अशोक भाटिया (वरिष्ठ स्तंभकार)
भारत में एक ऐसा संगठन है जिसकी देशभक्ति पर हमेशा से सवाल उठता आया है। अक्सर उससे यह सवाल पूछा गया कि आपका देश की आजादी में क्या योगदान था? आप यह समझ ही गए होंगे की हम किसकी बात कर रहे हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ की। संघ शताब्दी की दहलीज पर है। संघ ने कुछ वर्ष पूर्व एक डाक्यूमेंट्री जारी कर देश की आजादी के लिए चले सभी बड़े आंदोलनों में संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और स्वयंसेवकों के योगदान का जिक्र किया था। यह अलग बात है कि संघ को कभी श्रेय लेने की आदत नहीं रही। सुनियोजित साजिश के तहत संघ को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां फैलाई जाती हैं।
1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित इस संगठन का उद्देश्य हिंदुओं को एकजुट कर उन्हें देश की स्वतंत्रता के लिए तैयार करना था। खुद डॉ. हेडगेवार क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति में सक्रिय थे। उन्होंने कोलकाता में क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। वहां वे मेडिकल के छात्र थे। ब्रिटिश सरकार विरोधी कार्यों के लिए 1921 और 1931 में दो बार जेल गए। 1929 में, जब कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन में ‘पूर्ण स्वराज’ की घोषणा की, तो संघ ने अपनी शाखाओं में इसका जश्न मनाया।
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में संघ के स्वयंसेवक सक्रिय थे। उनका नेतृत्व संघ के दूसरे सरसंघचालक एमएस गोलवलकर ने किया था। महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में, रमाकांत देशपांडे के नेतृत्व में चिमूर में स्वयंसेवकों ने जोरदार विरोध प्रदर्शन किया जो हिंसक हो गया। कुछ ब्रिटिश अधिकारियों की जान चली गई। इसे ‘चिमूर आष्टी प्रकरण’ के रूप में जाना जाता है। आंदोलन के इतिहास में एक उल्लेखनीय अध्याय है। सिंध के सक्खर के स्वयंसेवक हेमू कलानी थे, जिन्होंने रेलवे फिशप्लेट्स को हटाकर ब्रिटिश सेना को लेकर जा रही ट्रेन को पटरी से उतारने का प्रयास किया था। उन्हें अपने कार्यों के लिए 1943 में सेना अदालत द्वारा मौत की सजा सुनाई गई थी।
सोलापुर के कांग्रेस कमेटी के सदस्य गणेश बापूजी शिंकर ने 1948 में संघ पर प्रतिबंध हटाने के लिए दबाव बनाने हेतु सत्याग्रह में भाग लिया था। महात्मा गांधी की हत्या के बाद नेहरू सरकार ने गलत तरीके से संघ पर प्रतिबंध लगा दिया था। बाद में प्रतिबंध हटाना पड़ा था। सत्याग्रह में शामिल होने से पहले उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने अपना रुख स्पष्ट करते हुए एक बयान जारी किया और यह 12 दिसंबर, 1948 को प्रकाशित हुआ। वे कहते हैं, -‘मैंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था। उस समय पूंजीवादी और कृषक समुदाय सरकार से डरे हुए थे। इसलिए, हमें उनके घरों में सुरक्षित आश्रय नहीं मिला। हमें भूमिगत काम करने के लिए संघ कार्यकर्ताओं के घरों में रहना पड़ा। संघ के लोग हमारे भूमिगत काम में खुशी-खुशी हमारी मदद करते थे। वे हमारी सभी जरूरतों का भी ख्याल रखते थे। इतना ही नहीं, अगर हममें से कोई बीमार पड़ जाता था, तो स्वयंसेवक डॉक्टर हमारा इलाज करते थे। संघ के स्वयंसेवक, जो वकील थे, निडरता से हमारे मुकदमे लड़ते थे। उनकी देशभक्ति और मूल्य आधारित जीवनशैली निर्विवाद थी।’
दिल्ली के संघचालक लाला हंसराज के घर का इस्तेमाल प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी अरुणा आसफ अली ने भूमिगत रहने के लिए किया था। अगस्त 1967 में हिंदी दैनिक हिंदुस्तान में प्रकाशित एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया, ‘मैं 1942 के आंदोलन में भूमिगत थी। दिल्ली के संघचालक लाला हंसराज ने मुझे 10-15 दिनों के लिए अपने घर में शरण दी और मेरी पूरी सुरक्षा का प्रबंध किया। उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि किसी को भी मेरे उनके घर पर रहने की खबर न मिले।’
प्रसिद्ध वैदिक विद्वान पंडित श्रीपाद दामोदर सातवलेकर औंध (महाराष्ट्र) के संघचालक थे। उन्होंने क्रांतिकारी भूमिगत नेता नाना पाटिल के ठहरने की व्यवस्था अपने घर पर की थी। पाटिल को ‘पात्री सरकार’ के नए विचार के साथ प्रयोग करने के लिए जाना जाता है। पाटिल के सहयोगी किसनवीर अंग्रेजों के खिलाफ भूमिगत अभियान चलाते समय सतारा के संघचालक के घर पर रुके थे। प्रसिद्ध समाजवादी नेता अच्युतराव पटवर्धन अंग्रेजों के खिलाफ भूमिगत आंदोलन के दौरान संघ के के स्वयंसेवकों के घरों पर रुके थे।
संघ के स्वयंसेवकों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भारत छोड़ो आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई। विदर्भ के अष्टी चिमूर क्षेत्र में समानान्तर सरकार स्थापित की गई थी। अमानुषिक अत्याचारों का सामना किया। उस क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक स्वयंसेवकों ने अपना बलिदान किया। नागपुर के निकट रामटेक के तत्कालीन नगर कार्यवाह रमाकान्त केशव देशपाण्डे उपाख्य बालासाहब देशपाण्डे को आन्दोलन में भाग लेने पर मृत्युदण्ड सुनाया गया। आम माफी के समय मुक्त होकर उन्होंने वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना की। देश के कोने-कोने में स्वयंसेवक जूझ रहे थे। मेरठ जिले में मवाना तहसील पर झण्डा फहराते स्वयंसेवकों पर पुलिस ने गोली चलाई, अनेक घायल हुए। आंदोलनकारियों की सहायता और शरण देने का कार्य भी बहुत महत्व का था। केवल अंग्रेज सरकार के गुप्तचर ही नहीं, कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता भी अपनी पार्टी के आदेशानुसार देशभक्तों को पकड़वा रहे थे। प्रसिद्ध समाजवादी श्री अच्युत पटवर्धन और साने गुरुजी ने पूना के संघचालक भाऊसाहब देशमुख के घर पर केन्द्र बनाया था। ‘पतरी सरकार ‘ गठित करने वाले प्रसिद्ध क्रान्तिकर्मी नाना पाटिल को औौंध (जिला सतारा) में संघचालक पं. सातवलेकर जी ने आश्रय दिया।
महाराष्ट्र के औंध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नेतृत्व करने वाले पंडित श्रीपाद दामोदर सातवलेकर ने नाना पाटिल को शरण दी, जो एक ऐसे नेता थे जिन्होंने ‘पात्री सरकार’ या वैकल्पिक सरकार स्थापित करने की कोशिश की थी। नाना पाटिल और उनके दोस्त किसनवीर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्यों ने छिपा दिया था, जब वे अंग्रेजों के खिलाफ गुप्त रूप से काम कर रहे थे। 1940 और 1947 के बीच, ब्रिटिश पुलिस अक्सर इस बारे में बात करती थी कि कैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अधिक से अधिक शक्तिशाली होता जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं में से एक गोलवलकर लोगों को भारतीय होने पर गर्व महसूस करा रहे थे और उन्हें एक साथ ला रहे थे। 30 दिसंबर 1943 की एक रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया था। उन्होंने यह भी लिखा कि गोलवलकर संघ के सदस्यों को प्रेरित करने और संगठित करने के लिए बहुत यात्रा करते थे।
1940 संघ का तेजी से विकास हुआ क्योंकि लोग स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने वाले स्वयंसेवकों का सम्मान करते थे। पहले तो वे चुपचाप काम करते थे। लेकिन जैसे-जैसे स्वतंत्रता करीब आती गई, वे और अधिक सक्रिय होते गए। उन्होंने बहुत कुछ किया, जैसे विभाजन के दौरान लाखों लोगों की मदद करना और उन हिंदुओं और सिखों की सहायता करना जिन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा था। इससे पता चलता है कि वे कितने समर्पित थे, और हमें उनकी बहादुरी और प्रतिबद्धता के बारे में और अधिक जानना चाहिए।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का योगदान इतिहास का एक महत्वपूर्ण लेकिन अक्सर अनदेखा किया जाने वाला हिस्सा है। उनकी निस्वार्थ सेवा और मौन बलिदान ने देश की स्वतंत्रता के मार्ग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज भी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय समाज में कई काम करता है, जैसे स्थानीय स्तर पर लोगों को शामिल करना और यहां तक कि सरकारी फैसलों को प्रभावित करना। कई भारतीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को पसंद करते हैं क्योंकि यह दूसरों की मदद करने, अनुशासित रहने और अपनी संस्कृति पर गर्व महसूस करने पर ध्यान केंद्रित करता है। जैसे-जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बढ़ता जा रहा है, राष्ट्र की सेवा और सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देने के लिए इसका समर्पण भारत के भविष्य को आकार देना जारी रखेगा।
स्वतंत्रता आंदोलन और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
