हिमालय की तलहटी में बसा नेपाल, जो एक समय विश्व का एकमात्र हिंदू राष्ट्र था, आज धार्मिक पहचान और सामाजिक संघर्षों के नए दौर से गुजर रहा है। नेपाल की पावन भूमि न केवल भगवान शंकर की कीड़ा स्थली है, बल्कि गौतम बुद्ध की जन्मभूमि, सीता माता की धरती, शक्तिपीठ पशुपतिनाथ मंदिर और प्रभु राम का ससुराल जनकपुर भी है। इस पवित्र भूमि ने हमेशा से हिंदू सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को समृद्ध किया है। लेकिन, 2008 में राजशाही के पतन और उसके साथ हिंदू राष्ट्र की पहचान खत्म होने के बाद, नेपाल की धार्मिक-सांस्कृतिक संरचना और राजनीति में एक बड़ा बदलाव आया।
राजशाही के अंत के बाद नेपाल ने धर्मनिरपेक्षता को अपनाया। यह बदलाव भले ही लोकतांत्रिक विचारधारा के अनुरूप था, लेकिन हिंदू धर्मावलंबियों के लिए यह पहचान का नुकसान था। समय के साथ नेपाल के हिंदुओं को यह महसूस होने लगा कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर उनकी सांस्कृतिक जड़ों को कमजोर किया जा रहा है। दशहरा और अन्य प्रमुख हिंदू त्योहारों पर होने वाली हिंसक झड़पें और राजनीति में गैर-हिंदू समुदायों की बढ़ती भागीदारी ने हिंदू समाज को चिंतित कर दिया है। उन्हें डर है कि आने वाले समय में नेपाल भी बांग्लादेश और भारत जैसे हालातों का सामना कर सकता है, जहां धार्मिक असहिष्णुता और कट्टरता ने अल्पसंख्यकों के जीवन को कठिन बना दिया है।
नेपाल में हिंदू धर्मावलंबी आज इस खतरे को भांपते हुए संगठित हो रहे हैं। हाल के दिनों में बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार और मंदिरों में तोड़फोड़ की घटनाओं ने नेपाल के हिंदू समुदाय को झकझोर दिया है। इसके विरोध में सैकड़ों हिंदुओं ने “बाटेंगे तो काटेंगे” जैसे नारों के साथ सड़क पर विशाल प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हिंदुत्ववादी बयानों का उल्लेख और समर्थन भी देखने को मिला। प्रदर्शनकारियों ने स्पष्ट संदेश दिया कि नेपाल के हिंदुओं को अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए संगठित होना पड़ेगा।
नेपाल की बदलती जनसांख्यिकी और राजनीति में गैर-हिंदू समुदायों की बढ़ती भागीदारी हिंदू समाज के लिए चिंता का विषय बन रही है। हाल ही में देश में दशहरा जैसे त्योहारों पर होने वाली झड़पों ने यह साबित कर दिया है कि सांप्रदायिक सौहार्द्र खतरे में है। नेपाल के हिंदू समाज को लगता है कि यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो नेपाल भी बांग्लादेश जैसे हालातों का सामना करेगा, जहां हिंदू अल्पसंख्यक अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
नेपाल में एक बड़ा वर्ग मानता है कि हिंदू राष्ट्र की पहचान केवल धार्मिक गौरव का विषय नहीं है, बल्कि यह उनकी सांस्कृतिक और सामाजिक सुरक्षा का प्रतीक भी है। नेपाल के हिंदू राष्ट्रवादी समूह यह महसूस करते हैं कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर उनकी परंपराओं और मूल्यों को खोखला करने की कोशिश की जा रही है। हिंदू राष्ट्र की पुनः स्थापना की मांग केवल एक सांस्कृतिक संघर्ष नहीं है, बल्कि यह नेपाल की मौलिक पहचान को पुनर्जीवित करने का प्रयास भी है। यह आंदोलन न केवल नेपाल के लिए, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक संदेश है कि धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों की अनदेखी एक समाज को अस्थिरता की ओर ले जा सकती है
नेपाल का हिंदू समाज आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां उसे अपनी गलतिओं में सुधार लेट हुए भविष्य की दिशा तय करनी है। बांग्लादेश और भारत में हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचार से सबक लेते हुए उन्हें नेपाल के जयचंदों और मीरजाफरों सबक सिखाने और हिंदुओं को संगठित कर अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए आवाज उठानी होगी। हिंदू राष्ट्र की स्थापना केवल राजनीतिक मुद्दा नहीं है, यह एक सभ्यता के अस्तित्व और उसकी पहचान की रक्षा का आंदोलन है।