पिछले करीब चार सालों से लंदन में अपना निर्वासित जीवन बिता रहे पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और मुस्लिम लीग-एन नेता नवाज शरीफ पाकिस्तान लौट आए हैं। वे फिर से अपने देश का प्रधानमंत्री बनने के ख्वाब लेकर ही स्वेदश लौटे हैं। पाकिस्तान में संसद के लिए नाम-निहाद चुनाव आगामी जनवरी में होने हैं। नाम निहाद इसलिए क्योंकि वहां पर चुनाव कोई भी पार्टी जीते या कोई भी प्रधानमंत्री बने, देश की शक्तियों पर असली कब्जा तो रावलपिंडी में सेना के मुख्यालय में बैठे मोटी तोंद वाले जनरलों के पास ही रहता है।
नवाज शरीफ ने पाकिस्तान के मौजूदा हालात पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि देश में हालात 2017 की तुलना में कहीं अधिक बिगड़ गए हैं। यह बात तो सही है कि पाकिस्तान में हालात बेहद खराब हो चुके हैं। मंहगाई, कठमुल्लापन और बेरोजगारी ने देश को तबाह कर दिया है। वहां पर लगातार बम धमाके हो रहे हैं। नवाज शरीफ स्वयं भी एक सड़कछाप किस्म के इंसान हैं। भाग्य की खाते रहे हैं। वे युगदृष्टा तो छोड़िए, प्रखर वक्ता तक नहीं हैं। उनसे बेहतर वक्ता तो बेनजीर भुटटो और इमरान खान थे।
अगर नवाज शरीफ आगामी चुनाव के बाद प्रधनामंत्री बन भी गए तो देश की किस्मत बदलने वाली नहीं है। पाकिस्तान आज दाने-दाने को मोहताज है। नवाज शरीफ के पुरखे मूलत: कश्मीरी पंडित थे। कोई 125 साल पहले मुसलमान बन गए थे। वे कश्मीर से अमृतसर के पास जट्टी उमरा गांव में जाकर बसे थे। पाकिस्तान के बाकी नेताओं की तरह शरीफ भी घोर भारत विरोधी हैं। बस, उनके नाम के साथ “शरीफ” आना संयोग मात्र ही माना जाएगा। नवाज शरीफ ने तीन बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का पद संभाला है। उन्हीं के कार्यकाल के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध (3 मई-26 जुलाई 1999) लड़ा गया था। इस जंग के दौरान एक बार ऐसा भी हुआ जब तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी ने फोन कर नवाज शरीफ की जमकर क्लास लगाई थी। उन्हें 2016 में उड़ी हमलों के बाद कायदे से अपने देश में चल रहे आंतकी शिविरों को ध्वस्त करना चाहिए था। पर बेशर्मी की हद देखिए, कि वे भारत को ही कोसते रहे। नवाज शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र में उड़ी की घटना के लिए कश्मीर में बुरहान की मौत के बाद पैदा हुए हालातों को जिम्मेदार घोषित कर दिया। उड़ी हमला 18 सितम्बर 2016 को जम्मू और कश्मीर के उड़ी सेक्टर में एलओसी के पास स्थित भारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर हुआ था जिसमें 16 जवान शहीद हो गए थे । यह भारतीय सेना पर किया गया, लगभग 20 सालों में सबसे बड़ा हमला था। उड़ी हमले में सीमा पार बैठे आतंकियों का हाथ था। इनकी योजना के तहत ही सेना के कैंप पर फिदायीन हमला किया गया था। हमलावरों के द्वारा निहत्थे और सोते हुए जवानों पर ताबड़तोड़ फायरिंग की ताकि ज्यादा से ज्यादा जवानों को मारा जा सके।
नवाज शरीफ के कुछ मंत्री भी भारत के खिलाफ युद्धोन्माद का माहौल बनाते रहते थे। क्या जिस देश के लाहौर और कराची जैसे शहरों में रोज दस-दस घंटे बिजली न आती हो, जहाँ बेरोजगारी लगातार संक्रामक बीमारी की तरह फैल रही हो और जिधर विदेशी निवेश नाम मात्र के लिये आता हो, वह देश भारत जैसी विश्व शक्ति से लड़ने के लिए कैसे तैयार हो सकता है? नवाज शरीफ सन 2013 में पाकिस्तान के वजीरे आजम की कुर्सी पर फिर से बैठे थे। बावजूद इसके कि नवाज शरीफ और उनके अनुज शाहबाज शरीफ, जो आगे चलकर देश के प्रधानमंत्री बने, पर करप्शन के अनेकों केस थे। शरीफ परिवार के लिए कहा जाता है कि इनके लिए पाकिस्तान ही इनका खानदान है। इनका बड़ा औद्योगिक घराना भी है। ये जनता को झूठे सब्जबाग दिखा कर ही चुनाव जीतते रहे हैं।
पाकिस्तान लौटने पर लाहौर में एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बेहद खराब स्थिति में है। पर वहां की अर्थव्यवस्था तो तब भी खराब थी जब नवाज शऱीफ देश छोड़कर चले गए थे। उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कौन से सघन प्रयास किए?
जब नवाज शरीफ देश के प्रधानमंत्री थे तब वे बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में भी बार-बार हस्तक्षेप करते थे। बांग्लादेश में सन 1970 के बाद ईस्ट पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेनाओं का साथ देने वालों को लगातार दंड दिया जाता रहा है। इन गुनाहगारों ने पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर अपने ही देश के लाखों मासूमों का कत्ल कर दिया था। जब उन गुनाहगारों को फांसी पर लटकाया जाता है, तो शरीफ को बहुत तकलीफ होती है । यानी जिनके हाथ खून से रंगे हैं, उन्हें नवाज शरीफ सरकार समर्थन दे रही थी।
नवाज शरीफ ने अपने मुल्क के अल्पसंख्यकों के हक में कोई कदम नहीं उठाया। पाकिस्तान में सुन्नियों के अलावा सब असुरक्षित हैं। सब मारे जा रहे हैं। शिया, अहमदिया, ईसाई, सिख, हिन्दू भी। लाहौर से लेकर पेशावर तक ईसाई मारे जा रहे हैं। विभिन्न देशों में बसे पाकिस्तानी अपने देश में वापस जाने से पहले दस बार सोचते हैं। नवाज शरीफ दावा करते थे कि इस्लाम और मुल्क के संविधान के मुताबिक, अल्पसंख्यकों को जिंदगी के सभी क्षेत्रों में मुसलमानों के बराबक हक मिलता रहेगा। लेकिन, वे सारे वादे धूल में मिल गए थे। वहां पर गैर-मुसलमानों के लिए सामाजिक दायरा घटता गया। जब नवाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे, तब ही मुंबई पर हमला हुआ था। उनके प्रधानमंत्रित्व काल में हाफिज़ सईद और अजहर मसूद जैसे भारत विरोधी आतंकी लाहौर में खुले घूम रहे थे। पर शरीफ चुप रहे।
नवाज शरीफ अपने देश के अवाम का मूल मसलों से ध्यान हटाने के लिए ही भारत को किसी न किसी रूप में दोषी ठहराते रहते थे। वे पाकिस्तान में होने वाले बम धमाकों के लिए भारत की खुफिया एजेंसी रॉ को दोष देते रहते थे बिना किसी ठोस सुबूतों के।
नवाज शरीफ तो वास्तव में निहायत एहसान फरामोश शख्स हैं। उनके पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने पर उनके भारत स्थित गांव के लोग खुशी से मिठाइयां बांट रहे थे I उनके अब्बा की तो इच्छा थी कि मृत्यु के बाद उन्हें उसी मिट्टी में दफन किया जाए जिससे उनके परिवार का सदियों पुराना नाता है। पर अफसोस कि उन्हीं का पुत्र अपने पुरखों की देश को क्षति पहुंचाना चाहते थे। यकीन मानिए कि नवाज शरीफ न अपने देश के और न ही भारत के सगे हैं। पर पता नहीं क्यों हमारे यहां ही कुछ ज्ञानी लोग शरीफ को बहुत शरीफ बताते हैं। ऐसे शरीफ का चोला ओढ़े हुये लोगों से सावधान रहना होगा I
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)