महात्मा गांधी हमारे स्वाधीनता आंदोलन के सिर्फ नायक या समाज सुधारक मात्र ही नहीं थे। वे नौजवानों और विद्यार्थियों से मिलना-जुलना भी बेहद पसंद करते थे। वे स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्लायों में लगातार जाया करते थे। वे पहली बार राजधानी दिल्ली 12 मार्च 1915 को आए तो सेंट स्टीफंस कॉलेज में ही ठहरे। वे वहां पर सेंट स्टीफंस कॉलेज और हिन्दू कॉलेज के छात्रों और फेक्ल्टी से भी मिले। उनके तमाम सवालों के उत्तर दिए। उनसे दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद से जुड़े बहुत सारे सवाल पूछे गए थे। उसके बाद वे 1918 में फिर दिल्ली आए तो पुनः सेंट स्टीफंस कॉलेज में ही ठहरे। उन्हें यहां पर ब्रजकृष्ण चांदीवाला नाम के एक छात्र मिले जो आगे चलकर उनके पुत्रवत से हो गए। जब गांधी जी की 30 जनवरी, 1948 को हत्या हुई तो ब्रज कृष्ण चांदीवाला बिड़ला हाउस में ही थे।31 जनवरी,1948 को गांधी जी की अत्येष्टि होनी थी। गांधी जी को अंतिम बार स्नान उनके परम शिष्य ब्रज कृष्ण चांदीवाला ने रात को दो बजे करवाया था। हालांकि तब बापू के सबसे छोटे पुत्र देवदास गांधी भी वहां ही थे। सेंट स्टीफंस क़ॉलेज में गांधी जी के नाम से एक अध्ययन केन्द्र भी चलता है। देश का यह शिखर कॉलेज गांधी जी और उनके सहयोगी दीनबंधु सी.एफ.एंड्रयूज से प्रेरणा पाता है। दीनबंध एंड्रयूज उसी दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी (डीबीएस) से जुड़े हुए थे जिसने सेंट स्टीफंस क़ॉलेज और सेंट स्टीफंस अस्पताल की स्थापना की थी। अब गांधी जी के सत्य और अहिंसा के विचारों को मानने वाली दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी (डीबीएस) सेंट स्टीफंस कैम्बिज स्कूल स्थापित करने जा रही है। यह स्कूल दिल्ली से सटे हरियाणा के राई क्षेत्र में खुल रहा है। इस स्कूल को खोलने के पीछे मकसद यही है ताकि देश के गांवों और पिछड़े क्षेत्रों के बच्चों को श्रेष्ठ शिक्षा मिल सके। संयोग से सेंट स्टीफंस कैम्ब्रिज स्कूल वहां खुल रहा जिसे किसानों के रहनुमा और स्वाधीनता सेनानी चौधरी छोटूराम का गढ़ माना जाता है। चौधरी छोटूराम किसानों के मसीहा कहे जाते थे और उनकी शिक्षा दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज में ही हुई थी। वे आजादी से पहले पंजाब सूबे की कैबिनेट के सदस्य थे। उनका जन्म मौजूदा रोहतक जिले में 1881 में हुआ था। तब रोहतक पंजाब का ही हिस्सा था। दिल्ली, पश्चिम उत्तर प्रदेश और हरियाणा का जाट समाज चौधरी छोटू राम को लेकर बहुत आदर का भाव रखता है।
इस बीच, गांधी जी दिल्ली में दलित बच्चों को भी पढ़ाते रहे थे । यह तथ्य कम ही लोग जानते हैं। यहां उनकी पाठशाला चलती थी। वे अपने छात्रों को अंग्रेजी और हिन्दी पढ़ाते थे। उनकी कक्षाओं में सिर्फ बच्चे ही नहीं आते थे। उसमें बड़े-बुजुर्ग भी रहते थे। वे मंदिर मार्ग के वाल्मिकि मंदिर में 214 दिन रहे। 1 अप्रैल 1946 से 10 जून 1947 तक। वे शाम के वक्त मंदिर से सटी वाल्मिकी बस्ती में रहने वाले परिवारों के बच्चों को पढ़ाते थे। उनकी पाठशाला में खासी भीड़ हो जाती थी। बापू अपने उन विद्यार्थियों को ज़रूरत के मुताबिक़ फटकार भी लगा देते थे, जो कक्षा में साफ-सुथरे हो कर नहीं आते थे। वे स्वच्छता पर विशेष ध्यान देते थे। वे मानते थे कि स्वच्छ रहे बिना आप ज्ञान अर्जित नहीं कर सकते। यह संयोग ही है कि इसी मंदिर से सटी वाल्मिकी बस्ती से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2 अक्तूबर 2014को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी। कहना न होगा कि स्वच्छ भारत अभियान से देश में साफ-सफाई के लिए एक तरह की अद्भुत जागरूकता पैदा हुई। वह मंजर यकीनन यादगार था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं झाड़ू लेकर दिल्ली की सड़कों पर सफाई करने उतरे थे। उनके पीछे- पीछे उनके मंत्रिमंडल के कई मंत्रियों से लेकर सरकारी बाबुओं तक का हुजूम भी सड़कों पर उतर आया था। 2014 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती के दिन ही प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत मिशन का आगाज किया था। महात्मा गांधी की जयंती पर उन्हें इससे बेहतर श्रद्धांजलि शायद दी भी नहीं जा सकती थी। अब स्वच्छता अभियान के असर देश के गांवों में भी दिखाई देने लगा हैं। गांधी जी कहते थे कि भारत की आत्मा गांवों में ही बसती है।
खैर,गांधी जी वाल्मिकी मंदिर के जिस कमरे में पढ़ाते थे, वह अब भी पहले की तरह ही बना हुआ है। यहाँ एक चित्र रखा है,जिसमें कुछ बच्चे उनके पैरों से लिपटे नजर आते हैं। गांधी जी की कोशिश रहती थी कि जिन्हें कतई लिखना-पढ़ना नहीं आता , वे कुछ हद तक तो लिख-पढ़ सकें।
इसी वाल्मिकी मंदिर में गांधीजी से विचार-विमर्श करने के लिए नेहरू से लेकर सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान भी आते थे। सीमांत गांधी यहां बापू के साथ कई बार ठहरे भी थे। वाल्मिकी समाज की तरफ से प्रयास हो रहे हैं कि इधर गांधी शोध केन्द्र की स्थापना हो जाए। गांधी जी की संभवत: महानतम जीवनी ‘दि लाइफ आफ महात्मा गांधी’ के लेखक लुई फिशर भी उनसे वाल्मिकी मंदिर में ही मिलते थे। वे 25 जून,1946 को दिल्ली आए तो यहां पर बापू से यहीं मिलने पहुंचे थे । उस समय इधर प्रार्थना सभा की तैयारियां चल रही थीं। ‘दि लाइफ आफ महात्मा गांधी’ को आधार बनाकर ही फिल्म गांधी का निर्माण हुआ था।
गांधीजी का बनारस से से भी गहरा संबंध रहा। वे अपने जीवनकाल में 12 बार बनारस आए। उन्होंने 5 फरवरी 1916 को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रों और अध्यापकों को संबोधित किया था। वहां पर तब बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का स्थापना समारोह मनाया जा रहा था। साथ में बीएचयू के संस्थापक पं. मदन मोहन मालवीय, एनी बेसेंट, दरभंगा के राजा रामेश्वर सिंह के साथ कई रियासतों के राजा वहां मौजूद थे। गुजराती वेशभूषा (धोती, पगड़ी और लाठी) में आए गांधीजी ने मंच से लोगों के सामने तीन बातें रखी थीं।गांधीजी ने कहा था- देश की जनता, छात्र और आप सभी भारत का स्वराज कैसा चाहते हैं? इसी बीच गांधीजी की नजर वहां मौजूद राजाओं के आभूषणों पर पड़ी। उन्होंने कहा- अब समझ में आया कि हमारा देश सोने की चिड़िया से गरीब कैसे हो गया? आप सभी को अपने स्वर्ण जड़ित आभूषणों को बेचकर देश के जनता की गरीबी दूर करनी चाहिए। कहना न होगा कि गांधी जी देश के नौनिहालों से बीच जाकर बहुत बेहतर महसूस करते थे और उनमें देश का भविष्य देखते थे।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)