महाकुंभ-2025 का अगाज हो चुका है। जिसका समापन 26 फरवरी 2025, महाशिवरात्रि को होगा। 45 दिन तक चलने वाले इस महाकुंभ में तीन शाही स्नान होंगे। प्रयागराज के इस महाकुंभ में स्नान करना काफी शुभ माना जा रहा है। महाकुंभ की बात अगर करें तो धार्मिक महत्व और इसके दंत कथाओं से जुड़ी रोचक कहानी। वैसे हिन्दुओं की पौराणिक ग्रंथ वेद और पुराण में में महाकुंभ को लेकर कोई चर्चा नहीं है। लेकिन, इससे जुड़ी कई दंत कथाएं है।
हिंदू ग्रंथो में कुंभ मेले को ‘अमरत्व का मेला’ कहा गया है। इसीलिए कुंभ के मेले में अपनी अन्तरात्मा की शुद्धि के लिए लाखों श्रद्धालु इस पवित्र स्थान पर स्नान करने के लिए आते हैं। महाकुंभ में दुनिया भर के संत-साधु व भक्त आस्था की डुबकी लगाते हैं। कुंभ मेला में शाही स्नान का विशेष महत्व है। जानते हैं सबसे पहला महाकुंभ कहा लगा था?
कुंभ मेले से जुड़ी दंत कथाओं के संबंध में समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को लेकर देवताओं और राक्षसों में युद्द हुआ। इस युद्द में राक्षसों ने देवताओं को हराकर अमृत अपने पास रख लिया। इसके बाद देवताओं ने राक्षसों से अमृत कलश चुरा लिया। देवता जब राक्षसों से चुराकर यह अमृत कलश स्वर्ग ले जा रहे थे, इसी क्रम में अमृत कलश की चार बूंदे छलक कर पृथ्वी पर गिर पड़ा। आज उन्हीं चार स्थानों पर महाकुंभ लगता है। महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज के संगम, हरिद्वार में गंगा नदी, उज्जैन में शिप्रा नदी और नासिक में गोदावरी नदी पर किया जाता है। इस बार प्रयागराज में महाकुंभ मेले का आयोजन हो रहा है।
दरअसल, समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को देवताओं ने चुराने के लिए इंद्र के बेटे जयंत को भेजा। जयंत पक्षी का रुप लेकर धोखे से अमृत कलश चुराकर इसे स्वर्ग लेकर आए और फिर इसे स्वर्ग में हीं छिपा दिया। राक्षसों के घर से अमृत कलश को चुराने के लिए जयंत के साथ चार और देवता चंद्रमा, सूर्य, बृहस्पति और शनि को भेजा गया था। इन सभी को कई महत्वपूर्ण जिम्मेवारी दी गई थी। इसमें बृहस्पति को राक्षसों को रोकना था तो शनि को जयंत की निगरानी करनी थी कि वह सारा अमृत खुद ही नहीं पी जाए। इसी प्रकार से चंद्रमा को कलश को छलकने से बचाना था।
दंत कथाओं के अनुसार राक्षसों के घर से अमृत कलश तो चुरा लिया। राक्षसों के घर से स्वर्ग ले जाने के क्रम में अमृत कलश से चार बूंदें छलक कर पृथ्वी पर गिर पड़ा। अमृत कलश के चार बूंदें छलक कर जहां पर गिरा वहीं पर महाकुंभ लगता है। अमृत कलश से जहां भी बूंदें छलक कर गिरी वह स्थान पवित्र हो गया और यहां पर स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ती होती है। यही कारण है कि इन जगहों पर महाकुंभ लगता है। कहा जाता है कि अमृत कलश को चुराने के लिए जयंत के साथ सूर्य, चंद्र, बृहस्पति और शनि गए थे। यही कारण है कि इन ग्रहों के स्थिति के कारण तय होता है कि कुंभ कहां पर लगेगा।
पौराणिक कथाओं में समुद्र मंथन के साक्ष्य तो मिलते हैं। लेकिन अमृत के चार जगहों पर छलकने या कुंभ के आयोजन का कोई जिक्र नहीं है। हालांकि दंतकथाओं में कुंभ की कहानी की चर्चा है। चूंकि राक्षसों के पास से स्वर्ग तक जानें में इंद्र के बेटे जयंत को 12 दिन लग गए थे और देव कुल का एक दिन पृथ्वी के 12 दिनों के बराबर होता है। इस कारण प्रत्येक 12 वर्षों पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। दंतकथाएं ऐसी अलिखित इतिहास है जो कहानी की तरह हर पीढ़ी, अपनी अगली पीढ़ी को सुनाती है। यहा से प्रत्येक 12 वर्ष पर लगने वाले कुंभ मेले की शुरुआत सनातन धर्म में है।
13 जनवरी (सोमवार)- स्नान, पौष पूर्णिमा
14 जनवरी (मंगलवार)- शाही स्नान, मकर सक्रांति
29 जनवरी (बुधवार)- शाही स्नान, मौनी अमावस्या
3 फरवरी (सोमवार)- शाही स्नान, बसंत पंचमी
12 फरवरी (बुधवार)- स्नान, माघी पूर्णिमा
26 फरवरी (बुधवार)- स्नान, महाशिवरात्रि
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