मोतीलाल नेहरू ने की थी राजनीति में वंशवाद की शुरुआत

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सुरेंद्र किशोर (पद्मश्री सम्मान प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार )
उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार कांग्रेस में वंशवाद की नींव मोतीलाल नेहरू ने डाली थी। बाद में अन्य दलों ने अपनाया।कांग्रेस का तो वंशवाद से अब अन्योन्याश्रय संबंध बन चुका है। कहा भी गया है -महाजनो येन गतः स पन्था।
देश भर की राजनीति पर सरसरी नजर डालने से यह तय करना अब कठिन हो गया है कि भारत में ‘डायनेस्टिक डेमोक्रेसी’ चल रही है या सामान्य डेमोक्रेसी ?
इस बीच उन बड़े नेताओं की सराहना की जानी चाहिए जिन्होंने आगे बढ़ाने की राजनीतिक ताकत रखते हुए भी अपने वंशज या परिजन को राजनीति में आगे नहीं बढ़ाया। बिहार में वैसे नेताओं में प्रथम मुख्यमंत्री डा.श्रीकृष्ण सिंह और कर्पूरी ठाकुर प्रमुख थे। नीतीश कुमार भी अभी उसी लाइन पर हैं। अपने वंशज को अपने जीवन काल में विधायक -सांसद .नहीं बनने देना भी नेता के लिए एक तपस्या ही है। वैसी ‘तपस्या’ इस देश-प्रदेश के कुछ नेताओं ने कर दिखाई है। उन ‘तपस्वियों’ पर पड़नेवाले भारी दबाव की कल्पना कर लीजिए। पर,मोतीलाल नेहरू ने वंशवाद का जो पौधा रोपा था,वह अब पूरे देश में वट वृक्ष बन चुका है। उस वृक्ष से कहीं फूल-फल निकल रहे हैं तो कहीं खतरनाक कांटे भी। एक दो दलों में तो कांटे ही कांटे हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष मोतीलाल जी ने सन 1928 में महात्मा गांधी को बारी -बारीे से तीन चिट्ठयां लिखीं। उनमें उन्होंने गांधी जी से आग्रह किया कि वे सन 1929 में जवाहरलाल को कांग्रेस अध्यक्ष बनवा दें। पहली दो चिट्ठयों पर गांधी नहीं माने थे। क्योंकि वे तब जवाहर को उस पद के योग्य नहीं मानते थे। पर, तीसरे पत्र पर गांधी जी मान गए। उस समय की सारी चिट्ठयां ‘’मोतीलाल पेपर्स’’ के रूप में नेहरू मेमोरियल में उपलब्ध हैं।

अब आइए ,साल 1958-59 में। सन 1958 में इंदिरा गांधी कांग्रेस कार्यसमिति की सदस्य बनीं। उस समय कार्य समिति के कुल सदस्यों की संख्या सिर्फ दो दर्जन होती है। कल्पना कीजिए,कितने बड़े -बड़े स्वतंत्रता सेनानी लोग तब सत्ताधारी दल की शीर्ष समिति के सदस्य बनने के काबिल थे। पर, उन्हें नजरअंदाज किया गया। यही नहीं, इंदिरा गांधी सन 1959 में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दी गईं। कांग्रेस सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री महावीर त्यागी ने इंदिरा गांधी को अध्यक्ष बनाए जाने के विरोध में जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखा। नेहरू जी ने जवाब भी दिया था।
‘ …….मेरा यह भी ख्याल है कि बहुत तरह से इस वक्त उसका (इंदु का) कांग्रेस का अध्यक्ष बनना मुफीद हो सकता है।’
स्त्रोत-पुस्तक -‘आजादी का आंदोलन -हंसते हुए आंसू’–लेखक -महावीर त्यागी-पेज नंबर-230, प्रकाशक-किताब घर,नई दिल्ली। पुस्तक में उस पत्र की फोटो काॅपी भी छपी है। वह पुस्तक मेरे पास भी है।

और अंत में

किसी नेता का वंशज या परिजन राजनीति में आगे आए, इसमें किसी को कोई एतराज नहीं होना चाहिए। पर, अयोग्य वंशज को किसी दल के शीर्ष पर थोपा न जाए। लगातार चुनावी विफलताओं के बावजूद उसे शीर्ष पर ही बनाए नहीं रखा जाए। क्योंकि राजनीतिक दल किसी व्यापारी का कारखाना नहीं होता। उससे लाखों-करोड़ों लोगों व हजारों दलीय कार्यकत्र्ताओं की उम्मीदें और भावनाएं जुड़ी होती हैं। स्वस्थ लोकतंत्र के विकास का भी उससे सीधा संबंध है।

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