अलग सोच के बूते किशनगंज के किसानों ने जिले और राज्य का नाम किया रौशन
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किशनगंज: खेती-बारी और किसानों की ढेर सारी बातें सुनने में आती हैं और उसपर बहस और राजनीति भी आम है,लेकिन खेत और खलिहान के बीच जूझते किसान को एक अलग रूप में पेश करने के लिए हम अब तक तैयार नहीं हुए हैं। फिर भी हमारे अन्नदाता पर इससे प्रभावित हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता। क्योंकि सीमावर्ती जिला किशनगंज के किसानों ने अपनी अलग पहचान बनाई है तथा जिले और राज्य को गौरवान्वित किया है।

इस जिले में कुछ ऐसे किसान हैं जिन्होंने अपनी किसानी से देश भर में मिशाल कायम कर दिया है । किशनगंज जिला मुख्यालय के एक युवा कपड़ा व्यवसाई राजकरण ने पहाड़ी जमीन पर उपजने वाली चाय को यहां की तराई धरती पर उपजाने का संकल्प लिया और जिले के पोठिया प्रखंड की कालिदास पंचायत में 1992 में सबसे पहले पांच एकड़ जमीन पर चाय की खेती शुरू की। वहां उन्होंने शुरुआत में दो लाख चाय के पौधे लगवाए। आज इस जिले को चाय उद्योग के रूप में जाना जाने लगा । वर्तमान में उनके और उनके वृहद परिवार के लोगों के अपने जिले में तकरीबन 500 एकड़ भूमि पर चाय बागान हैं। उन्होंने चाय प्रोसेसिंग की कंपनी खोल ली है ।

दूसरी मिसाल जिले के ठाकुरगंज नगर पंचायत के वार्ड संख्या 1 निवासी नागराज नखत हैं जिन्होंने अपने पुस्तैनी व्यवसाय की जगह किसानी करने का संकल्प लिया। नागराज नखत 1968 में पढ़ाई पुरी कर कोलकाता से ठाकुरगंज आकर किसानी करने का संकल्प लेकर सबसे पहले भुसावल से केला की पुली लाकर इलाके में पहली बार सिंगापुरी केले की खेती शुरू की। इस दौरान धीरे धीरे केला की अन्य किस्मे भी उपजाई जाने लगी जिनमे मालभोग , ( मर्तवान ) जहाजी , रोवेस्टा वेराईटी शामिल थी और नखत की इस पहल ने इलाके में खेती के तरीके को बदल दिया। इस दौरान इलाके में पहली बार लाल केला की खेती भी इन्होने ही की और अब तक जूट, धान और गेंहू की खेती करने को मजबूर इलाके के किसानो को नगदी फसल की तरफ आकर्षित कर दिया। स्थति यह हो गई की 1980 के अंतिम दशक और नब्बे के शरुआती दशक में केले की खेती ने ठाकुरगंज को सम्पूर्ण देश में एक अलग पहचान दी जहां कोलकत्ता जैसे मार्केट में सूबे के अन्य इलाके से जाने वाले केले बिहार के केले के नाम पर जाने जाते थे वही ठाकुरगंज से जाने वाला केला ठाकुरगंज के नाम पर अलग पहचान रखता था।

उस वक्त जिले में ठाकुरगंज से आगे बढ़कर पोठिया और किशनगंज तक केले की खेती होने लगी थी। केले की खेती का रुझान ऐसा चढ़ा कि लोग अच्छा खासा कारोबार छोड़ कर केले की खेती में रम गए।हालांकि करीब 10 वर्षो तक खेती बारी छोड़ कर नखत पारिवारिक व्यवसाय में व्यस्त रहे। फिर उन्होंने कुछ अलग करने की ठानी और 2014 में ड्रेगन फ्रूट की खेती शुरू की। शुरुआत में केवल 100 पेड़ से शुरू हुई यह खेती आज 5 एकड़ के भूभाग में फैल चुकी है। राज्य में पहली बार विदेशी फल ड्रेगन फ्रूट की खेती करके जिले का नाम रोशन करने वाले नगराज नखत ने बताया कि आज के दिन फसलों की लगातार बढ़ती लागत और कम होती आय के साथ मजदूरों की बढ़ती समस्या के कारण खेती मुनाफे का धंधा नहीं रहा।

ऐसे में ड्रेगन फ्रूट की खेती उन्हें अन्य खेती से थोड़ी अलग लगी । आज अपने खेत में 17000 ड्रेगन फ्रूट के पोधे के साथ रोज नए तकनीक का इस्तेमाल कर इलाके के किसानो को नया रास्ता दिखा रहे हैं। यही नहीं इनके बागान में दूर-दूर से खेती में दिलचस्पी रखने वाले लोग पहुंचते है और उनको मार्गदर्शन भी दिया करते हैं। अब यहां के दर्जनों किसान भी ड्रैगन फ्रूट की खेती करके लाभान्वित हो रहे है । इनके ड्रैगन फ्रूट की खेती को देखने के लिए बिहार के राज्यपाल,पटना हाई कोर्ट के न्यायधीश समेत बिहार सरकार के कई मंत्री भी पहुंच चुके है।

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