जिट पोल्स में बताया गया था कि पीडीपी सबसे बड़ी पार्टी बनती सकती है, जबकि भाजपा दूसरी बड़ी पार्टी के तौर पर आ सकती है। वहीं एग्जिट पोल्स में जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व की नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार को बड़ी हार का सामना करते हुए दिखाया गया था।

जम्मू कश्मीर प्रदेश में 2014 के एग्जिट पोल्स काफी हद तक सही साबित हुए थे। 2014 में जम्मू-कश्मीर राज्य में चुनाव हुए थे। विधानसभा चुनाव के परिणाम 23 दिसंबर 2014 को घोषित किये गये थे। 87 सदस्यीय विधानसभा में महबूबा मुफ्ती की जम्मू-कश्मीर पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) को सबसे ज्यादा 28 सीटें मिलीं। वहीं, दूसरे स्थान पर भाजपा थी जो 25 सीटों पर जीतने में सफल रही। फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस को 15 जबकि कांग्रेस को 12 सीटों पर जीत मिली। तीन सीटों पर निर्दलीय तो चार सीटों पर अन्य छोटे दलों को जीत मिली। नतीजों से साफ था कि कोई भी दल बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच सका।

सवाल यह है कि एग्जिट पोल क्यों पूरी तरह फेल साबित होते हैं ? एग्जिट पोल के दावों का ज्यादा वैज्ञानिक आधार इसलिए भी नहीं माना जाता क्योंकि ये कुछ सौ या कुछ हजार हजार लोगों से बातचीत कर तैयार किए जाते हैं। इसीलिए इन्हें हकीकत से दूर माना जाता रहा है। जब कोई मतदाता अपना मत देकर मतदान केन्द्र से बाहर निकलता है तो एग्जिट पोल कराने वाली एजेंसियां उससे उसका रूझान पूछ लेती हैं। अधिकतर एग्जिट पोल परिणामों को प्रायः यह समझ लिया जाता है कि ये पूरी तरह सही ही होंगे किन्तु ऐसा समझकर लोग प्रायः यह भूल जाते हैं कि ये केवल अनुमानित आंकड़े ही होते हैं और कोई जरूरी नहीं कि मतदाता ने सर्वे करने वालों को सच्चाई ही बताई हो। सर्वे के दौरान मतदाता बहुत बार सही जवाब नहीं देते। दुनियाभर में अधिकांश लोग एग्जिट पोल को अब विश्वसनीय नहीं मानते और यही कारण है कि कई देशों में इन पर रोक लगाने की मांग होती रही है।

मतदाताओं की राय जानने के लिए ‘ओपिनियन पोल’ और ‘पोस्ट पोल’ भी किए जाते हैं। एग्जिट पोल हालांकि ओपिनियन पोल का ही हिस्सा होते हैं किन्तु ये मूल रूप से ओपिनियन पोल से अलग होते हैं। ओपिनियन पोल में मतदान करने और न करने वाले सभी प्रकार के लोग शामिल हो सकते हैं। ओपिनियन पोल मतदान के पहले किया जाता है जबकि एग्जिट पोल चुनाव वाले दिन ही मतदान के तुरंत बाद किया जाता है। ओपिनियन पोल के परिणामों के लिए चुनावी दृष्टि से क्षेत्र के प्रमुख मुद्दों पर जनता की नब्ज टटोलने का प्रयास किया जाता है। ओपिनियन पोल को ही ‘प्री-पोल’ भी कहा जाता है। पोस्ट पोल प्रायः मतदान की पूरी प्रक्रिया के समापन के अगले दिन या फिर एक-दो दिन बाद होते हैं। अक्सर माना जाता रहा है कि पोस्ट पोल के परिणाम एग्जिट पोल के परिणामों से ज्यादा सटीक होते हैं।

1998 में चुनाव पूर्व सर्वे अधिकांश टीवी चैनलों पर प्रसारित किए गए और तब ये बहुत लोकप्रिय हुए थे। कुछ राजनीतिक दलों द्वारा इन पर प्रतिबंध लगाए जाने की मांग पर 1999 में चुनाव आयोग द्वारा ओपिनियन पोल तथा एग्जिट पोल पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। एक अखबार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के फैसले को निरस्त कर दिया। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एक बार फिर एग्जिट पोल पर प्रतिबंध लगाए जाने की मांग उठी। तब चुनाव आयोग निर्देश पर जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 में संशोधन कर यह सुनिश्चित किया गया कि चुनावी प्रक्रिया के दौरान अंतिम वोट पड़ने तक किसी भी रूप में एग्जिट पोल का प्रकाशन या प्रसारण नहीं किया जा सकता।

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