अशोक भाटिया

बसपा प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी के सभी पदों से हटा दिया । उनकी जगह पर अपने भाई आनंद कुमार और रामजी गौतम को पार्टी का राष्ट्रीय कोओर्डिनेटर बनाया है। आकाश आनंद को हटाने की सारी जिम्मेवारी उनके ससुर अशोक सिद्धार्थ की है। अशोक ने पार्टी को नुकसान पहुंचाने के साथ ही आकाश के राजनीतिक कैरियर को भी खराब कर दिया है। दोनों कोआर्डिनेटरों में से एक आनंद कुमार का प्रमुख कार्य दिल्ली में रहकर पार्टी का पूरा पेपर वर्क अन्य जरूरी कार्य देखेना होगा। साथ ही पूरे देश में अपना सम्पर्क बनाकर रखेंगे। वहीं रामजी गौतम राज्यों में जाकर पार्टी की प्रगति रिपोर्ट लेंगे। पार्टी के जनाधार को भी बढ़ाने के लिए उनके द्वारा दिए गये निर्देशों का पालन कराएंगे।
उत्तरप्रदेश की नगीना सीट से सांसद चंद्रशेखर आजाद दलित युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं। साथ ही वह पार्टी के नाम के साथ ही इस बात पर दावा पेश करते नजर आ रहे हैं कि वही कांशीराम की राजनीतिक विरासत के उत्तराधिकारी हैं। कहा जा रहा है कि आनंद को पद से हटाए जाने के जरिए मायावती यह दिखाने की कोशिश में भी हैं कि वह कांशीराम की विरासत की असली उत्तराधिकारी हैं। बहुजन समाज पार्टी का किला लगातार ढहता जा रहा है।
लोकसभा चुनाव 2024 में बहुजन समाज पार्टी 10 सीटों से शून्य पर आ गई। इसके बाद उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुआ, इसमें भी पार्टी का खाता तक नहीं खुला। हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में भी बसपा की हालत खराब ही रही।दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी कुछ खास नहीं कर पाई। पार्टी के खराब प्रदर्शन के पीछे राजनीतिक विश्लेषक सबसे बड़ा कारण पार्टी से नेताओं की विदाई मान रहे हैं। उनका मानना है कि अब पार्टी के पास पहले जैसे कद्दावर नेता बचे नहीं हैं। यही वजह है कि पार्टी को इसका लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है।साथ ही बसपा के खराब प्रदर्शन से पार्टी के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में जो पहले कभी नहीं हुआ था वह पहली बार बहुजन समाज पार्टी ने साल 2007 में अकेले दम पर कर दिखाया था। बीएसपी ने 212 सीटों के प्रचंड बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश की सत्ता पर अधिकार जमाया।इससे पहले भी तीन बार बीएसपी सुप्रीमो मायावती विभिन्न पार्टियों के सहयोग से सरकार बनाती रहीं, लेकिन चौथी बार जब मायावती की सरकार बनी तो किसी भी दल की जरुरत बीएसपी को नहीं पड़ी। हालांकि 2012 आते-आते पार्टी का ग्राफ गिरने लगा। चाहे लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा, पार्टी को उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली। 2019 में बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और 10 सीट पाने में कामयाब हुई।एक समय पार्टी में नसीमुद्दीन सिद्दीकी और इंद्रजीत सरोज का जलवा था। पर 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पार्टी ने अकेले दम पर चुनाव लड़ा। बलिया की रसड़ा विधानसभा सीट को छोड़ पार्टी कहीं भी नहीं जीत पाई। 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी अकेले लड़ी लेकिन खाता तक नहीं खुला।
बहुजन समाज पार्टी की उत्तर प्रदेश में चार बार सरकार रही। बसपा सुप्रीमो मायावती का टेरर इस कदर था कि पार्टी के नेता और सरकारी अधिकारी उनसे घबराते थे । पार्टी में उस समय ऐसे कद्दावर नेता थे जो दूसरी पार्टियों में नहीं थे। नसीमुद्दीन सिद्दीकी को मायावती के बाद दूसरे नंबर का माना जाता था।आरके चौधरी का नाम बसपा के बड़े नेताओं नें शामिल था। पार्टी से बाहर होने के बाद सपा से सांसद हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य, रामअचल राजभर, बाबू सिंह कुशवाहा, इंद्रजीत सरोज, आरके चौधरी, लाल जी वर्मा और अशोक सिद्धार्थ जैसे बड़े नेता पार्टी में थे। सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं देशभर में पार्टी का दबदबा था। धीरे-धीरे पार्टी के नेताओं पर अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए बीएसपी सुप्रीमो ने एक्शन लेना शुरू किया और उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया।ज्यादातर नेताओं ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया और वर्तमान में विधायक, सांसद और राष्ट्रीय महासचिव तक बने हुए हैं, जबकि बहुजन समाज पार्टी की स्थिति यह हो गई है कि मायावती के बाद कोई ऐसा नामचीन चेहरा पार्टी में नहीं रह गया है जो जनता से सीधे तौर पर जुड़ा हो।
गौर करने वाली बात यह भी है कि बसपा सुप्रीमो मायावती चुनाव में गिनी चुनी जनसभाएं ही करती हैं, जिसके चलते जनता पर उसका प्रभाव भी नहीं पड़ रहा है। यही वजह है कि देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद भी पार्टी की एक भी सीट नहीं निकल पा रही है।बसपा सुप्रीमो मायावती अपने सख्त एक्शन के लिए हमेशा से जानी जाती हैं। भतीजे आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ पर कार्रवाई कर नेताओं को एक बार फिर कड़ा संदेश दिया कि पार्टी में अनुशासनहीनता बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होगी, फिर चाहे कोई कितना भी करीबी क्यों न हो।जब लोकसभा चुनाव के दौरान भतीजे आकाश आनंद ने सीतापुर में रैली के दौरान कुछ ऐसा भाषण दिया जो मायावती को नागवार गुजरा, इसके बाद उन्होंने अपने भतीजे पर ही कार्रवाई कर दी।
राजनीतिक विश्लेषक मनमोहन का कहना है कि बहुजन समाज पार्टी की बागडोर जब कांशीराम के हाथ में थी, तब जो नेता थे, वे धीरे-धीरे पार्टी से अलग हो गए। आरके चौधरी, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बाबू सिंह कुशवाहा ने पार्टी की स्थापना में योगदान दिया था।विभिन्न जातियों के पिछड़े, दलित इस तरह के तमाम नेता पार्टी से जुड़े और अलग हो गए। इसमें एक नाम बृजेश पाठक का भी आता है जो बहुजन समाज पार्टी से बाद में जुड़े। दो बार मायावती ने उन्हें राज्यसभा भेजा। बाद में वही पार्टी से अलग हो गए। बाद में स्वामी प्रसाद मौर्य चले गए। मायावती की पार्टी उत्तर प्रदेश में हाशिए पर है। विधानसभा में संख्या घटकर एक रह गई है। दूसरे राज्य में उनका उतना लाभ नहीं मिल रहा है।
राजनीतिक विश्लेषक मनमोहन बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में जब मायावती की सरकार बनी थी तो उन्होंने पहली जनसभा गोरखपुर में की थी। उस दौरान वहां के मंडलायुक्त ओमप्रकाश थे, वह मायावती के सजातीय थे, लेकिन सबसे पहले करवाई उन्होंने ओम प्रकाश पर ही की थी। उन्हें निलंबित कर दिया था। इससे समझा जा सकता है कि एक्शन लेने के मामले में मायावती जरा भी देरी नहीं करती हैं। ऐसा भी कहा जा सकता है कि यही उनकी यूएसपी भी है।