पटना डेस्कः लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) के तीसरे चरण में 7 मई यानी मंगलवार को मतदान होना है, जिसको लेकर सभी मतदानकर्मी अपने-अपने बूथ के लिए रवाना हो गए। इस चरण के चुनाव में 54 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला होना है। इनमें 51 पुरुष और 3 महिलाएं चुनाव मैदान में हैं। झंझारपुर में 10, सुपौल में 15, अररिया में 9, मधेपुरा में 8 और खगड़िया में 12 उम्मीदवार मैदान में है। बात मतदातओं की करें तो बिहार में 98 लाख 60 हजार 397 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करने वाले हैं। जिनमें 51 लाख 29 हजार 473 पुरुष, तो 47 लाख 30 हजार 602 महिला मतदाता अपने प्रतिनिधि का चुनाव सात मई को करेंगी। चुनाव आयोग सुरक्षा व्यवस्था को काफी चुस्त और दुरुस्त नजर आ रही है। इसके अलावा मतदाताओं की सुविधा को लेकर भी विशेष ख्याल रखा गया है। बुजुर्ग और दिव्यांग मतदाताओं को कतार में खड़े होने से छूट दी गई है।
झंझारपुर में मुकाबला त्रिकोणिया
झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र में जदयू ने फिर से निवर्तमान सांसद रामप्रीत मंडल को चुनावी रण में उतारा है, तो महागठबंधन की ओर से विकासशील इंसान पार्टा के सुमन कुमार महासेठ ताल ठोक रहे है। वहीं पूर्व विधायक गुलाल यादव निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं, जिससे मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। वहीं गुलाब यादव लालू यादव की पार्टी से बगावत कर बसपा (BSP) के टिकट पर मैदान में है। गुलाब यादव पहले विधायक रह चुके हैं. उनकी पत्नी विधान पार्षद हैं, जबकि बेटी जिला परिषद की अध्यक्ष हैं. ऐसे में गुलाब यादव के मैदान में आने से महागठबंधन के सुमन कुमार महासेठ की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
सुपौल लोकसभा सीट पर जदयू (JDU) के लिए सीट बचाने की चुनौती है। जदयू ने दिलेश्वर कामत को टिकट दिया है, तो राजद ने सिंहेश्वर से विधायक चंद्रहास चौपाल को मैदान में उतारा है।सुपौल में भी सियासी लड़ाई भी जातियों समीकरणों के आसपास ही जारी है। अब देखना है कि जनता किस पर विश्वास करती है। हालांकि यहां यादव समुदाय की अच्छी खासी पकड़ मानी जाती है। 2014 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन कांग्रेस की टिकट पर जीतकर सदन पहुंचने में सफल रही थी, लेकिन 2019 के आम चुनाव में वह एनडीए प्रत्याशी दिलेश्वर कामत से हार गई थी।
रोम पोप का, मधेपुरा गोप का
रोम पोप का और मधेपुरा गोप का, यह कहावत पिछले कई चुनाव से सही साबित होता हुआ नजर आ रहा है। इस बार भी मधेपुरा में दो यादवों की लड़ाई है, जदयू ने जहां वर्तमान सासंद दिनेश चंद्र यादव पर दांव खेला है, तो राजद ने डॉ. कुमार चंद्रदीप को मैदान में उतारा है। यहां जदयू को अपनी जीती हुई सीट बचाने की चुनौती है, तो दूसरी ओर लालू यादव को अपने यादव मतदाताओं पर अपनी पकड़ को परखने की चुनौती हैं। हालांकि तेजस्वी यादव लगातार मधेपुरा के यादव को रैली में झकझोरते रहे हैं।
खगड़िया में चिराग के सामने चुनौती
खगड़िया लोकसभा सीट पर एनडीए की ओर से एलजेपीआर (LJPR) के राजेश वर्मा ताल ठोक रहे हैं, महागठबंधन की तरफ से से सीपीएम CPI-M) ने संजय कुमार कुशवाहा को मैदान में हैं। खगड़िया लोकसभा सीट पर चिराग पासवान ने राजेश वर्मा को मैदान में उतारा है। ऐसे में राजेश वर्मा पर एनडीए का गढ़ बचाए रखने की चुनौती है तो दूसरी ओर माकपा के संजय कुमार यहां लाल झंडा फहराने की जुगत में जुटे हुए हैं। हालांकि निवर्तमान सांसद चौधरी महबूब अली कैसर पर सबकी नजर है। 2019 लोकसभा चुनाव में कैसर एनडीए के टिकट पर लोजपा से सांसद चुने गए थे, लेकिन पार्टी में बंटवारे के बाद चिराग पासवान में इस बार कैसर को टिकट नहीं दी है। जिससे नाराज होकर चौधरी महबूब अली कैसर ने राजद (RJD) का दामन थाम लिया है।
तस्लीमुद्दीन की विरासत बचाने की कोशिश
अररिया सीट पर भाजपा की तरफ से वर्तमान सांसद प्रदीप कुमार सिंह मैदान में हैं. राजद ने शाहनवाज आलम को मैदान में उतारा है। 44 फीसदी यादव मतदाताओं वाले अररिया में जीत-हार के बीच अल्पसंख्यक मतदाता बेहद अहम हो जाते हैं। यहां करीब 7.5 लाख अल्पसंख्यक मतदाता हैं। ऐसे में भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह को राजद के शाहनवाज आलम से मुकाबला है। पिछले चुनाव में भाजपा ने 1.37 लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। यहां भी लालू यादव को अल्पसंख्यक वोटों पर अपनी पकड़ बनाये रखने की अग्निपरिक्षा से गुजरना है तो दूसरी ओर भाजपा को यहां अपनी प्रतिष्ठा बचाने की चुनौती है। साथ ही सीमांचल के गांधी कहे जाने वाले मोहम्मद तस्लीमुद्दीनकी राजनीतिक विरासत बचाने की चुनौति भी शाहनवाज आलम के पास है।
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