millet farming
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आरा: केंद्र और बिहार सरकार द्वारा लगातार किसानों से प्राचीन कृषि पद्धति की तरफ वापस लौटने और स्वस्थ भारत के निर्माण में अपना योगदान देने को लेकर किये जा रहे प्रयासों का सार्थक नतीजा भी देखने को मिल रहा है. अब किसान रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक दवाओं का उपयोग कर उपजे अनाजों से बढ़ती बीमारियों के कारण दूरी बनाने लगे हैं. भोजपुर और शाहाबाद क्षेत्र के किसानो ने भी अब रासायनिक खेती से दूरी बनानी शुरू कर दी है. केंद्र सरकार द्वारा देश में श्रीअन्न के तहत मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने का असर रोहतास के किसानो पर देखने को मिल रहा है.

भोजपुर और बक्सर में मोटे अनाजों की खेती पिछले साल से ही शुरू की गई है तो अब रोहतास के किसान भी मोटे अनाजों की खेती शुरू कर कृषि के क्षेत्र में बड़े बदलाव की तरफ आगे बढ़ चले हैं. करीब चार दशक बाद रोहतास जिले के रोहतास प्रखंड क्षेत्र स्थित रसूलपुर पंचायत के नावाडीह गांव के किसानो ने मोटे अनाज की खेती शुरू की है. इन्ही किसानो मे से एक किसान को राज्य सरकार के कृषि विभाग ने मोटे अनाज की बेहतर तरिके से की गई खेती को लेकर बधाई दी है और अपने वेबसाईट पर इसकी चर्चा की है. रोहतास जिले के ये किसान भोला कुशवाहा हैं जिनकी प्रशंसा कृषि विभाग ने की है. किसान भोला कुशवाहा ने अपने खेत में मोटे अनाज की उपज शुरू कर दी है.इन्होने इस वर्ष एक बीघा जमीन में मडुआ रागी की खेती कर मोटे अनाज की उपज करने वाले किसानो की सूची में अपने जिले, राज्य, गांव का नाम चर्चा मे ला दिया है.

राज्य के कृषि विभाग ने अपनी वेबसाइट पर भोला कुशवाहा की इस पहल का जिक्र करते हुए बधाई दी है. भोला कुशवाहा ने बताया कि गत दिनों ट्रेनरों ने उन्हें बुलाकर मोटे अनाज के बारे जानकारी दी. इसका लाभ और खेती करने के उपाय बताये. इससे वे काफी प्रभावित हुए. इसके बाद उन्हें ट्रेनिंग के लिए पटना भेजा गया. जहां उन्हें तीन दिन तक मडुआ की रोटी और मडुआ का ही भात खाने को मिला. उन्हें यह भोजन बहुत आनंददायक लगा. उसके बाद उन्होंने इसकी खेती करने की ठान ली.उन्होंने बताया कि भविष्य में उन्ह्र खाने के अलावा अगर उपज का सही मूल्य मिलेगा तो खेती का विस्तार बड़े स्तर पर करेंगे.

रोहतास के प्रखंड कृषि पदाधिकारी राजेश कुमार श्रीवास्तव और कृषि समन्वयक जितेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए प्रखंड में चार क्लस्टर बनाये गये हैं. पहले जमुआ, दूसरे दियाडीह में मडुआ, तीसरे तेलकप में बाजरा और चौथे नावाडीह में ज्वार की खेती के लिए किसानों को जागरूक किया जा रहा है. एक क्लस्टर में 25 किसान हैं. कुल मिलाकर सौ किसान हैं. किसानों को बीज के अलावा एक एकड़ जमीन पर खेती करने के लिए दो हजार रुपये का अनुदान भी दिया जा रहा है. संझौली डब्ल्यूएचओ और कृषि वैज्ञानिकों के परामर्श पर सरकार देशवासियों को स्वस्थ व सुंदर रहने के लिए मोटा अनाज खाने के लिए जागरूक कर रही है. इसी कड़ी में कृषि विज्ञान केंद्र रोहतास के बिक्रमगंज की केंद्र प्रभारी वरीय वैज्ञानिक डॉ. शोभा रानी ने बताया कि मृदा वैज्ञानिक रामाकांत सिंह, वनस्पति वैज्ञानिक डॉ रतन कुमार, वरीय वैज्ञानिक आरके जलज के सहयोग से मक्का व मड़ुआ की खेती करने के लिए किसानों को मुफ्त बीज दिया जा रहा है. डॉ. शोभा रानी ने बताया कि इस वर्ष 40 से 50 एकड़ में मडुआ की खेती सासाराम प्रखंड के धवदाड, सिकरिया, रंगपुर सहित आधे दर्जन गांवों में की जा रही है. उन्होंने बताया कि पिछले साल तिलौथू प्रखंड के अमरा गांव के किसानों से मडुआ की खेती डेढ़ एकड़ में करायी गयी थी.

डॉ शोभा रानी एवं वरीय कृषि मृदा वैज्ञानिक डॉ. रमाकांत सिंह ने बताया कि मडुआ की खेती के लिए प्रति एकड़ दो किलो बीज लगता है. इस वर्ष जिले के किसानों को 100 किलो मडुआ का बीज मुफ्त में दिया गया है. मडुआ की खेती के लिए मात्र दो बार पटवन करनी पड़ती है. 21 दिनों में बिचड़ा तैयार हो जाता है. सरकार की ओर से किट और दवा मुफ्त में दी जा रही है. इसके अलावा दो हजार रुपये प्रोत्साहन राशि भी दी जा रही है.

मडुआ की खेती से मुर्गी चारा, हरा चारा व साइलेज बनाकर पशुओं को खिलाया जाता है. औषधीय गुणों से परिपूर्ण मडुआ पोषक तत्व और रेशा से परिपूर्ण होता है. इसे लोग रोटी और चावल के रूप में उपयोग करते हैं. इससे केक, पुडिंग और मिठाइयां बनती हैं. सबसे बड़ी बात है कि इसको भोजन में इस्तेमाल से कोलेस्ट्रॉल स्तर को नियंत्रित करने, हड्डियों को मजबूत बनाने और मधुमेह रोग में काफी लाभ मिलता है.

फिलहाल शाहाबाद के इन इलाकों में किसानो द्वारा शुरू की गई मोटे अनाजों की खेती से बिहार और देश में खाद्यान के क्षेत्र में क्रांति की शुरुआत हुई है और आने वाले दिनों में किसान प्राचीन कृषि पद्धति की तरफ लौटते हुए दिखेंगे. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और बिहार की नीतीश कुमार सरकार के प्रयासों से सरकारी स्तर पर किसानो को मोटे अनाज की खेती की तरफ लौटने के लिए दी जा रही सुविधाएँ आने वाले दिनों में स्वस्थ देश और समृद्ध बिहार के निर्माण की नई कहानी लिखने को तैयार है.

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