जीडी कॉलेज में मल्टीडिसीप्लिनरी इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस का आयोजन बिहार विश्वविद्यालय के छात्र ब्रजेश ने पेश किया मखाना पर शोध पत्र, 90 प्रतिशत उत्पादन करता है बिहार

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बेगूसराय, संवाददाता
जीडी कॉलेज में आयोजित मल्टीडिसीप्लिनरी इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर में वाणिज्य विभाग के शोध के छात्र ब्रजेश कुमार ने मखाना प्रसंस्करण, क्षमता बढ़ाने और श्रम लागत कम करने तथा किसानों के आय में वृद्धि के संदर्भ मे शोध प्रस्तुत किया। ब्रजेश के शोध से स्पष्ट हुआ है कि मखाना बिहार के किसानों की दशा और दिशा बदल रही है।
शोध प्रस्तुत करते हुए ब्रजेश कुमार ने कहा कि मखाना जैसी आम तौर पर फॉक्स नट या कमल के बीज के रूप में जाना जाता है। सदियों से भारतीय व्यंजनों में एक प्रधान रहा है जो अपने और असंख्य स्वास्थ्य लाभ के लिए मनाया जाता है। यह पारंपरिक स्नेक न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि प्रोटीन और आवश्यक खनिजों एवं विटामिन की सारणी से भरा हुआ है।
भारत में इसकी व्यापक लोकप्रियता के बावजूद मखाना के पोषण और चिकित्सीय मूल्यों के बारे में जागरूकता में एक महत्वपूर्ण अंतर बना हुआ है। इसलिए जनता को इसके संभावित लाभों के संबंध में सूचित करने तथा आहार में इसको नियमित समावेश को प्रत्योसाहित करने के लिए सुपर फूड का गहन अध्ययन करना महत्वपूर्ण है। भारत में मखाना के पोषण और औषधीय महत्व के संबंध में जागरूकता से संबंधित साहित्य समीक्षा इंगित करती है।
यह मामूली बीज प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन और खनिज सहित महत्वपूर्ण पोषक तत्वों के समृद्ध स्रोत के रूप में कार्य करता है। यह काम वास और कैलोरी सामग्री की विशेषता है, जो शरीर के भीतर मुक्त कणों का मुकाबला करने में सहायता करते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें विरोधी भड़काऊ गुण होते हैं, जो जोड़ों के दर्द को कम करने और मधुमेह एवं हृदय रोग जैसी पुरानी स्थितियों को रोकने में मदद कर सकते हैं।
देश के अन्य राज्यों पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुशीनगर, छत्तीसगढ़ के धमतरी, मणिपुर के इंफाल, असम के जोरहाट एवं शिव सागर तथा पश्चिम बंगाल के मालदा के आसपास के जिले मे भी उन्नतशील प्रजाति बिहार के सबौर मखाना-1 की खेती की जाती है। मखाना बोर्ड की स्थापना होने से किसान एफपीओ के माध्यम से सीधा विदेश से व्यापार कर सकेंगे तथा खुद निर्यात कर अधिक से अधिक लाभ कमा सकेंगें।

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