इंडिया गठबंधन 2025 की विफलता और विपक्षी बिखराव

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  • • 2025 में इंडिया गठबंधन की कोई औपचारिक बैठक नहीं • दिल्ली चुनाव में कांग्रेस–AAP अलग, वोटों का विभाजन • महाराष्ट्र में सहयोगियों से अलग कांग्रेस • बिहार में एकजुटता के बावजूद बड़ी हार • नेतृत्व को लेकर कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों में टकराव • राहुल गांधी की भूमिका पर सवाल • वैचारिक एकरूपता का अभाव • बिखराव सत्ता का विकल्प नहीं

इंडिया गठबंधन 2025 भारतीय राजनीति में उस दौर के रूप में याद किया जाएगा, जब विपक्ष के पास अवसर था लेकिन दिशा नहीं। 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि इंडिया गठबंधन 2025 में एक मजबूत, संगठित और विश्वसनीय विकल्प बनकर उभरेगा। लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट रही। यह वर्ष विपक्षी बिखराव, नेतृत्व संकट और रणनीतिक भ्रम का प्रतीक बन गया।

इंडिया गठबंधन 2025 में बैठकहीन राजनीति

किसी भी गठबंधन की ताकत संवाद और समन्वय में होती है। लेकिन इंडिया गठबंधन 2025 की सबसे चौंकाने वाली सच्चाई यह रही कि पूरे वर्ष इसकी एक भी औपचारिक बैठक नहीं हुई।

संवाद के बिना गठबंधन कैसे चलेगा?

बैठकों का न होना केवल प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि यह दर्शाता है कि गठबंधन अंदर से निष्क्रिय हो चुका था। साझा एजेंडा, रणनीति और नेतृत्व पर चर्चा के बिना गठबंधन केवल कागज़ी संरचना बनकर रह गया।

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दिल्ली चुनाव और विपक्षी वोटों का विभाजन

दिल्ली विधानसभा चुनावों में इंडिया गठबंधन 2025 का बिखराव खुलकर सामने आया।

कांग्रेस और AAP का अलग रास्ता

आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने अलग-अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया। नतीजा यह हुआ कि विपक्षी वोट बंट गए और भाजपा को सीधा लाभ मिला। यह फैसला राजनीतिक अहंकार और आपसी अविश्वास का परिणाम था।

महाराष्ट्र और बिहार में रणनीतिक विफलता

महाराष्ट्र में कांग्रेस का एकतरफा फैसला

महाराष्ट्र के निकाय चुनावों में कांग्रेस ने एनसीपी (शरद पवार गुट) और शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) से अलग होकर चुनाव लड़ा। यह निर्णय उस समय लिया गया जब भाजपा के खिलाफ संयुक्त संघर्ष की आवश्यकता थी।

बिहार में एकजुटता के बावजूद हार

बिहार में महागठबंधन ने साथ चुनाव लड़ा, लेकिन इंडिया गठबंधन 2025 की यह सबसे बड़ी हार साबित हुई। टिकट वितरण, नेतृत्व और प्रचार रणनीति को लेकर अंदरूनी कलह साफ दिखाई दी।

नेतृत्व संकट और कांग्रेस बनाम क्षेत्रीय दल

इंडिया गठबंधन के भीतर सबसे बड़ा सवाल नेतृत्व को लेकर रहा।

साझा नेतृत्व की मांग

तृणमूल कांग्रेस समेत कई क्षेत्रीय दलों ने खुलकर कहा कि गठबंधन का नेतृत्व केवल कांग्रेस के हाथों में नहीं रह सकता। क्षेत्रीय दलों की राजनीतिक ताकत और जनाधार को नजरअंदाज करना गठबंधन के लिए नुकसानदेह साबित हुआ।

राहुल गांधी की भूमिका पर उठते सवाल

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष होने के बावजूद राहुल गांधी नेतृत्व संकट चर्चा का विषय बना रहा।

मुद्दों से ज्यादा संस्थाओं पर हमला

महंगाई, बेरोजगारी और किसानों जैसे जनहित के मुद्दों की बजाय, राहुल गांधी का फोकस अधिकतर संवैधानिक संस्थाओं पर रहा। इससे विपक्ष की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा।

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वैचारिक एकरूपता का अभाव

इंडिया गठबंधन 2025 केवल रणनीति में ही नहीं, बल्कि मुद्दों पर भी बिखरा नजर आया।

उमर अब्दुल्ला का बयान और गठबंधन की सच्चाई

जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला का बयान कि कांग्रेस का आंदोलन जरूरी नहीं कि उनकी लड़ाई हो, इस बात का संकेत था कि गठबंधन के भीतर साझा वैचारिक जमीन कमजोर हो चुकी है।

बिखराव सत्ता का विकल्प नहीं

इंडिया गठबंधन 2025 ने यह साफ कर दिया कि केवल सरकार विरोध पर्याप्त नहीं होता। बिना संवाद, बिना स्पष्ट नेतृत्व और बिना आपसी सम्मान के कोई गठबंधन जनता का भरोसा नहीं जीत सकता। अगर विपक्ष को भविष्य में प्रासंगिक बने रहना है, तो उसे अहंकार छोड़कर वास्तविक एकजुटता दिखानी होगी।

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