मुजफ्फरपुर, संवाददाता
सोमवार तड़के जब मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल का भारी-भरकम गेट खुला, तो बाहर खड़े लोग जैसे 118 साल पुरानी उस सुबह में लौट गए, जब महज 18 साल का एक नौजवान मुस्कुराते हुए फांसी के तख्ते पर चढ़ गया था। जेल की दीवारें रंगीन बल्बों से जगमगा रही थीं। बैकग्राउंड में धीमी आवाज में ‘एक बार विदाई दे मां घूरे आसी, हांसी हांसी परबो फांसी’ गूंज रहा था, जिसे गाते हुए खुदीराम बोस ने मौत का आलिंगन किया था। सूरज निकलने से पहले ही सेंट्रल जेल के गेट पर लोगों का जमावड़ा लग चुका था। कोई कोलकाता से तो कोई मेदिनापुर से शहीद के गांव की माटी और काली मंदिर का प्रसाद लेकर पहुंचा था।
तिरहुत प्रक्षेत्र के कमिश्नर राज कुमार , डीएम सुब्रत सेन, एसएसपी सुशील कुमार , सिटी एसपी कोटा किरण , एएसपी टाउन सुरेश कुमार , एस डीएम पूर्वी अमित कुमार और मिठनपुरा प्रभारी थानाध्यक्ष राहुल कुमार समेत कई अधिकारी समय पर पहुंचे। हाथ पर मुहर लगाकर लोगों को अंदर प्रवेश कराया गया।
फांसी स्थल पर श्रद्धा से सिर झुकाए लोग खड़े थे। जैसे-जैसे घड़ी की सुइयां 3 बजकर 50 मिनट पर पहुंचीं, पूरे परिसर में वंदे मातरम् के नारे गूंज उठे।
श्रद्धांजलि के बाद सभी उस सेल में पहुंचे, जहां खुदीराम को रखा गया था। लोहे की सलाखें, मोटा लकड़ी का दरवाजा, दीवारों पर नमी, मानो वक्त थम गया हो। कहा जाता है कि आज भी यहां एक अजीब सी आभा है, जो हर आगंतुक को नि:शब्द कर देती है।
डीएम सुब्रत सेन ने कहा, ’18 वर्ष से कम उम्र में खुदीराम ने जो बलिदान दिया, वह युवाओं के लिए अमर प्रेरणा है। हमें उनकी तरह देश की एकता और अखंडता के लिए काम करना चाहिए।’
मुजफ्फरपुर की मिट्टी में आज भी उनका साहस, उनका जुनून और उनका गीत गूंजता है। यह सिर्फ शहादत दिवस नहीं, बल्कि एक याद है कि देश की आजादी अनगिनत बलिदानों से आई है, और इसे बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है।
खुदीराम बोस की 117वीं शहादत दिवस पर जेल में कार्यक्रम तिरहुत रेंज के कमिश्नर, डीएम, एसएसपी समेत लोगों ने दी श्रद्धांजलि
