गणेश दत्त पाठक (वरिष्ठ स्तंभकार)
किसी ने ठीक ही कहा है कि बिना लड़े दुश्मन को परास्त करना युद्ध की सर्वोच्च कला है। आज जब सांस्कृतिक स्तर पर घातक प्रहारों का सामना कर रहा हैं तो आवश्यकता इस बात की है कि वैचारिक विचार मंथन से भारत के स्व के जागरण के प्रयास हों। सदियों से भारतीय सभ्यता और संस्कृति ने हजारों प्रहारों को झेला। कई विकट चुनौतियां भी आईं । अभी भी अंतराष्ट्रीय, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक स्तर पर कई चुनौतियों का सामना पड़ रहा है। अभी अमेरिका से टैरिफ विवाद का मामला हो या कुछ पूर्व आई कोरोना महामारी का संदर्भ। हर चुनौती के सामना, हर समस्या के समाधान के संदर्भ में भारत के स्व के जागरण की बड़ी भूमिका है। भारत का स्व, राष्ट्र बोध और शत्रु बोध के तथ्य को भी रेखांकित करता है।भारत के स्व को पहचानने की आवश्यकता नई पीढ़ी को ज्यादा है।
भारत का स्व एक अवधारणा है, जो प्राचीन काल से आध्यात्मिकता, संस्कृति और सनातनी मूल्यों मसलन दया, सहिष्णुता, त्याग, अहिंसा से जुड़ा रहा है। भारत का स्व भारत के विशिष्ट पहचान को रेखांकित करता है। जो मूल रूप से वसुधैव कुटुंबकम् की भावना पर आधारित है। भारत का स्व आध्यात्मिकता में निहित है, जो देश की संस्कृति और मूल्यों का आधारस्तम्भ है। भारत का स्व देश के समृद्ध और शाश्वत सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़ा हुआ है। भारत का स्व विविधता में एकता में समाहित है, जो सभी को साथ लेकर चलने की भावना को बढ़ावा देता है। भारत का स्व समावेशी विकास की बात करता है, जिसमें सभी वर्गों के लोगों के लिए मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति और सर्वांगीण विकास शामिल होता है। भारत का स्व स्वदेशी के भाव को बढ़ावा देता है जिसमें अपनी संस्कृति, मूल्यों और परम्पराओं का सम्मान और संरक्षण शामिल है। जब हम भारत के स्व को समझते हैं तो हम राष्ट्र निर्माण में सहभागिता निभाने की तरफ अग्रसर होते हैं। भारत के स्व को समझने से हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है और आत्मनिर्भरता की भावना बढ़ती है जिससे हम अपने देश की संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों पर गर्व कर पाते हैं।
वर्तमान दौर में देश कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। आर्थिक स्तर पर असमानता, बेरोजगारी, गरीबी, ग्लोबल मार्केट फोर्सेज, आदि समस्याएं, सामाजिक स्तर पर जाति आधारित भेदभाव, लैंगिक असमानता, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी, प्रकृति के स्तर पर जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण के विविध आयाम, भूमंडलीय तापन, जैव विविधता का क्षरण, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, राजनीतिक स्तर पर भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता, तुष्टिकरण की नीति और नीतिगत निर्णयों में पूर्वाग्रह और देरी, सांस्कृतिक स्तर पर नैतिक क्षरण, उपभोक्तावादी मनोवृति, आदि ने विकट समस्याएं उत्पन्न की है। इन सभी चुनौतियों का सामना करने के संदर्भ भारत का स्व एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भारत के स्व के तहत जब हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों और परम्पराओं के बारे में जानते हैं तो देश के लोगों में आत्म जागरूकता का भाव सृजित होता है। हमारी सांस्कृतिक पहचान हमारे आत्मविश्वास को ऊर्जस्वित करती है। भारत के स्व का परिचय आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन बनाने में मदद करता है।
भारत का स्व और आम नागरिक का स्वबोध आपस में जुड़ा हुआ है। जब आम आदमी स्वबोध को जागृत करते हैं तो वे अपने देश के प्रति अधिक जागरूक और जिम्मेवार बनते हैं। स्वबोध से मूल आशय व्यक्ति के आत्म मूल्यांकन से होता है जिसमें वह अपने व्यक्तित्व की खूबियों, कमियों, जीवन की चुनौतियों और अवसरों का वस्तुनिष्ठ और तार्किक आधार पर विश्लेषण करता है। जब आम आदमी अपने स्वबोध को जागृत करता है तो उसका आत्मविश्वास भी बढ़ता है। इससे भारत का स्व भी मजबूत होता है, जिसके अनेकानेक फायदे होते हैं। देश में सामाजिक एकता बढ़ती है जिससे विविध संस्कृतियों के बीच आपसी समझ बढ़ती है और परस्पर सम्मान की भावना भी बढ़ती है। इससे राष्ट्रीय पहचान मजबूत होती है। आर्थिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है। उद्यमिता के अवसर और रोजगार में बढ़ोतरी होती है। इससे भारतीय कला, संगीत, नृत्य, साहित्य को प्रोत्साहन मिलता है। प्रत्येक नागरिक में आत्मविश्वास और आत्मसम्मान की भावना जागृत हो सकती है। इससे वे अपने जीवन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम हो सकते हैं। जिससे समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने की संभावनाएं सृजित हो सकती है।
भारत के स्व को जागृत करने के लिए कई स्तरों पर प्रयास करने की आवश्यकता है। बहुत आवश्यक है कि भारत की समृद्ध और शाश्वत सांस्कृतिक विरासत को समझा जाए और उसका सम्मान किया जाय। अपनी जड़ों के बारे में स्तरीय जानकारी हमें अपनी पहचान के बारे में गर्व महसूस कराएगा। इसके लिए बहुत जरूरी होता है कि निरंतर अध्ययन मनन किया जाय। विचार विमर्श के आयोजनों में सहभागिता हो। शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से लोगों को भारत के इतिहास, संस्कृति और सनातनी मूल्यों के बारे में जागरूक किया जा सकता है। इससे लोगों में राष्ट्रीय गौरव की भावना को विकसित करने में भी मदद मिल सकती है। इस संदर्भ में राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान और उसके महत्व को समझना भी एक अनिवार्य तथ्य है। भारतीय कला, संगीत, नृत्य, और साहित्य को प्रोत्साहित करने से हमारी सांस्कृतिक पहचान को भी पर प्रतिष्ठा हासिल हो सकती है। देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देने और सक्रिय सामुदायिक योगदान से भी भारत के स्व को जागृत किया जा सकता है। विभिन्न संस्कृतियों के मध्य आपसी समझ और सम्मान की भावना को भी बढ़ाने की नितांत आवश्यकता है। आवश्यकता शिक्षा के पंचकोशीय अवधारणा पर काम करने की भी है जिसके माध्यम से अन्नमय कोष, प्राणमय कोष, मनोमय कोष, विज्ञानमय कोष एक आनंदमय कोष के विकास पर ध्यान देने की आवश्यकता भी है।
निश्चित तौर पर भारत के स्व को जागृत करने से होने वाले लाभ असंख्य हैं। लेकिन आज के डिजिटल और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के दौर में इस संदर्भ में बड़ी चुनौतियां भी मौजूद है। हर हाथ में मोबाइल आ जाने के कारण विशेषकर युवाओं का स्क्रीन टाइम बढ़ता जा रहा है। अधिकांश युवा मोबाइल आदि डिजिटल उपकरणों पर समय भी बहुत ज्यादा बर्बाद कर रहे हैं। साथ ही क्षेत्रवाद, राजनीतिक हिंसा, अपराधीकरण, नैतिकताविहीन राजनीति, जातिवाद, सांप्रदायिकता, गरीबी, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, सांस्कृतिक पहचान की चुनौती, उपभोक्तावादी संस्कृति आदि तथ्य भारत के स्व के जागरण पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं।
अपने राष्ट्रीय और सांस्कृतिक पहचान को प्रतिष्ठित करने के लिए तथा भारत के स्व के जागरण के लिए कई स्तरों पर प्रयास करने की आवश्यकता है। हम देशवासियों को निरंतर समर्पित और सार्थक प्रयास करने पर ही हम इस संदर्भ में कुछ उपलब्धियों को हासिल कर सकते हैं। अध्ययन, अध्यापन, मूल्यांकन, विश्लेषण, विमर्श के माध्यम से ही हम भारत के स्व को पहचान सकते हैं। जब हम भारत के स्व को पहचान लेंगे तो हमारी प्रतिष्ठा, पहचान, समृद्धि के नए मार्ग खुलेंगे जो राष्ट्र के निर्माण और विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा।
भारत के ‘स्व’ को पहचानने का समय
