भारत ही नहीं नेपाल में भी हो रही है हिन्दू राष्ट्र की मांग: अशोक भाटिया

By Team Live Bihar 22 Views
7 Min Read
ashok bhatia
Ashok Bhatia

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर बागेश्वरधाम के धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री तथा कई हिंदूवादी नेता इन दिनों भारत को हिन्दू राष्ट्र बनानें की बात कर रहे है । कभी नेपाल एक मात्र ऐसा देश था जो अधिकारिक रूप से हिन्दू राष्ट्र था । लेकिन 2008 में नेपाल को भी धर्मनिरपेक्ष बना दिया गया। एक अनुमान के मुताबिक विश्व के करीब 52 से अधिक देशों में हिन्दू रहते है, जिसमें भारत , नेपाल , फिजी , सूरीनाम और मारीशस में हिन्दू बहुसंख्यक है । अब भारत के पड़ोसी देश नेपाल में पिछले कुछ समय से धार्मिक तनाव बढ़ा है। यहां भारत की सीमा से लगे एरिया में कई हिंदू संगठन सक्रिय हैं। वे देश को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग को लेकर अभियान चला रहे हैं। इन संगठनों में विश्व हिंदू परिषद और हिंदू स्वयं सेवक संघ बड़े नाम हैं। तराई क्षेत्र खासकर जनकपुर वाले हिस्से में इन संगठनों की सक्रियता ज्यादा है। पर बड़ा सवाल ये है कि आखिर धर्म निरपेक्ष से अचानक नेपाल ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ की तरफ क्यों बढ़ने लगा ? इसको समझने के लिए पहले नेपाल के पुराने इतिहास को समझना जरुरी है।

ईसा से करीब 1000 साल पहले नेपाल छोटी-छोटी रियासतों और कुलों के परिसंघ में बंटा था। गोरखा राजा पृथ्वी नारायण शाह ने 1765 में नेपाल की एकता की मुहिम शुरू की और 1768 तक इसमें सफल हो गए। यहीं से आधुनिक नेपाल का जन्म हुआ। राजवंश के पांचवे राजा राजेंद्र बिक्रम शाह के शासन काल में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने नेपाल की सीमा के कुछ इलाक़ों पर क़ब्ज़ा किया। 1815 में लड़ाई छिड़ी, इसका अंत सुगौली संधि से हुआ।1846 में राजा सुरेंद्र बिक्रम शाह के शासन काल में, जंग बहादुर राणा एक शक्तिशाली सैन्य कमांडर के रूप में उभरे। कुछ दिन बाद राजपरिवार ने उनके आगे घुटने टेक दिए और उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया गया। इसके साथ ही इस पद को वंशानुगत मान लिया गया। 1923 में ब्रिटेन ने नेपाल के साथ एक संधि की और इसकी स्वतंत्रता को स्वीकार किया। 1940 के दशक में नेपाल में लोगों ने देश में लोकतंत्र की बहाली की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया। तब भारत की मदद से राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह नए शासक बने।

नेपाल के राजा ज्ञानेंद्र के समय में नेपाल में राजशाही के खिलाफ व्यापक आंदोलन शुरू हुआ। सन 1959 में राजा महेंद्र बीर बिक्रम शाह ने लोकतांत्रिक प्रयोग को समाप्त कर पंचायत व्यवस्था लागू की। 1972 में राजा बीरेंद्र बिक्रम शाह ने राजकाज संभाला। 1989 में लोकतंत्र के समर्थन में जन आंदोलन शुरु हुआ और राजा बीरेंद्र बीर बिक्रम शाह को सांवैधानिक सुधार स्वीकार करने पड़े। फिर मई 1991 में पहली बहुदलीय संसद का गठन हुआ। वहीं 1996 में माओवादी आंदोलन शुरू हो गया। एक जून 2001 को नेपाल के राजमहल में हुए सामूहिक हत्याकांड में राजा, रानी, राजकुमार और राजकुमारियां मारे गए। राजा के भाई ज्ञानेंद्र बीर बिक्रम शाह ने फ़रवरी 2005 में माओवादियों के हिंसक आंदोलन के दमन के लिए सत्ता अपने हाथ में ली और सरकार को बर्ख़ास्त कर दिया। नेपाल में एक बार फिर जन आंदोलन शुरू हुआ और राजा को सत्ता जनता के हाथों में सौंपनी पड़ी। संसद को बहाल करना पड़ा। 28 मई 2008 में संसद ने एक विधेयक पारित करके नेपाल को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया।

नेपाल में 80 फीसदी हिन्दू और 10 फीसदी ईसाई हैं। पर पिछले कुछ साल में धर्मांतरण के मामले बढ़े हैं। मौजूदा समय में दक्षिण कोरिया और पश्चिम बंगाल के अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन धर्मांतरण में लगे हैं। अभी नेपाल में ईसाई आबादी तेजी से बढ़ी है। 2021 में की जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक यहां मुस्लिम आबादी लगातार बढ़ रही है । प्रतिशत के हिसाब से देखें तो नेपाल में अभी 81. 19% हिन्दू, 8. 21% बौद्ध हैं। 5. 09% मुस्लिम और 1. 76% ईसाई हैं। 2011 में हिन्दुओं की जनसंख्या 81. 3% थी। मतलब हिन्दुओं की जनसंख्या 0,19% कम हुई है। बौद्ध 9% थे। इस हिसाब से बौद्धों की संख्या भी 0. 79% कम हुई है। वहीं 2011 में मुस्लिम आबादी 4. 4% थी जो 0. 69% बढ़ी है। ईसाई पहले 0. 5% ही थे, जो अब 1. 26% हो गए हैं।

इस बार वहां जो अशांति का माहौल है उसके लिए चीन की दखलअंदाजी को जिम्मेदार माना जा रहा है। इस सप्ताह की शुरुआत में नेपाल की दंगा-रोधी पुलिस ने नेपाल के पूर्व राजा के हजारों समर्थकों को रोकने के लिए लाठी और आंसू गैस का इस्तेमाल किया, जिन्होंने राजशाही की बहाली और हिंदू राज्य की घोषित करने के लिए राजधानी के केंद्र तक मार्च करने का प्रयास किया था। प्रदर्शनकारी, राष्ट्रीय ध्वज लहराते हुए और पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के समर्थन में नारे लगाते हुए, काठमांडू में एकत्र हुए और शहर के केंद्र की ओर बढ़ने का प्रयास किया।
समाचारों के अनुसार यह अशांति नेपाल में लगातार चीनी हस्तक्षेप के कारण है। चीन वहां किसी सरकार को टिकने नहीं देता । नेपाल के लोग राजनीतिक दलों और राजनेताओं के भ्रष्ट आचरण से रुष्ट हैं। वहां की सरकार ने हवाई अड्डे और राजमार्ग चीन को बेच दिए गए हैं। स्थानीय जनता चाहती है कि नेपाल एक आदेश और नियंत्रण यानी राजा के अधीन चले। वे एक हिंदू राज्य चाहते हैं, न कि ऐसा राज्य जो उपनिवेश के रूप में चीन के निकट हो।

नेपाली जनता भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सहयोग की उम्मीद लगाए बैठी है। बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर आचार्य धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की सनातन हिंदू एकता पदयात्रा में शामिल होने नेपाल से बड़ी संख्या में लोग आए थे ।नेपाल से आए एक श्रद्धालु के अनुसार सभी लोगों की बागेश्वर धाम में आस्था हैं। हम सभी हनुमान जी, माता सीता के अनन्य भक्त हैं।

Share This Article