rahul gandhi
- Advertisement -
ashok bhatia
Ashok Bhatia

हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार से गठबंधन में उसका बार्गिन पॉवर कम पड़ता दिख रहा है । उत्तरप्रदेश में राहुल गाँधी अपनी तेजी से उड़ती पतंग देख सहयोगियों पर दबाव बनाने की कोशिश करने लगे थे। वहां 10 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होना है। कांग्रेस सपा से 50-50 सीट शेयरिंग का फॉर्मूला चाहती है यानी 5-5 सीटों पर दोनों दल लड़ें लेकिन अखिलेश यादव कांग्रेस को 2 से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं हैं। माना जा रहा है कि अखिलेश यादव ,राहुल गांधी से हरियाणा और जम्मू कश्मीर का बदला लेने की तैयारी कर रहे हैं ।

समाजवादी पार्टी अपना विस्तार करना चाहती है। इसी कोशिश में अखिलेश यादव ने हरियाणा और जम्मू कश्मीर में राहुल गांधी से सीट की मांग की थी। लेकिन राहुल गांधी ने एक भी सीट नहीं दी। मजबूरी में अखिलेश यादव ने जम्मू कश्मीर में अपने दम पर उम्मीदवार उतारे। राहुल गांधी से मिला ये धोखा अखिलेश शायद ही भूले सकें। हरियाणा में इस हार के बाद हो सकता है कि उत्तरप्रदेश के उपचुनाव में वे कांग्रेस को यही सबक सिखाना चाहते हैं। वहीं भाजपा अखिलेश और राहुल की कथित दोस्ती पर कटाक्ष कर रही है। वैसे कांग्रेस ने भी अखिलेश यादव पर दबाव बनाने की रणनीति तैयार कर ली है। उत्तरप्रदेश में कांग्रेस ने सभी 10 सीटों पर प्रभारी और पर्यवेक्षकों की तैनाती कर दी है। कांग्रेस ने 10 सीटों के लिए प्रत्याशियों के आवेदन मंगाने भी शुरू कर दिए हैं। इसके जरिए कांग्रेस ने अखिलेश तक ये संदेश पहुंचाने की कोशिश की है कि वो 10 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है। लोकसभा चुनाव में अखिलेश ने कांग्रेस को 17 सीटें दी थीं, जिसमें कांग्रेस 6 पर जीती थी। इसके बाद कहीं न कहीं अखिलेश यादव के कारण ही य़ूपी में अस्तित्व खोने की कगार पर खड़ी कांग्रेस पार्टी को संजीवनी मिली थी। अब विधानसभा उपचुनाव में भी कांग्रेस, अखिलेश यादव से उसी दरियादिली की उम्मीद जता रही है। साथ ही साथ उन्हें अकेले उपचुनाव लड़ने का तेवर भी दिखने लगी है। अब उसके यह तेवर नरम पड़ जाएंगे ।

इसका तुरंत असर महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के अलावा उपचुनाव पर भी दिख सकता है। इस परिणाम ने सहयोगी दलों के इस अपरोक्ष आरोप को सही साबित किया कि अब भी कांग्रेस को भाजपा से मुकाबले के लिए क्षेत्रीय दलों के सहयोग की जरूरत है। साथ ही जब भी कांग्रेस अकेले भाजपा के सामने आती है वह कमजोर साबित हो जाती है। जम्मू-कश्मीर में जब नेशनल कॉन्फ्रेंस ने गठबंधन को लीड किया तो गठबंधन को जीत मिली।

गौरतलब है कि 2014 से यह ट्रेंड लगातार जारी है। 2023 दिसंबर में इस पर गंभीर बहस हुई थी । कांग्रेस ने अति आत्मविश्वास में मध्य प्रदेश में किसी भी सहयोगी दलों को न सिर्फ सीट देने से इनकार किया बल्कि पार्टी के सीएम उम्मीदवार कमलनाथ ने समाजवादी प्रमुख अखिलेश यादव के लिए उन्हें छोटा नेता बताते हुए टिप्पणी भी की थी। उसी तरह छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने अपने ही सहयोगी दलों पर प्रतिकूल टिप्पणी की। इसके बाद कांग्रेस ने अचानक डैमेज कंट्रोल करने की पहल भी की थी पर बाद में वाही ढ़ाक के तीन पात ।आम चुनाव में भले कांग्रेस ने अपेक्षा से बेहतर प्रदर्शन किया लेकिन उसे उन्हीं राज्यों में अधिक सफलता मिली जहां उसके साथ दूसरे क्षेत्रीय दलों का मजबूत साथ था। मसलन, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी तो महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे का साथ। परिणाम के तुरंत बाद जब हरियाणा चुनाव की बारी आई तो कांग्रेस अकेले लड़ी और उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा।

अधिकतर क्षेत्रीय दल अभी मानते हैं कि वे कितना भी एकजुट हो जाएं, अगर कांग्रेस ने अपनी स्थिति नहीं सुधारी तो इस लड़ाई का मतलब नहीं। इसके पीछे उनका तर्क है कि 2019 आम चुनाव में लगभग 225 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस-भाजपा का सीधा मुकाबला हुआ जिनमें 200 से अधिक सीटें भाजपा ने जीतीं। 2024 आम चुनाव में भी भाजपा ने अधिकतर सीटें कांग्रेस के साथ सीधे मुकाबले में जीतीं। विधानसभा चुनाव में भी हाल के वर्षों में बहुत कम ऐसे चुनाव हुए हैं जहां कांग्रेस ने भाजपा से सत्ता छीनी हो। ऐसा पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश में हुआ था, लेकिन हारी हुई राज्यों की लिस्ट लंबी है। मंगलवार को आए परिणाम के बाद अब क्षेत्रीय दलों का दबाव कांग्रेस पर बढ़ेगा इसमे कोई शक नहीं है।

मंगलवार कोकांग्रेस को इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों से महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली के विधानसभा चुनाव की रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए कुछ सलाह मिली। आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा कि चुनाव में कभी भी अति आत्मविश्वासी नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी चुनाव को हल्के में नहीं लेना चाहिए। हर चुनाव और हर सीट मुश्किल होती है। हरियाणा में यदि समाजवादी व आप पार्टी भी साथ होती तो चुनाव परिणाम अलग होते।

बता दें कि हरियाणा में सीट बंटवारे को लेकर मतभेद के कारण आम आदमी पार्टी, कांग्रेस के साथ चुनाव से पहले गठबंधन करने में विफल रही थी। हालांकि शिवसेना (यूबीटी) नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि हरियाणा चुनाव के नतीजों का महाराष्ट्र में कोई असर नहीं पड़ेगा, जहां अगले महीने चुनाव होने की संभावना है। हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कांग्रेस को अपनी चुनावी रणनीति पर फिर से विचार करना चाहिए, क्योंकि हरियाणा में भाजपा के खिलाफ सीधी लड़ाई में कांग्रेस उम्मीदों से कमतर प्रदर्शन कर सकी।

- Advertisement -

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here