कला के ज़रिए समावेशी सृजन की ओर एक कदम: ‘मास्टर स्ट्रोक्स’ में शांभवी शर्मा की प्रेरक पहल

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कला में वह ताकत है जो न सिर्फ दिलों को जोड़ती है, बल्कि मन को भी उपचार देती है और आत्मा को संबल प्रदान करती है। दिल्ली की युवा कलाकार शांभवी शर्मा इसी विश्वास के साथ वर्षों से काम कर रही हैं — ताकि यह शक्ति समाज के हर वर्ग तक पहुँच सके।

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शांभवी Unruly Art के साथ विशेष रूप से सक्षम बच्चों के लिए एक रचनात्मक मंच प्रदान कर रही हैं, जहाँ वे पेंटिंग के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकें। वहीं Project Prakash के साथ उनका जुड़ाव दृष्टिबाधित बच्चों को कला के स्पर्शात्मक अनुभव से जोड़ने का एक अनूठा प्रयास है।
शांभवी कहती हैं,“कला दुनिया को देखने का एक तरीका है,”
“मैं चाहती थी कि ये बच्चे इसकी विविधता को महसूस करें। उनकी उत्सुकता और मुस्कान मेरे लिए सबसे बड़ी प्रेरणा रही।”

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Unruly Art के माध्यम से शांभवी ने बच्चों को रंगों से खेलने और नई तकनीकों को अपनाने की आज़ादी दी, जिससे उनका आत्मविश्वास निखर कर सामने आया। Project Prakash में उन्होंने कला को स्पर्श, बनावट और अनुभव के ज़रिए दृष्टिबाधित बच्चों तक पहुँचाने के रास्ते खोजे — यह पहल कला को वास्तव में समावेशी बनाने की दिशा में एक ठोस कदम है।


हाल ही में शांभवी ने दिल्ली केइंडिया हैबिटैट सेंटरमें आयोजित प्रतिष्ठित ‘मास्टर स्ट्रोक्स’ प्रदर्शनी में भाग लिया, जिसे प्रख्यात कलाकारश्री किशोर लबारद्वारा क्यूरेट किया गया था। इस प्रदर्शनी में देशभर से चुने गए कलाकारों की रचनाएँ प्रदर्शित की गईं, जो विविध शैलियों और विचारों को दर्शा रही थीं।

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शांभवी के लिए यह अवसर केवल अपनी कला को प्रदर्शित करने का नहीं था, बल्कि Unruly Art और Project Prakash के बच्चों को एक प्रोफेशनल आर्ट गैलरी के अनुभव से परिचित कराने का भी मंच बना। बच्चों ने प्रदर्शनी में न सिर्फ चित्रों को सराहा, बल्कि उन्होंने उनके पीछे की तकनीक, कल्पना और भावनाओं को भी समझने की कोशिश की। कुछ बच्चों ने प्रदर्शित कलाकृतियों में अपनी बनाई चित्रों की झलक भी पाई — यह उनके लिए आत्मविश्वास और जुड़ाव का दुर्लभ अनुभव था। श्री किशोर लबारने भी इस पहल की सराहना करते हुए कहा,


“कला का उद्देश्य ही समावेशिता है। शांभवी जैसे युवा कलाकार जब समाज के विशेष बच्चों को इस दुनिया से जोड़ते हैं, तो वह कला के असली सार को जीते हैं।”
शांभवी का मानना है किरचनात्मकता केवल कैनवास तक सीमित नहींहै — यह एक सेतु है, जो समाज के विभिन्न हिस्सों को जोड़ता है। वह निरंतर ऐसे प्रयोग कर रही हैं, जो कला को अधिक सुलभ, संवेदनशील और प्रभावशाली बना सकें।
गौरतलब है कि शांभवी एकप्रशिक्षित कुचिपुड़ी नृत्यांगनाभी हैं, और नृत्य तथा चित्रकला दोनों के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति को एक नया विस्तार देती हैं। रंगों और गति के इस अनूठे संगम में ही उन्हें संपूर्ण कलात्मकता का अनुभव होता है।

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