शाम का समय, पूर्वोत्तर सीमावर्ती राज्य अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर में भीड़-भाड़ वाले गंगा मार्केट में गुजरते हुए स्थानीय उच्चारण में लोगों द्वारा शुद्ध हिंदी में बातचीत सुनकर एक सुखद आश्चर्य हुआ। पीछे मुड़कर देखा, तो तीन-चार महिलाएं और बच्चे आपस में हिंदी में बातचीत कर रहे थे। पता चला कि यहां के लोग अपने घर-परिवारों में तो स्थानीय भाषाएं बोलते हैं, परंतु बाजारों, स्कूल-कालेजों और कार्यालयों में धड़ल्ले से हिंदी में ही बातचीत करते हैं, वह भी वर्षों से।यह भारत में सबसे पहले सूर्योदय वाले प्रदेश में निरंतर बढ़ती और खिलती-खिलखिलाती हिंदी की कहानी है।
दशकों से यहां के जनजातीय समुदायों में संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग किया जा रहा है। यहां लगभग 26 जनजातियां तथा उनकी 100 से अधिक उपजनजातियां निवास करती हैं और भाषायी दृष्टि से ये जनजातियां एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न हैं, जिसके कारण संचार एवं संवाद स्थापित करने में काफी समस्याएं आती थीं। वर्ष 1962 में चीन द्वारा अरुणाचल के सीमावर्ती क्षेत्रों पर आक्रमण के समय संचार एवं भाषायी समस्याओं के कारण भारत को काफी नुकसान झेलना पड़ा था। उस समय असमिया यहां संपर्क भाषा के रूप में प्रचलित थी, जिसे सभी अच्छी तरह से समझ-बोल नहीं पाते थे। इसलिए केंद्र सरकार ने भाषायी एकरूपता स्थापित करने के लिए सभी स्कूल-कॉलेजों में हिंदी को लागू किया।
इसके अलावा, चीन के आक्रमण के उपरांत इन क्षेत्रों में तेजी से हुए विकास कार्यों के कारण यहां अन्य राज्यों से बड़ी संख्या में हिंदी व अन्य भाषा-भाषी लोग आए और धीरे-धीरे संपर्क भाषा के रूप में हिंदी ने असमिया का स्थान ले लिया। स्थानीय लोगों ने भी सहर्ष एवं स्वेच्छा से हिंदी को अपना लिया है और हिंदी यहां मुख्य संपर्क बोली नहीं, बल्कि भाषा बन गई है। यहां से हिंदी की कई पत्र-पत्रिकाएं भी प्रकाशित होती हैं।
वर्ष 1977 में भारत रत्न भूपेन हजारिका द्वारा निर्देशित पहली फिल्म ‘मेरा धर्म-मेरी मां’ हिंदी में ही बनी थी, जो अरुणाचल की अब तक की सर्वाधिक लोकप्रिय फिल्म है। यहां से हिंदी फिल्मों का निर्माण भी हो रहा है और वे लोकप्रिय भी हो रहे हैं। पूर्वोत्तर में अरुणाचल ही एक ऐसा राज्य है, जहां संचार प्रणाली में पूर्णतया हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाता है। बेशक अंग्रेजी यहां की आधिकारिक राजभाषा है, जो औपचारिक दस्तावेजी कागजों तक ही सीमित है, लेकिन प्रशासनिक कामकाज के लिए यहां हिंदी भाषा का ही बहुधा प्रयोग किया जाता है। नतीजतन हिंदी व्यावहारिक भाषा के रूप में पूरे अरुणाचल में स्वीकार्य भाषा बन गई है। यहां हिंदी का प्रचार-प्रसार भाषा के रूप में नहीं, बल्कि बोली के रूप में अधिक हो रहा है।
निस्संदेह अरुणाचल में हिंदी तेजी से अपने पांव पसार रही है, लेकिन यहां की क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग काफी कम हो गया है तथा कई स्थानीय जनजातीय भाषाएं लुप्त होने के कगार पर हैं। इसलिए हमें हिंदी को बढ़ाने के साथ-साथ स्थानीय जनजातीय भाषाओं और संस्कृति को भी बचाने का प्रयास करना होगा।