“मेरी विवशता को समझिए” उपेंद्र कुशवाहा के बयान पर राजनीति गर्म — बेटे को मंत्री बनाए जाने पर बड़ा जवाब।

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बेटे को मंत्री बनाए जाने पर उपेंद्र कुशवाहा का बड़ा स्पष्टीकरण
Highlights
  • • बेटे को मंत्री बनाए जाने पर विपक्ष के परिवारवाद के आरोप • कुशवाहा ने कहा—पार्टी बचाने के लिए निर्णय अपरिहार्य • “मैं ज़हर पी गया, पर फिर से जी गया” बयान चर्चा में • दीपक प्रकाश को लेकर बोले—योग्यता साबित करेगा • बिहार की राजनीति में बयान से नई हलचल

बिहार में नई सरकार गठन के बाद राजनीतिक माहौल एक बार फिर गरमा गया है। विशेष रूप से उस वक्त जब एनडीए के सहयोगी और महत्वपूर्ण चेहरा उपेंद्र कुशवाहा के बेटे दीपक प्रकाश को बिना चुनाव लड़े मंत्री बना दिया गया। यह फैसला सामने आते ही विपक्ष ने परिवारवाद, राजनीतिक सुविधा और नैतिकता पर लगातार सवाल उठाने शुरू कर दिए। ऐसे आरोपों के बीच उपेंद्र कुशवाहा ने खुद सामने आकर विस्तृत प्रतिक्रिया दी और साफ कहा—“मेरी विवशता को समझिए।”

नीतीश कुमार के 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही एनडीए की नई सरकार की शुरुआत हुई। इसी समारोह में दीपक प्रकाश ने मंत्री पद की शपथ ली और उसी पल से राजनीतिक चर्चा तेज हो गई। विपक्ष की ओर से एनडीए और कुशवाहा के खिलाफ परिवारवाद के आरोप लगने लगे। लेकिन अब उपेंद्र कुशवाहा ने इन आरोपों पर खुलकर राय रखी है।

उपेंद्र कुशवाहा बोले—आलोचना जरूरी, पर मेरी मजबूरी भी समझें

उपेंद्र कुशवाहा ने एक्स पर लंबी पोस्ट लिखकर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि चुनाव के बाद मंत्री बनाए जाने के निर्णय पर उन्हें पक्ष और विपक्ष—दोनों ही तरफ से तरह–तरह की प्रतिक्रिया मिली है। उन्होंने आलोचनाओं को दो हिस्सों में बांटते हुए बताया कि—
• कुछ आलोचनाएं स्वस्थ और रचनात्मक होती हैं
• जबकि कुछ दूषित और पूर्वाग्रह से भरी होती हैं

उन्होंने कहा कि वह स्वस्थ आलोचना का सम्मान करते हैं क्योंकि ऐसे सुझाव सुधार की दिशा दिखाते हैं। मगर दूषित आलोचनाएं केवल आलोचक की नीयत बताती हैं।

इसके बाद उन्होंने बेहद महत्वपूर्ण बयान दिया—
“अगर इसे परिवारवाद कहा जा रहा है, तो मेरी विवशता को समझिए।”

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‘पार्टी को बचाने के लिए जरूरी था यह कदम’ — कुशवाहा की सफाई

परिवारवाद के आरोपों पर जवाब देते हुए कुशवाहा ने स्पष्ट कहा कि—
• पार्टी के अस्तित्व
• उसके भविष्य
• और उसकी निरंतरता

को बचाने के लिए यह कदम सिर्फ जरूरी ही नहीं, बल्कि अपरिहार्य था।

उन्होंने बताया कि पहले भी उन्हें पार्टी के विलय जैसा बेहद कठिन और अलोकप्रिय कदम उठाना पड़ा था, जिसकी पूरे बिहार में आलोचना हुई थी। उस वक्त पार्टी शून्य पर पहुंच गई थी। फिर संघर्ष कर वापस खड़ा होना पड़ा।

उन्होंने साफ लिखा कि अगर यह फैसला न लेते, तो पार्टी दोबारा शून्य पर जा सकती थी। इसलिए उन्हें अपनी लोकप्रियता को जोखिम में डालते हुए यह मुश्किल निर्णय लेना पड़ा।

उनके शब्दों में—

“इतिहास से सीखा है—समुद्र मंथन से अमृत भी निकलता है और ज़हर भी। कुछ लोगों को ज़हर पीना ही पड़ता है।”

उन्होंने स्वीकार किया कि इस फैसले से परिवारवाद का आरोप लगना तय था, लेकिन पार्टी की मजबूती पहले थी।

‘सवाल ज़हर का नहीं था…तकलीफ उन्हें इस बात से है कि मैं फिर जी गया’

अपने आलोचकों के लिए उन्होंने तंज कसते हुए लिखा—

“सवाल ज़हर का नहीं था, वो तो मैं पी गया।
तकलीफ उन्हें बस इस बात से है कि मैं फिर से जी गया।”

यह लाइन स्पष्ट करती है कि कुशवाहा विपक्ष के हमलों से विचलित नहीं हैं, बल्कि अपनी रणनीति को मजबूती देकर आगे बढ़ना चाहते हैं।

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बेटे दीपक प्रकाश को लेकर क्या बोले कुशवाहा?

सबसे ज्यादा सवाल दीपक प्रकाश के मंत्री बनाए जाने पर उठे। इस पर उपेंद्र कुशवाहा ने कहा—
• दीपक फेल विद्यार्थी नहीं हैं
• इंजीनियरिंग (कंप्यूटर साइंस) की डिग्री रखते हैं
• संस्कार और मेहनत दोनों उनके पास हैं
• केवल थोड़ा समय दीजिए, वह अपनी योग्यता साबित करेंगे

उन्होंने साफ कहा कि किसी की क्षमता उसकी जाति या परिवार देखकर नहीं, बल्कि उसकी योग्यता देखकर तय की जानी चाहिए।

कुशवाहा ने भरोसा जताया—

“वह करके दिखाएगा। अवश्य दिखाएगा। आपकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा।”

कुशवाहा के बयान से बढ़ी राजनीतिक गर्मी

उपेंद्र कुशवाहा का विस्तृत और भावनात्मक बयान इस बात का संकेत है कि वे अपने बेटे को मंत्री बनाने के पीछे का राजनीतिक तर्क साफ–साफ जनता के सामने रखना चाहते हैं। उन्होंने न सिर्फ परिवारवाद के आरोपों का जवाब दिया, बल्कि अपनी पार्टी की मजबूरी और रणनीति भी बताई।

यह बयान आने के बाद बिहार की राजनीति में बहस और भी तेज होने की संभावना है। फिलहाल, सबकी निगाहें इस बात पर भी होंगी कि मंत्री बने दीपक प्रकाश खुद को कैसे साबित करते हैं और कुशवाहा का दावा कितना मजबूत निकलता है।

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