Zelensky Modi
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mahesh khare
महेश खरे की तस्वीर

भारत से आया अपना दोस्त… अब शांति की बात करो… युद्ध की विभीषिका से जूझ रही यूक्रेन की आबादी में शायद पहली बार ऐसे स्वर उठे हैं जिनसे शांति की उम्मीद को बल मिला है। 24 फरवरी 2022 को रूसी हमले के बाद शांति और बातचीत के प्रस्ताव तो कई राष्ट्राध्यक्षों ने दिए लेकिन युद्ध भूमि में पहुंच कर जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्रपति वोलोदिमिर ओलेक्सांद्रोविच जेलेंस्की के गले मिले तो दुनिया ने इस मिलन को उत्साह और अचरज के साथ देखा। वो इसलिए कि बीती 8 जुलाई को ही मोदी इसी अंदाज में राष्ट्रपति पुतिन के गले मिल चुके हैं। अभी तक नाटो देशों के नेताओं के अलावा विश्व के किसी भी नेता ने यूक्रेन का रुख नहीं किया है। मोदी के कीव दौरै के बाद दुनिया यह पूछने लगी है कि क्या रूस-यूक्रेन युद्ध रोकना मुमकिन है? इसके जवाब में यूक्रेन के गलियारों में लोग हर्षातिरेक में मोदी मोदी के नारे लगाते हुए दावा करने लगे हैं- ‘मोदी हैं तो मुमकिन है।’

लगभग ढाई साल से रूस के साथ युद्ध में उलझी यूक्रेन की जनता और सरकार को पहली बार अमन की दिशा में सार्थक और सशक्त पहल का भरोसा हुआ है। जेलेंस्की ने भी कहा कि भारत ही अकेला ऐसा देश है जो रूस को युद्ध रोकने के लिए कह सकता है। लगता है पीएम नरेन्द्र मोदी यूक्रेन दौरे में भरोसे की ऐसी नई लकीर खींच आए हैं जिसने दुनिया भर में गहरी सकारात्मक छाप छोड़ी है।

मोदी को यूक्रेन में जेलेंस्की से गले मिलते देखकर दुनिया को अचरज इसलिए भी हुआ क्योंकि यूक्रेन का शत्रु और कोई नहीं वो रूस ही है जो भारत का अभिन्न मित्र है। इतना ही नहीं पुतिन और नरेन्द्र मोदी के दोस्ताना रिश्ते जगत विख्यात हैं। जुलाई में मोदी का पुतिन से गले मिलना यूक्रेन समेत पश्चिमी देशों को बिल्कुल नहीं भाया था। स्वयं जेलेंस्की ने मोदी के रूस दौरे की तीखी आलोचना की थी। लेकिन, युद्ध पर पीएम मोदी की साफगोई ने सभी संशय दूर कर दिए। दुनिया को यह लगने लगा है कि मोदी ही इकलौते ऐसे नेता हैं जिनकी भूमिका इस मुद्दे पर असरदार हो सकती है।

वैसे तो महाशक्ति होने के नाते चीन और अमेरिका को भी इस दिशा में कोशिश करनी चाहिए थी। लेकिन, चीन पर पश्चिमी और नाटो देशों को भरोसा ही नहीं है। जहां तक अमेरिका का प्रश्न है उसका रूस के साथ 36 का आंकड़ा है। इसीलिए अंततः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही एकमात्र ऐसे नेता हैं जिनकी मध्यस्थता पर रूस और यूक्रेन दौनों ही सहमत हो सकते हैं। मोदी इसके लिए तैयार भी हैं। यही कारण था कि 23 अगस्त की सुबह पीएम मोदी जब यूक्रेन की राजधानी कीव पहुंचे तो उनके एक-एक कदम पर दुनिया की पैनी नजर रही। यह दौरा ऐसे वक्त में हुआ, जब यूक्रेन ने हाल ही में रूस के कुर्स्क और खारकीव के कुछ इलाक़ों पर कब्जा कर लिया है। रूस इसको लेकर आगबबूला है। माना जा रहा है कि वह भी यूक्रेन पर पलटवार की तैयारी में है।

पुतिन से दोस्ती के बावजूद मोदी कीव पहुंचे और डंके की चोट कहा- ‘भारत शुरू से ही शांति के पक्ष में रहा है। शांति के प्रयासों में अपनी भूमिका निभाने के लिए भारत तैयार है। रूस के दौरे के समय भी मैंने मीडिया के सामने राष्ट्रपति पुतिन की आंख में आंख डालकर कहा था कि यह युद्ध का समय नहीं है।’ राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ बैठक के दौरान भी मोदी ने दोहराया कि किसी भी समस्या का समाधान रणभूमि में नहीं हो सकता। दो-टूक शब्दों में मध्यस्थता का प्रस्ताव देते हुए उन्होंने यह भी कहा कि विवादों के समाधान के लिए बातचीत के अलावा और कोई मार्ग नहीं है। बिना लाग-लपेट के व्यक्त विचारों का असर होता ही है। लगे हाथ हुआ भी। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता ने युद्ध रोकने के लिए मोदी की कीव यात्रा पर भरोसा जता दिया। उनका कहना था कि ऐसी यात्राओं से ही युद्ध विराम का रास्ता निकलेगा।

ट्रेन में दस घंटे का सफर तय करके बार्सोवा (पोलेंड) से कीव पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी का यह प्रभाव ही माना जाएगा कि उनके सम्मान में पुतिन ने सीज फायर रखा। यह सामान्य बात नहीं है कि जब तक मोदी यूक्रेन की धरती पर रहे रूसी तोपें शांत रहीं। यूक्रेन ने भी युद्ध विराम का पालन किया। इसका मतलब क्या यह निकाला जाना चाहिए कि भारत की मध्यस्थता दोनों देशों को स्वीकार रहेगी और जो भी बातचीत होगी उसके सुखद परिणाम निकलेंगे।

मोदी को कीव में अपने बीच पाकर भारतीय समुदाय के लोगों की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहा। हाथों में तिरंगा लिए हुए भारतीयों ने अपने प्रधानमंत्री का गर्मजोशी से स्वागत किया। मोदी भी बच्चों और बड़ों से खुलकर मिले। हाथ मिलाया और बेटियों के सिर पर हाथ रख कर आशीष दिया। यूक्रेन जाने वाले मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन अस्तित्व में आया था। लेकिन, तब से ही रूस को यूक्रेन की संप्रभुता फूटी आंखों नहीं सुहाई। रूस और यूक्रेन के बीच विवाद के अन्य कारण भी हैं, जैसे- यूक्रेन में पश्चिमी देशों की रुचि। गरिमा की क्रांति के बाद क्रीमिया पर रूस का कब्जा। डोनबास युद्ध में यूक्रेनी सेना से लड़ने वाले अलगाववादियों को रूस का समर्थन। यूक्रेन को नाटों संगठन से बाहर रखने पर रूस का जोर आदि।

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद भारत किसी एक पक्ष के साथ कभी नहीं रहा। युद्ध विराम पर भी भारत ने अपना नजरिया स्पष्ट रखा। इसके साथ ही भारत ने रूस के साथ संबंध भी कायम रखे। यही कारण है कि आज दोनों देशों के बीच कारोबार नई ऊंचाइयों को छू रहा है। मजबूत व्यापारिक रिश्तों के बाद भी भारत ने यूक्रेन के खिलाफ रूस का खुलकर समर्थन नहीं किया और पश्चिमी देशों से अपने संबंधों को भी बनाए रखा। इन देशों के दबाव में भी भारत कभी नहीं आया। यूक्रेनी मीडिया भी यह मानता है कि भारत की भूमिका रूस और पश्चिमी देशों के बीच रस्सी पर चलने जैसी है। यानि संपूर्ण संतुलन के साथ समाधान की पहल। मोदी और जेलेंस्की के बीच यूक्रेन के मैरिंस्की पैलेस में करीब 3 घंटे बैठक हुई। इस दौरान उन्होंने जेलेंस्की को भारत आने का न्योता भी दिया।

जेलेंस्की यह जानते हैं कि यदि कोई युद्ध रोकने की बात दमदारी से कर सकता है तो वह भारत ही है। अब सवाल यह उठता है कि क्या जेलेंस्की पुतिन से बात करने को राजी हो गए हैं या निकट भविष्य में हो जाएंगे? अपने कुछ इलाकों पर यूक्रेन के कब्जे के बाद क्या पुतिन युद्ध विराम पर सहमत होंगे? प्रवासी भारतीयों को उम्मीद है कि जब मोदी ने पहल शुरू की है तो उसके अनुकूल परिणाम जरूर सामने आएंगे। फिलहाल तुरंत युद्ध रुकने की संभावना तो नहीं दिखती। यह इसी बात से प्रमाणित होता है कि मोदी के कीव छोड़ते ही दोनों ओर की तोपें फिर गरजने लगी हैं। धमाके फिर दिल दहलाने लगे हैं।

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