गुमनामी के अंधेरे में स्वतंत्रता सेनानी स्व0 अयोध्या सिंह मौजूदा सरकार भी उनके योगदान पर नहीं दे रही ध्यान
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रवि कुमार: पूरा देश आजादी का 78 वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी में जुटा है। पूरा देश स्वतंत्रता दिवस को एक ऐतिहासिक उत्सव के रूप में मनाने जा रहा है. कार्यक्रम के दौरान हर घर में तिरंगा फहराने जा निर्णय लिया गया है। भारत सरकार के द्वारा नए गाइड लाइन जारी किये जा रहे हैं ताकि देश के प्रति लोगों में मजबूत विचार बन सके. वावजूद ऐसे कई लोग हैं या रहे जो आज भी गुमनामी के अंधेरे में रहे। कई लोग गुमनामी में ही स्वर्ग को प्राप्त हो गए। ऐसे लोग में ही एक थे हरनौत प्रखण्ड के जोरारपुर गांव निवासी स्व केश्वर सिंह के बड़े पुत्र स्वतंत्रता सेनानी स्व अयोध्या सिंह। बाढ़ स्थित हाई स्कूल से उन्होंने मैट्रिक तक की शिक्षा ली थी। अंग्रेजी भी बोलते व पढ़ते थे। उन्होंने आजादी की लड़ाई में बड़ी भूमिका निभाई थी। गांव के बुजुर्गों की मानें तो वे महात्मा गांधी के करीबी थे। तब कई बार आजादी के लिये महात्मा गांधी के साथ कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिये थे। ग्रामवासी बताते हैं कि वे तीन भाई थे। वे सबसे बड़े थे। बड़े का नाम अयोध्या सिंह, मंझले भाई का नाम राजेंद्र सिंह एवं छोटे भाई का नाम देवेंद्र सिंह था। बड़े भाई अयोध्या सिंह शुरु से देशभक्त थे। वे आजादी की लड़ाई में शारीरिक रूप के साथ-साथ आर्थिक रूप से भी मदद करते थे। उनका ससुराल प्रखंड क्षेत्र के ही बिरजूमिल्की के चखामिन्द गांव में था। उनकी धर्मपत्नी का नाम जानकी देवी था। उनका कोई वारिश नहीं था। वे भी पति की देश भक्ति से काफी खुश थीं और उन्हें देश भक्ति के लिए प्रेरित करती थी। सरकार के उस समय की लापरवाही के कारण उनका नाम गुमनाम रह गया।

उनके भतीजा राम नगीना सिंह ने बताया कि बड़े बाबूजी बताते थे कि गांधीजी के बिहार के चंपारण यात्रा सहित कई अन्य कार्यक्रमों में भी वे सम्मिलित हुए थे। अंग्रेज भारत छोड़ो आंदोलन के समय विरोध स्वरूप रेलवे पटरी भी उखाड़े थे। उन्हें तत्काल ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा कई बार महीनों महीनों जेल में बंद रखा गया था। उन्हें तब के बांकीपुर स्थित एवं फुलवारीशरीफ स्थित कारागार में महीनों महीनों बंद रखा गया था। आजादी के बाद भारत सरकार के द्वारा स्वतंत्रता सेनानी को मिली सहायता राशि लेने से मना कर दिया था। उनका कहना था कि हम अपनी मां को बचाने के लिए की गई सेवा का क्या मूल्य लेंगे ? इसलिए उन्होंने अपने जिंदगी गुमनामी में ही बिता दिया। वे हमेशा अपने गांव एवं आसपास के गांव के युवाओं को लेकर अंग्रेज भारत छोड़ो का नारा लगाते हुए प्रखंड के कई जगहों पर जाते थे।

बड़े-बड़े कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेकर अंग्रेज के खिलाफ आवाज उठाते थे। वे महात्मा गांधी के भी साथ कई कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए जाते थे। वे उस समय प्रतिदिन हिंदी अखबार भी मंगवाते थे, ताकि देश दुनिया की खबर पर नजर रखा जा सके। प्रखंड के कई लोगों का नाम स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सामने आया था, जिनका हरनौत प्रखंड परिसर स्थित एक शिला पर नाम अंकित है लेकिन आजादी की लड़ाई में जुटे स्वर्गीय अयोध्या सिंह का नाम आज इतिहास के पन्नों में दफन हो गया। तत्कालीन वस्ती पंचायत के सरपंच रहे उनका पुतोह संध्या देवी ने बताया कि जब वे जेल में थे तो उनके पीछे में ही छोटे भाई स्व देवेंद्र सिंह का शादी हुआ था।

जब वे जेल से आये तो रोते थे। कहते थे कि बेटी था जो पीछे में शादी कर दिया। आते तब शादी कर देना। पडोसी रविंद्र सिंह ने बताया कि उनके दादा स्व चेथरू सिंह अपने भतीजा स्वतंत्रता सेनानी स्व अयोध्या सिंह के साथ तीर्थ पर गए थे। दादा जी कहते थे कि उन्हें अन्य जगहों कि जानकारी नहीं थी. जिसके चलते वे दोनों अंग्रेजी हुकूमत के दौरान सामाजिक, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक जगहों का भ्रमण करते थे। गया, चित्रकूट, अयोध्या, जयपुर व जोधपुर भी घूमने गए थे। भुआंदोलन के जनक रहे विनोबा भावे से प्रभावित होकर वे जरूरतमंदों को भूमि दान भी किया था। अपने गांव में विद्यालय भवन निर्माण के लिए भूमि दान दिया था। हालांकि इसे लेकर उनका प्रपौत्र रवि कुमार के द्वारा स्थानीय विधायक श्री हरिनारायण सिंह एवं सांसद कौशलेंद्र कुमार को प्रखंड परिसर स्थित शिलापट्ट में नाम लिखने को लेकर आवेदन दिया गया था। जनप्रतिनिधियों व नौकशाहों के उदासीन रवैया के कारण मामला आज भी अधर में लटका है।

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