रूस के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी
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रूस के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी: केएस तोमर 1
केएस तोमर

वर्ष 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के बाद, पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों ने रूस को वित्तीय संकट में डाल दिया था। भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए रूस से 65 अरब डॉलर के लगभग तेल आयात किया जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण योगदान है। इस निर्णय के पीछे एक सामर्थ्यपूर्ण कारण यह रहा कि भारत ने अपने आर्थिक हितों को सुरक्षित रखने के लिए अमेरिका द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों से बचने का प्रयास किया। इस तरह के गठबंधन और व्यापारिक संबंधों के माध्यम से भारत ने रूस को अपने वित्तीय संकट से उभारने में मदद की।

यद्यपि भारत और अमेरिका के मध्य संबंध काफी सौहार्दपूर्ण रहे हैं लेकिन रूस से तेल आयात के मामले में भारत चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश बनकर उभरा है। इस बीच, अमेरिका को कमतर दिखाने के लिए चीन और रूस ने अत्यंत प्रभावी संबंध बना लिए थे। वहीं राष्ट्रपति पुतिन द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को रूस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू प्रदान करके रूस ने भारत के साथ अपने पुराने संबंधों को नई गति प्रदान की है। नौ जुलाई को क्रेमलिन में सम्मान प्रदान करते हुए दोनों देशों में संबंधों को मजबूत करने के मोदी के प्रयासों की भी सराहना की गई।

अमेरिका द्वारा आपत्ति दर्ज करते हुए विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा कि भारत अपना रुख स्पष्ट करे क्योंकि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुसार यूक्रेन की संप्रभुता को बनाए रखने की सभी की जिम्मेवारी है। इसके साथ ही यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने कहा कि सभी देशों का दायित्व है कि रूस की आक्रामक नीति और यूक्रेन की जमीन से हमलावरों को खदेड़ने में भारत उसका साथ दे और शांति के लिए पहल करे ताकि अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन हो सके।

विशेषज्ञों का मानना है कि इन परिस्थितियों में मोदी की मॉस्को यात्रा को अलग-अलग दृष्टिकोण से देखा जा रहा है। सभी एकमत हैं कि भारत जहां एक ओर चीन का प्रभाव कम करने में सफल रहा, वहीं आर्थिक और कूटनीतिक दृष्टि से भी फायदे में रहा है। भारत की नीति ही चीन के विश्वस्तर पर बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने में सक्षम है। रूस के साथ पुराने संबंधों को नई दिशा देकर प्रधानमंत्री मोदी ने अच्छी पहल की है। इस यात्रा का सबसे अहम उद्देश्य यह रहा कि चीन की बढ़ती आक्रामक नीतियों के मुकाबले ऐसी व्यवस्था को बल दिया जाये, जिससे आपसी हितों की रक्षा की जा सके। इस प्रकार के संबंधों से चीन या अन्य किसी भी राष्ट्र द्वारा अाधिपत्य की कुचेष्टा को रोका जा सकेगा।

मोदी की मॉस्को यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू भारत और रूस के रक्षा संबंधों को नई ताकत देना था। रूस भारत के सामरिक संबंधों का सबसे महत्वपूर्ण और भरोसेमंद सहयोगी रहा है। जहां इन संबंधों को लेकर इस दिशा में अच्छी पहल हुई, वहीं एस 400 मिसाइल सुरक्षा प्रणाली और भविष्य में सामरिक सुरक्षा तकनीक में सहयोग पर भी चर्चा हुई। इन संबंधों का सीधा लाभ भारत की युद्धशक्ति में बढ़ोतरी के अलावा दक्षिण एशिया क्षेत्र में क्षेत्रीय संतुलन बनाए में होगा।

भारत और रूस के संबंधों में ऊर्जा सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है। अपने अपार तेल और गैस भंडारों के कारण रूस का अपना महत्व है जो भारत के दृष्टिकोण से अहम है। मोदी की इस यात्रा के दौरान लंबी अवधि के लिए सप्लाई के समझौते और ऊर्जा क्षेत्र में निवेश पर भी बातचीत हुई। इसके अलावा परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग भी वार्ता का हिस्सा रहा। इन समझौतों का यह लाभ होगा कि भारत को भविष्य में अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता मिलेगी, जिससे देश का आर्थिक विकास तेज होगा।

रूस के साथ आपसी बातचीत में प्रधानमंत्री का ध्यान व्यापार को सुदृढ़ करने और पूंजी निवेश को बढ़ावा देना भी विशेष था। इस यात्रा का उद्देश्य था कि ऐसे नये क्षेत्र तलाशे जाएं ताकि व्यापारिक संबंध और बढ़ें। इनमें दवा उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी और कृषि महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ऐसे में व्यापारिक संबंधों को सुधारने और विभिन्न स्तरों पर पेश आ रही रुकावटों को दूर करने पर भी चर्चा हुई ताकि निवेश बढ़े और इसका लाभ दोनों देशों को मिल सके।

आज के उलझे हुए अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में प्रधानमंत्री की इस यात्रा का मकसद रूस के साथ भारत के रिश्तों को और मजबूत करना था। आज जब अमेरिका और पश्चिमी देश अपने हितों की रक्षा के लिए अन्य राष्ट्रों की अनदेखी करके उन पर अपनी मर्जी थोपने का प्रयास कर रहे हैं, रूस से संबंधों में सुधार भारत की विदेश नीति में नया संतुलन लायेगा। रूस के साथ नए सुधरे हुए संबंध अन्य देशों को यह संदेश देने में सफल रहे हैं कि भारत की विदेश नीति स्वतंत्र और बहुआयामी है।

इस यात्रा का यह भी लाभ रहा कि भविष्य में संयुक्त राष्ट्र, ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संस्थान जैसे महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भारत और रूस एक-दूसरे के सहयोग के कारण अधिक प्रभावशाली भूमिका निभा सकेंगे जिससे विश्व के देशों में व्याप्त आर्थिक विसंगतियों को दूर किया जा सकेगा।

भारत-रूस के बीच परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग रहा है। इन क्षेत्रों में और अधिक भागीदारी और सहयोग भी चर्चा का विषय रहा। आज के विश्व में डिजिटल आर्थिक व्यवस्था और साइबर सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। मोदी की इन क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर भी चर्चा हुई ताकि दोनों देशों को लाभ मिले।

ऐसे में मोदी की मॉस्को यात्रा को भारत के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण और सफल माना जा सकता है। इस दौरान अनेक अहम मुद्दों पर न केवल चर्चा हुई बल्कि भविष्य के लिए मानचित्र भी तैयार किया गया। रणनीतिक तौर पर चीन के मुकाबले खड़ा होने और भारत की भूमिका अहम बनाने पर विस्तृत बातचीत हुई। इसके साथ ही पुराने संबंधों को सुदृढ़ करने और नई दिशा प्रदान करने में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। प्रौद्योगिकी और विज्ञान के क्षेत्र में नए समझौते लाभदायक रहेंगे।

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