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लाइव बिहार: शरद ऋतु में हर वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाले हिंदूओं का प्राचीन त्योहार दीपावली इस बार 14 नवंबर को मनाया जाएगा।

बाजार में चाइनीज सामानों की बिक्री का हो रहे बहिष्कार और मिट्टी के दीपों की बढ़ती मांग को देखते हुए कुम्भकारों ने इस बार अभी से ही मिट्टी के दीपों और तरह-तरह के खिलौना को अभी से बनाना शुरू कर दिया है. बड़े पैमाने पर चंदेरी, मनसरपुर, कजरैली, बैजनाथपुर सहित नवगछिया के दर्जनों गांवों में मूर्तिकार मिट्टी के दीप सहित अन्य खिलौना बनाने में लगे हैं। उन्हें इस बार अपने उत्पाद को बेचने के लिए वोकल भी बने हुए हैं। उन्हें अपने उत्पाद का बेहतर मूल्य मिलने का भी भरोसा है।

पिछले वर्ष भी बाजार में मिट्टी के दीपों की अच्छी खासी मांग रही थी। इससे कुम्भकारों की उत्साह भी बनी हुई है। वे अपने स्वजनों के साथ दीपों एवं मिट्टी के खिलौने बनाए में लगे हैं। इस बार महंगाई अधिक होने की वजह से इस बार दो सौ रुपये प्रति सैंकड़ा बिकने की उम्मीद है।

ज्योतिषाचार्य डॉ. एसएन झा कहते हैं कि लक्ष्मी-गणेश सहित अन्य देवी देवताओं के पूजन में गोबर या मिट्टी के दीपों का विशेष महत्व होता है। इसे पूजन की पवित्रता जुड़ी होती है। यहीं कारण है कि पूजन का कार्य खासकर मिट्टी के दीपों से किया जाता है।

दीपावली में पूर्व से मिट्टी के दीपों में तेल डालकर घर-आंगन को रोशन करने की परंपरा रही है। आधुनिकता के दौरा में लोग चाइनीज कैंडल और बल्बों से घर को रोशन किया करते थे, जिससे बाद में मिट्टी और वायु दोनों प्रदूषित होता था। जब से चाइनीज वस्तुओं का लोग बहिष्कार करने लगे हैं। तब से मिट्टी के दीपों की मांग बाजारों में बढ़ी है। इससे कोई प्रदूषण भी नहीं होता है।

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