“तेजस्वी यादव बने ‘महागठबंधन संकट’ के गुनहगार? सीट बंटवारा विवाद से पटरी से उतरा ग्रैंड अलायंस”

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तेजस्वी यादव की सीट बंटवारा रणनीति ने बिहार चुनाव 2025 में महागठबंधन की बढ़त को बर्बाद किया
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  • • अप्रैल में गठित हुई महागठबंधन समन्वय समिति • तेजस्वी यादव बने संयोजक, सीट बंटवारा पर चुप्पी • कांग्रेस ने 78, माले ने 28 और राजद ने 135 सीटें मांगीं • लैंड फॉर जॉब केस ने बदल दी राजनीतिक दिशा • राहुल गांधी और तेजस्वी की यात्राओं ने पैदा किया भ्रम • मगध क्षेत्र में मुस्लिम प्रत्याशी न देने पर विवाद • एनडीए ने सीट शेयरिंग तय कर बढ़त बना ली

महागठबंधन सीट बंटवारा विवाद: तेजस्वी यादव की रणनीति से कैसे हिली बिहार की राजनीति?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सबसे बड़ी राजनीतिक कहानी अब सिर्फ एनडीए की बढ़त की नहीं, बल्कि महागठबंधन के अप्रत्याशित बिखराव की है।
अप्रैल महीने तक जो महागठबंधन (Grand Alliance) मजबूत दिखाई दे रहा था, वही अक्टूबर तक पूरी तरह से पटरी से उतर गया।
और इस बिखराव के केंद्र में खड़े हैं तेजस्वी यादव, जो महागठबंधन के समन्वय समिति संयोजक भी थे।

अप्रैल में शुरू हुआ था “महागठबंधन मिशन 2025”

“तेजस्वी यादव बने ‘महागठबंधन संकट’ के गुनहगार? सीट बंटवारा विवाद से पटरी से उतरा ग्रैंड अलायंस” 1

अप्रैल में बिहार जीतने के इरादे से महागठबंधन ने समन्वय समिति का गठन किया था।
तेजस्वी यादव को संयोजक बनाया गया और इसी के आधार पर राजद समर्थकों ने तेजस्वी को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करने की माँग तेज़ कर दी।
कांग्रेस के कई नेताओं ने भी इस दावे का समर्थन किया, जबकि राहुल गांधी इस पर चुप रहे।
यह तर्क दिया गया कि पहले संयोजक की जिम्मेदारी निभाकर तेजस्वी अपनी क्षमता साबित करें, तभी मुख्यमंत्री पद का दावा बनता है।

सीट बंटवारे से भागते रहे तेजस्वी

अप्रैल से सितंबर तक तेजस्वी यादव लगातार समन्वय समिति की बैठकें करते रहे, मगर सीट शेयरिंग पर निर्णय नहीं लिया।
कांग्रेस ने 78 सीटों की सूची सौंप दी थी, माले ने 28 सीटें मांगी थीं और राजद खुद 135 सीटों पर लड़ना चाहती थी।
इतना समीकरण कठिन नहीं था — थोड़ा समायोजन कर समझौता संभव था।
लेकिन तेजस्वी की रणनीति कुछ और थी। उन्होंने सीट बंटवारे को लगातार टालते हुए समय निकालना शुरू किया।

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राहुल गांधी की यात्रा और तेजस्वी की “वोट अधिकार यात्रा”

इसी बीच राहुल गांधी वोट अधिकार यात्रा पर निकल पड़े, जिसमें तेजस्वी भी शामिल हुए।
इस यात्रा ने एनडीए के लिए मुश्किलें बढ़ा दी थीं। लेकिन इसके तुरंत बाद तेजस्वी ने “बिहार अधिकार यात्रा” शुरू कर दी — जो अंदरूनी तौर पर राहुल की यात्रा को कमजोर करने की कोशिश मानी गई।
विशेषज्ञों का कहना है कि तेजस्वी की यह रणनीति महागठबंधन को अंदर से कमजोर करने वाली साबित हुई।

अक्टूबर में आया बड़ा मोड़ — लैंड फॉर जॉब केस

13 अक्टूबर के बाद बिहार की राजनीति में सबकुछ बदल गया।
दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट में लालू यादव, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव को लैंड फॉर जॉब केस में पेश होना पड़ा।
तेजस्वी पहले से ही आईआरसीटीसी होटल भ्रष्टाचार केस में घिरे हुए थे।
इन कानूनी झंझटों के बीच उन्होंने सीट बंटवारे की प्रक्रिया लगभग रोक दी।
इसी दौरान खबर आई कि तेजस्वी राहुल गांधी से मिले बिना पटना लौट आए।
यह वही पल था जब महागठबंधन की एकजुटता पर सबसे बड़ा झटका लगा।

एनडीए ने बढ़त बनाई, महागठबंधन बिखर गया

जब महागठबंधन आपसी खींचतान में उलझा रहा, उसी समय एनडीए ने सीट बंटवारा तय कर लिया।
एक झटके में एनडीए ने अभियान शुरू कर दिया और विपक्षी कैंप में सन्नाटा छा गया।
तेजस्वी बतौर संयोजक महागठबंधन को जोड़कर रखने में नाकाम रहे।
सीट बंटवारे में उनकी भूमिका को लेकर अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह रणनीतिक गलती थी या राजनीतिक प्रयोग।

मगध में मुस्लिम उम्मीदवार न देने पर विवाद

तेजस्वी यादव पर सबसे बड़ा आरोप मगध क्षेत्र में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं देने का लगा।
26 विधानसभा सीटों में किसी मुस्लिम को टिकट नहीं मिला।
इस फैसले ने न केवल राजद के सेकुलर इमेज को नुकसान पहुंचाया, बल्कि AIMIM के साथ गठबंधन की संभावनाओं को भी खत्म कर दिया।
ओवैसी की पार्टी मात्र 6 सीटें मांग रही थी, लेकिन तेजस्वी ने उसे भी नकार दिया।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस कदम ने सेकुलर वोटों का विभाजन पक्का कर दिया।

कांग्रेस और माले बने तमाशबीन

जब महागठबंधन बिखर रहा था, कांग्रेस तमाशा देखती रही और माले सिर्फ अपनी सीटें बचाने की जुगत में लगी रही।
मुकेश सहनी डिप्टी सीएम बनने की उम्मीद पाले बैठे थे, और तेजस्वी ने कभी इस संभावना से इनकार नहीं किया।
इससे आंतरिक असंतोष और बढ़ गया।
कांग्रेस ने बार-बार कहा कि “सीट बंटवारे में देरी महागठबंधन को नुकसान पहुंचा रही है”, मगर किसी ने सुनी नहीं।

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तेजस्वी यादव बने ‘महागठबंधन संकट’ के प्रतीक

आज जब बिहार चुनाव की दिशा पलट चुकी है, तो यह साफ है कि
महागठबंधन की हार का सबसे बड़ा कारण सीट बंटवारा विवाद और नेतृत्व की विफलता रही।
तेजस्वी यादव, जो गठबंधन को जोड़ने निकले थे,
वही महागठबंधन के बिखराव के ‘गुनहगार’ बन गए।
इतिहास जब बिहार चुनाव 2025 की कहानी लिखेगा, तो तेजस्वी का नाम एक ऐसे नेता के रूप में दर्ज होगा,
जिसने बढ़त को अपने ही हाथों से फिसलने दिया।

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