इस देश के सांसदों-विधायकों को चाहिए कि वे सांसद-विधायक फंड के इस्तेमाल में जारी व्यापक भ्रष्टाचार के खिलाफ जोरदार आवाज उठायें। यदि वे वैसा करेंगे तो देश-प्रदेश के सरकारी कार्यालयों में व्याप्त अन्य तरह के भीषण भ्रष्टाचारों पर भी अंकुश लगना शुरू हो जाएगा। तब पैसे के बल पर कोई घुसपैठी, अपना आधार कार्ड, राशन कार्ड , मतदाता पहचान पत्र नहीं बनवा सकेगा। खबर है कि अपवादों को छोड़कर सांसद-विधायक फंड में सामान्यतः 40 प्रतिशत कमीशनखोरी होती है। इससे अन्य काम में लगे भ्रष्ट सरकारी कर्मियों को प्रेात्साहन मिलता है। वे महसूस करते हैं जब हमारे लोकतंत्र के प्रहरी ही आवाज नहीं उठा रहे हैं तो हमें भी बहती गंगा में हाथ धो ही लेना चाहिए। नब्बे के दशक से पहले अनेक सांसद-विधायक भ्रष्टाचार को लेकर सदन में बहुत से सवाल करते रहते थे। बड़ी बड़ी खबरें बनती थीं। सरजमीन पर भी भ्रष्टाचार के खिलाफ वे रोष प्रकट करते रहते थे। साठ के दशक से मैं देख रहा हूं।
अब यह सब काफी कम हो गया हैं। नतीजतन अधिकतर सरकारी कर्मी मध्ययुगीन जाजिया टैक्स की तरह ही जनता से बेधड़क रिश्वत वसूल रहे हैं। आज शायद ही कोई सरकारी काम मुफ्त में हो रहा है। इन पंक्तियों का लेखक भी हाल में इस दारुण स्थिति का भुक्तभोगी हुआ है।सरकारी दफ्तरों में किसी ‘परिचय’ का कोई अर्थ नहीं रह गया है। पैसा ही सब कुछ है। हर घूसखोर कहता है कि क्या करूं,ऊपर देना पड़ता है। रिश्वत देने के साथ-साथ काम कराने वालों को अनेक मामलों में अपमानित भी होना पड़ता है। कहीं पढ़ा है कि मध्य युग में जाजिया कर देने वालों को भी हर बार अपमानित होना पड़ता था। लेने वाला, देने वाले काफिरों की ओर थूका करता था। यही प्रथा थी ताकि थूक से बचने के लिए भी वे जल्द इस्लाम कबूल कर ले।
इस देश-प्रदेश के सरकारी महकमों में व्याप्त भीषण भ्रष्टाचार के कारण अवैध घुसपैठियों को काफी सुविधा मिल जा रही है।उनके लिए जाली आधार कार्ड, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र आसानी से बन जाते हैं। इस तरह दिल्ली में मुस्लिमों की आबादी दुगनी से भी अधिक हो चुकी है। जे.एन.यू.-टिस के ताजा सर्वेक्षण के अनुसार दिल्ली में सन 1951 में मुस्लिमों की आबादी जहां 5 दशमलव 7 प्रतिशत थी,वहीं 2011 में बढ़कर 12 दशमलव 8 प्रतिशत हो चुकी है। 2011 के बाद रोहिंग्या-बांग्लादेशियों की दिल्ली सहित पूरे देश में अपेक्षा कृत अधिक घुसपैठ हुई है।हो रही है।
इनका लक्ष है–आबादी बढ़ाकर भारत को भी इस्लामिक देश बना देना। इसीलिए 57 में से कोई भी मुस्लिम देश इन तथाकथित शरणार्थियों को अपने यहां शरण नहीं देता। यूरोप शरण देकर पछता रहा है। क्योंकि मुस्लिम देश चाहते हैं कि हमारी संख्या 57 से जल्द 58 हो जाए। इस काम में हमारे देश के तथाकथित सेक्युलर तथा मुस्लिम वोटलोलुप नेता व बुद्धिजीवीगण घुसपैठियों की तरह तरह से मदद कर रहे हैं। वे अपने पोेता-पोती के भविष्य पर भी ध्यान नहीं दे रहे हैं। वे कम्युनिस्ट नेता सज्जाद जहीर और जिन्ना दल के योगेंद्र नाथ मंडल के ‘भोगे हुए यथार्थ’ वाली कहानियों से भी कोई शिक्षा नहीं ले रहे हैं। बंटवारे के बाद बड़ी उम्मीद से ये दोनों पाकिस्तान चले गये थे। पर,एक मुस्लिम देश का असली स्वरूप देखकर इन दोनों ने जल्द ही बड़े बेआबरू होकर पाकिस्तान छोड़ दिया।फिर भारत की शरण ले ली थी।
बांग्ला देश की ताजा हिन्दू संहार की हृदय विदारक घटनाओं से भी भारत के वोट लोलुपों के दिल नहीं पसीज रहे हैं। बेचारा जयचंद ने तो गोरी के खिलाफ दूसरी बार पृथ्वीराज चौहान का सिर्फ साथ नहीं दिया था। जिस तरह मानसिंह ने अकबर के साथ मिलकर महाराणा से लड़ा था, उसके विपरीत जयचंद ने चौहान के खिलाफ गोरी का साथ नहीं दिया था। जयचंद सिर्फ तटस्थ रह गया था। इसके बावजूद आज कोई पिता अपने पुत्र का नाम आम तौर पर जयचंद नहीं रखता। पर, आज इस देश के वोट लोलुप नेता जेहादी मिजाज वाले बांग्लादेशी-रोहिंग्या घुसपैठियों की पूरी सक्रिय मदद कर रहे हैं और बदले में उनके वोट पा रहे है । इनका अपराध जयचंद से बड़ा है। इन वोट लोलुपों को जयचंद का हश्र शायद नहीं मालूम ! चौहान के खात्मे के बाद गोरी की सेना ने तो जयचंद को भी नहीं बख्शा और न ही संयोगिता को। क्योंकि गोरी की सेना के लिए जयचंद सिर्फ काफिर था।
घुसपैठियों के कारण पश्चिम बंगाल के हिन्दुओं की हालत इस देश में सर्वाधिक खराब होती जा रही है।इस बार भी बंगाल में कई जगह सरस्वती पूजा में बाधा पहुंचाई गई।मूत्र्तियां तोड़ी गयीं। सरस्वती माता की चुनरी खींची गई। जो कुछ पाकिस्तान और बांग्ला देश में गैर मुस्लिमों के साथ होता रहा है,वह अब छिटपुट भारत में भी होने लगा है। जैसे -जैसे घुसपैठियों की संख्या इस देश में बढती जाएगी,ऐसी घटनाएं काफी बढ़ेंगी। अंततः ‘आधुनिक जयचंद ’ भी नहीं बख्शे जाएंगे। (कम से कम जागरूक लोग अपने घरों में नई पीढ़ी को सज्जाद जहीर-योगेंद्र मंडल की कथाएं जरूर पढ़वायें।ताकि, वे सावधान हो जाएं और तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवियों को जवाब दे सकें।) कुछ सेेक्युलर दलों से प्रोत्साहन पाकर जेहादी संगठन पी.एफ.आई.इस देश में गृह युद्ध के लिए कातिलों के दस्ते तैयार कर रहा है।उसका लक्ष्य सन 2047 है।
वक्फ की एक -एक इंच जमीन के लिए, भले उस जमीन का कागजी सबूत उनके पास नहीं है, औवेसी लड़ेंगे, ऐसा वे कह रहे हैं। उस भावी ‘लड़ाई’ के लिए उन्होंने दिल्ली दंगे के दो मशहूर लड़ाकू आरोपितों को दिल्ली विधान सभा चुनाव में उम्मीदवार भी बना दिया है। सी.ए.ए.के खिलाफ शाहीन बाग धरने के बाद दंगा हुआ था। तब मुसलमानों को गलत तथ्य देकर भड़काया गया था कि सी.ए.ए. लागू होने से मुसलमानों की नागरिकता खतरे में पड़ जाएगी। वह लागू हो रहा है। पर किसी मुस्लिम की नागरिकता नहीं जा रही है। दरअसल ‘शाहीन बाग’ इसलिए किया गया था क्योंकि जेहादी नहीं चाहते थे कि घुसपैठ तथा अन्य तरीके से आबादी का अनुपात बढ़ाने की उनकी रफ्तार कम हो जाए।
उसी तरह वक्फ संशोधन काूनन का विरोध इसलिए हो रहा है ताकि उनके कब्जे वाली किसी जमीन को उनसे छीना न जा सके भले जिन जमीन के कोई कागजी सबूत उनके पास नहीं है। याद रहे कि वक्फ सशोधन कानून उस जमीन को मुसलमानों से छीनने नहीं जा रहा है जिस जमीन का कागजी सबूत वक्फ के पास है। ऐसे निराधार आंदोलनों को सेक्युलर दल शाहीन बाग में भी जाकर समर्थन कर रहे थे और वक्फ संशोधन कानून मामले में भी अतिवादी मुसलमानों का समर्थन कर रहे हैं।यह इस देश का दुर्भाग्य है।इसीलिए तो हम सैकड़ों साल तक गलाुम रहे !!!