haryana election
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mahesh khare
महेश खरे की तस्वीर

हरियाणा चुनाव रोचक मोड़ पर पहुंच गया है। अब जब मतदान में एक सप्ताह का समय रह गया है, मतदाता का मन भी स्पष्ट होता जा रहा है। हालांकि आम आदमी पार्टी सभी सीटों पर लड़ रही है। अरविंद केजरीवाल भी जमानत पर बाहर आ गए हैं।लेकिन, राजनीतिक पंडित मुख्य टक्कर भाजपा और कांग्रेस के बीच ही मान रहे हैं। चुनाव में जातीय समीकरण और मुद्दों के हिसाब से जोड़ घटाओ करने के बाद उभरी तस्वीर में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष तेज हो गया है।

राज्य में जाटों और दलित के वोट 30-30 पर्सेंट हैं। भाजपा यह मानकर चल रही है कि जाटों के वोट उसे नहीं मिलने वाले। इसलिए वह 70 पर्सेंट वोटों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिश में हैं। दलितों में सेंधमारी के लिए भाजपा के हाथ शैलजा कार्ड लगा। सांसद कुमारी शैलजा दलित समुदाय की बड़ी नेता हैं। वे सीएम का पद मन में बसाए हुए हैं। इसी कारण पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा से शैलजा की तकरार है। टिकट वितरण में हुड्डा की चली। उन्होंने शैलजा के समर्थकों का चुन चुन कर पत्ता कटवा दिया। नतीजतन शैलजा रूठ कर घर बैठ गईं।

भाजपा ने इस मुद्दे का लाभ उठाने के लिए कांग्रेस को दलित विरोधी बताया। चुनावी सभाओं में पीएम नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और सीएम नायब सिंह सैनी ने शैलजा के साथ हो रहे अन्याय को खूब उछाला। कहा तो यहां तक जा रहा है कि शैलजा को भाजपा में आने के प्रस्ताव भी दिए गए। भाजपा के प्रति उनके रुझान की खबरें भी चुनावी वातावरण में तैरती रहीं। देर से ही सही राहुल गांधी ने शैलजा को मना लिया। हुड्डा और शैलजा राहुल की सभा में एक मंच पर दिखे। दोनों नेताओं ने एक-दूसरे की तारीफ में मंच पर कसीदे काढ़े। लेकिन इसके बाद हुई राहुल की दूसरी चुनावी सभा से शैलजा अनुपस्थित रहीं। चुनावी माहौल में इस बात को भाजपा उछालती रही। सवाल यही है कि क्या शैलजा की नाराज़गी अभी दूर नहीं हुई है? अगर ऐसा है तो दलित वोटों पर नजर टिकाए बैठी भाजपा के लिए यह खबर उत्साह बढ़ाने वाली है।

उधर राहुल गांधी न्याय यात्रा के ट्रंपकार्ड को हरियाणा में भी आजमाने की तैयारी में हैं। लोकसभा चुनाव के बाद भारतीय राजनीति में राहुल की स्वीकार्यता जितनी बढ़ी उससे कहीं अधिक विवाद के मुद्दे उनसे जुड़े। हरियाणा चुनाव प्रचार के शुरुआती दिनों में राहुल के सीन से गायब रहने का एक कारण यह भी माना जा रहा है। भाजपा की चुनावी हवा और मतदाता का मन बदलने में मोदी-शाह की धुंआधार रैलियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अब राहुल की न्याय यात्रा मतदाता को कितना प्रभावित करेगी यह आने वाला समय बताएगा।

हरियाणा चुनाव में किसानों का मुद्दा भी और उभरता जा रहा है। वैसे तो शुरू से ही किसान, जवान और पहलवान के मुद्दे यहां हावी रहे हैं। अब जब मतदान की तारीख 5 अक्टूबर करीब आती जा रही है तब चुनावी संघर्ष और तीखा होता नजर आने लगा है। शंभू बोर्डर पर किसान अभी भी जमे हैं। अगर कांग्रेस को बहुमत मिलता है तो क्या पंजाब और दिल्ली को जोड़ने वाला शंभू बोर्डर खुल जाएगा? भाजपा की असली चिंता यही है। किसानों को दिल्ली कूच करने से रोकने के लिए सरकार ने शंभू बॉर्डर को पक्की दीवार उठाकर सील कर दिया है। यह बॉर्डर दिल्ली, पंजाब, और हरियाणा को आपस में जोड़ता है। किसानों की मांगें वही पुरानी हैं- सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी के साथ किसान पेंशन की मांग पर अड़े हैं।

किसानों के मुद्दे पर कंगना राणावत के बयानों ने भाजपा की समस्या को बढ़ाया ही है। बाद में उन्हें सफाई देनी पड़ी। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के एक भाषण को लेकर कांग्रेस हमलावर है। एक चुनावी सभा में खट्टर ने कहा कि किसानों का मुखौटा पहनकर पंजाब के कुछ लोगों ने चढ़ाई शुरू कर दी थी। हमने एक साल वो सब भुगता। उसके पीछे मंशा थी कि केंद्र और हरियाणा की सरकारों को कैसे गिराया जाए। मुखौटा पहने वो लोग किसान नहीं थे। मुखौटा पहने वो लोग ट्रैक्टर लेकर दिल्ली में पहुंच गए। वहां लाल किले पर चढ़ गए थे।अब पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर बैठे किसानों ने आने-जाने वालों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। लेकिन हरियाणा के लोग इस बात से खुश हैं कि राज्य सरकार ने उन्हें बॉर्डर पर ही रोक दिया और आगे नहीं बढ़ने दिया।

हरियाणा का चुनावी इतिहास बताता है कि यहां मतदाता चेहरों को विजयी बनाने के बजाय हराने के लिए वोट करता रहा है। मतदाता ने भजनलाल, हुड्डा की सरकारों को भी दस साल परखा। तीसरे चुनाव में उनको सत्ता से बेदखल कर दिया। भाजपा का चुनावी चेहरा बदलने का यही एक बड़ा कारण बताया जा रहा है। साढ़े नौ साल की एंटी इन्कम्बेंसी की धार कुंद करने के इरादे से ही नायब सिंह सैनी को हरियाणा का सीएम बनाना और खट्टर को केन्द्र में ले जाने का दांव खेला गया। 8 अक्टूबर को पता चल जाएगा कि भाजपा की यह रणनीति कितने काम की रही।

भाजपा हरियाणा में भी डबल इंजन सरकार के फायदे गिना रही है। बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का नारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हरियाणा की धरती से ही दिया था। भाजपा की सत्ता के दस साल और महिला पहलवानों के साथ हुए सुलूक से जुड़े सवालों के उसे ही जवाब देने हैं। अग्निवीर योजना भी केन्द्र सरकार की है। बेरोज़गारी के साथ पर्ची और खर्ची का मुद्दा भी चुनाव में जोर शोर से उठ रहा है। सीएम नायब सिंह चुनावी चतुराई अपनाते हुए केवल 55 दिन के अपने कार्यकाल की बात कर रहे हैं। चुनावी रेवड़ियों की लोकलुभावन घोषणाएं करने में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां एक दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़ में दिखाई दे रही हैं। भाजपा जहां आधी आबादी को लुभाने के लिए 2100 रुपए महीने की घोषणा की है वहीं कांग्रेस 2000 रुपए हर महीने खातों में ट्रांसफर करने का वादा कर रही है। दोनों दल दो-दो लाख युवाओं को नौकरी का वादा करके लुभाने की कोशिश में हैं।

शाहरुख खान की ‘डंकी’ मूवी में जो समस्या उठाई गई है वह फिल्मी न होकर असली है और हरियाणा-पंजाब से जुड़ी है। अमेरिका में डंकी रूट से अवैध घुसपैठ यहीं से हो रही है। इसकी जड़ में बढ़ती बेरोजगारी और नौजवानों में विदेश जाकर अकूत दौलत कमाने का सपना है। इसका एकमात्र निदान हरियाणा में ही नए रोजगार पैदा करना है। नशा का अवैध व्यापार भी हरियाणा में अपने पांव पसार रहा है। ज्यादातर नौजवान पीढ़ी इसकी गिरफ्त में आती जा रही है। इस ओर कोई भी पार्टी गंभीर नहीं लगती और ना ही बहुत गंभीरता से यह मुद्दे चुनावी मंचों पर उठाए जा रहे हैं।

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