नीरज कुमार दुबे
(वरिष्ठ स्तंभकार )
भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण और संवेदनशील क्षेत्र लद्दाख हाल के कुछ समय से लगातार राजनीतिक उथल-पुथल और असंतोष का केंद्र बना हुआ है। ऐसा लगता है कि कोई साजिश है जो इस क्षेत्र को लगातार गलत कारणों से सुर्खियों में रख रही है। ऐसा लगता है कुछ ताकतें हैं जो यहां असंतोष भड़काने में लगी हुई हैं। कश्मीर में पत्थरबाजी बंद होना और लद्दाख में शुरू होना कोई संयोग है या विदेशी ताकतों का प्रयोग, इस बात का पता तो जांच एजेंसियां लगा ही लेंगी लेकिन इतना तो स्पष्ट दिख ही रहा है कि स्वभाव से शांत रहने वाले इस केंद्र शासित प्रदेश में अशांति फैलाने के प्रयास निरंतर हो रहे हैं। देखा जाये तो लद्दाख में एक दिन पहले हुई हिंसक घटनाओं ने पूरे देश को चौंका दिया, जिसमें चार लोगों की मृत्यु हो गयी और 80 से अधिक लोग घायल हो गये।
खास बात यह रही कि इन घटनाओं के केंद्र में पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक का नाम एक बार फिर प्रमुखता से उभर कर सामने आया है।
हम आपको बता दें कि सोनम वांगचुक स्वयं को जलवायु कार्यकर्ता के रूप में प्रस्तुत करते हैं, लेकिन उनके बयानों और आंदोलनों ने कई बार लद्दाख में अस्थिरता पैदा की है। वर्ष 2024 में उन्होंने दिल्ली की ओर एक पदयात्रा के दौरान प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि लद्दाख को लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है और बेरोज़गारी बढ़ रही है। उनके शब्दों में, “लद्दाखियों के पर काट दिए गए हैं, उन्हें लोकतंत्र नहीं दिया गया और उनके हाथ काट दिए गए हैं, क्योंकि रोजगार उपलब्ध नहीं है।” ऐसे बयानों ने न केवल युवाओं में असंतोष को हवा दी बल्कि यह संदेश भी दिया कि केंद्र सरकार जानबूझकर स्थानीय लोगों को दरकिनार कर रही है।
उल्लेखनीय है कि सोनम वांगचुक दिल्ली बॉर्डर पर धरना दे चुके हैं और वहाँ से लौटकर उन्होंने लद्दाख के युवाओं में आंदोलन की लहर जगाने की कोशिश की थी। आरोप है कि वह बार-बार ऐसे मंच चुनते हैं, जहाँ से उनका संदेश सीधे-सीधे लद्दाख के संवेदनशील समाज को आंदोलित करता है। बुधवार को जिस तरह से राज्य के दर्जे और ‘छठी अनुसूची’ की मांग को लेकर प्रदर्शन हिंसक हुआ, वह लद्दाख के हालिया इतिहास का सबसे काला दिन कहा जा सकता है। लेह की सड़कों पर कर्फ्यू लगाना पड़ा, वाहन जलाए गए, पुलिस पर हमले हुए और अंततः सुरक्षा बलों को भीड़ पर नियंत्रण के लिए आंसू गैस छोड़नी पड़ी। देखा जाये तो यह कोई स्वस्फूर्त घटना नहीं, बल्कि लगातार चल रही असंतोष की राजनीति का परिणाम था। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने स्थिति को शाम चार बजे तक नियंत्रण में लाने की पुष्टि की और साथ ही यह भी कहा कि पुरानी या भड़काऊ वीडियो सोशल मीडिया पर न फैलाएं। इससे यह संकेत मिलता है कि हिंसा फैलाने में सोशल मीडिया की भी बड़ी भूमिका रही।
देखा जाये तो लद्दाख की भौगोलिक स्थिति इसे और भी संवेदनशील बनाती है। यह क्षेत्र सीधे पाकिस्तान और चीन की सीमा से सटा हुआ है। यहां किसी भी प्रकार की अशांति भारत की सुरक्षा और सामरिक हितों पर सीधा प्रभाव डाल सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि स्थानीय स्तर पर असंतोष को हवा दी जाती है, तो इसका फायदा दुश्मन देशों द्वारा उठाया जा सकता है। चीन और पाकिस्तान लंबे समय से लद्दाख में अस्थिरता पैदा करने की कोशिश करते रहे हैं। ऐसे में वांगचुक जैसे लोगों के भड़काऊ बयान और आंदोलन न केवल स्थानीय शांति को खतरे में डालते हैं, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी जोखिमपूर्ण हैं।
हालांकि यह सच है कि लद्दाख के लोगों की कुछ वास्तविक चिंताएँ हैं जैसे- राज्य की मांग, संविधान की छठी अनुसूची में सुरक्षा और रोजगार के अवसर। लेकिन जब इन्हीं मुद्दों को इस तरह प्रस्तुत किया जाता है कि लोग शासन से पूरी तरह मोहभंग महसूस करें और हिंसा पर उतारू हो जाएँ, तब यह आंदोलन लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग से हटकर अराजकता का रूप ले लेता है। सोनम वांगचुक पर आरोप है कि वह अपनी लोकप्रियता का इस्तेमाल जनभावनाओं को शांत करने की बजाय भड़काने में करते हैं।
देखा जाये तो लद्दाख को स्थायी शांति और विकास की ओर ले जाने के लिए केंद्र सरकार को अब और अधिक संवेदनशील तथा संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा। गृह मंत्रालय ने संवैधानिक सुरक्षा देने की बात दोहराई है, जो कि सही दिशा में कदम है। लेकिन साथ ही यह भी आवश्यक है कि समाज के भीतर से ऐसे तत्वों को चिन्हित किया जाए जो आंदोलन की आड़ में क्षेत्र को अस्थिर करने का प्रयास करते हैं। लद्दाख भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रहरी है। यहां हिंसा और अव्यवस्था किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं हो सकती। सोनम वांगचुक जैसे नेताओं को यह समझना होगा कि उनके शब्द और कार्य केवल आंदोलन को नहीं, बल्कि पूरे देश की सुरक्षा को प्रभावित करते हैं। लोकतंत्र में असहमति का स्थान है, लेकिन जब असहमति हिंसा में बदल जाए, तो यह न केवल उस क्षेत्र बल्कि पूरे राष्ट्र के लिए खतरे का संकेत बन जाती है।
साथ ही लद्दाख के युवाओं को भी यह समझना होगा कि वह ऐसे नेताओं से सावधान रहें जो लोकतांत्रिक तरीकों से अपनी बात सरकार तक पहुँचाने की बजाय उग्र आंदोलनों और टकराव की राह चुनते हैं। सोनम वांगचुक जैसे लोग भले ही आंदोलनों की शुरुआत करें और युवाओं को सड़कों पर उतरने के लिए प्रेरित करें, लेकिन जब स्थिति हिंसा में बदलती है, तो वही लोग शांति की अपील करके स्वयं किनारे हो जाते हैं। तब तक नुकसान केवल उन मासूम युवाओं का होता है, जिनका भविष्य दांव पर लग चुका होता है। यह समय है कि लद्दाख के युवा विवेकपूर्ण निर्णय लें और लोकतांत्रिक व्यवस्था के भीतर रहकर अपनी मांगें रखें, ताकि उनका आंदोलन दुश्मन की साजिश का हिस्सा न बने और न ही उनका जीवन हिंसा की आग में झुलसे।
सोनम वांगचुक पर्यावरण कार्यकर्ता हैं या साजिशकर्ता?
“राष्ट्रीय सुरक्षा और संवेदनशील क्षेत्रों की हर हलचल, सबसे पहले”

Highlights
- • लद्दाख में हाल की हिंसा में चार लोगों की मृत्यु और 80+ घायल। • हिंसक घटनाओं के केंद्र में पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के बयान और आंदोलनों का आरोप। • सोनम वांगचुक ने पहले भी लोकतांत्रिक अधिकारों और बेरोज़गारी के मुद्दे उठाए थे, जिससे असंतोष फैला। • लेह में हिंसा के दौरान कर्फ्यू लागू, वाहन जलाए गए और पुलिस पर हमला। • केंद्रीय गृह मंत्रालय ने स्थिति नियंत्रण में आने की पुष्टि की और सोशल मीडिया पर भड़काऊ सामग्री फैलाने से रोकने का आदेश दिया। • लद्दाख की संवेदनशील भौगोलिक स्थिति इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बनाती है। • चीन और पाकिस्तान की संभावित साजिश के मद्देनजर स्थानीय अशांति राष्ट्रीय हित के लिए जोखिमपूर्ण। • स्थानीय युवाओं को विवेकपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से अपनी मांग रखने की सलाह। • केंद्र सरकार को संवेदनशील और संतुलित दृष्टिकोण अपनाकर स्थायी शांति और विकास सुनिश्चित करने की आवश्यकता। • हिंसा में शामिल तत्वों की पहचान और अस्थिरता फैलाने वालों पर कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता।