Nepal Elections: नेपाल की राजनीति में नई बिसात-चुनावी सहमति, वैकल्पिक गठबंधन और वामपंथी एकता की सबसे बड़ी परीक्षा

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आम चुनाव से पहले नेपाल की राजनीति में तेज होती गतिविधियां
Highlights
  • • राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल की पहल पर नेपाल में चुनावी सहमति बनी • 12 सितंबर के बाद प्रधानमंत्री सुशीला कार्की और शीर्ष नेताओं की पहली बैठक • नेपाली कांग्रेस, एमाले और माओवादी के बीच आम चुनाव कराने पर सहमति • 5 मार्च 2026 को होने हैं नेपाल में आम चुनाव • प्रतिनिधि सभा बहाली को लेकर सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिकाएं दायर • रबी लामिछाने–बालेन शाह मुलाकात से विकल्प की राजनीति पर बहस तेज • कोऑपरेटिव फंड घोटाले के बाद लामिछाने की राजनीति में वापसी • वामपंथी एकता को लेकर चीन की बढ़ती चिंता • ओली और प्रचंड के बीच टूटी कम्युनिस्ट एकता अब भी बड़ी चुनौती • विद्या देवी भंडारी की वापसी से एमाले में नेतृत्व संघर्ष उजागर • 2026 का चुनाव नेपाल की राजनीतिक स्थिरता की सबसे बड़ी परीक्षा

नेपाल की राजनीति एक बार फिर निर्णायक मोड़ पर खड़ी दिख रही है। राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल की पहल पर प्रधानमंत्री सुशीला कार्की और देश के प्रमुख राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं के बीच हुई बैठक ने आम चुनाव को लेकर औपचारिक सहमति तो बना दी है, लेकिन इसके बावजूद कई गंभीर सवाल अब भी हवा में तैर रहे हैं। 5 मार्च 2026 को प्रस्तावित आम चुनाव क्या वास्तव में शांतिपूर्ण और सर्वमान्य हो पाएंगे—यह नेपाल की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए सबसे बड़ा इम्तिहान है।

Nepal Elections: राष्ट्रपति पौडेल की पहल और चुनावी सहमति

12 सितंबर को पदभार संभालने के बाद प्रधानमंत्री सुशीला कार्की और प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं के बीच यह पहली औपचारिक बैठक थी। इस बैठक में नेपाली कांग्रेस अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा, नेकपा एमाले प्रमुख केपी शर्मा ओली और नेकपा-माओवादी सेंटर के समन्वयक पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचंड’ शामिल हुए। बैठक का मुख्य उद्देश्य आगामी आम चुनावों को सफल और व्यवस्थित ढंग से संपन्न कराना था।

तीनों प्रमुख दलों के बीच इस बात पर सहमति बनी कि चुनावी प्रक्रिया को बाधित नहीं किया जाएगा और लोकतांत्रिक मर्यादाओं का पालन किया जाएगा। हालांकि, प्रचंड ने साफ संकेत दिया कि अगर सरकार अनुकूल राजनीतिक माहौल सुनिश्चित करती है, तभी पार्टियां पूरे मन से चुनावी मैदान में उतरेंगी।

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Nepal Elections: सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं और संवैधानिक टकराव

 Nepal Elections: नेपाल की राजनीति में नई बिसात-चुनावी सहमति, वैकल्पिक गठबंधन और वामपंथी एकता की सबसे बड़ी परीक्षा 1

चुनावी सहमति के समानांतर, नेपाली कांग्रेस और नेकपा-एमाले के कई सांसदों ने भंग की गई प्रतिनिधि सभा की बहाली की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। यह घटनाक्रम साफ दिखाता है कि राजनीतिक सहमति के बावजूद संस्थागत और संवैधानिक संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि प्रतिनिधि सभा को लेकर न्यायिक फैसला चुनाव से पहले आता है, तो इसका सीधा असर चुनावी समीकरणों और सत्ता संतुलन पर पड़ेगा। ऐसे में शांतिपूर्ण मतदान की राह और भी जटिल हो सकती है।

Nepal Elections: रबी लामिछाने–बालेन शाह मुलाकात और विकल्प की राजनीति

सोमवार देर रात राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के अध्यक्ष रबी लामिछाने और काठमांडू के मेयर बालेनेंद्र शाह के बीच हुई मुलाकात ने राजनीतिक गलियारों में नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है। सवाल उठने लगे हैं कि क्या उभरती वैकल्पिक राजनीतिक ताकतें एक साझा मंच बना सकती हैं।

लामिछाने हाल ही में कोऑपरेटिव फंड घोटाले से जुड़े मामलों में नौ महीने की हिरासत के बाद रिहा हुए हैं। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया है कि प्रधानमंत्री पद को लेकर किसी भी तरह की बातचीत में उन्होंने हिस्सा नहीं लिया। उनका बयान संकेत देता है कि विकल्प की राजनीति अभी खोज के दौर में है, न कि किसी ठोस गठबंधन की ओर।

Nepal Elections: वामपंथी एकता: चीन की अपेक्षाएं और आंतरिक टकराव

नेपाल की राजनीति में सबसे जटिल सवाल वामपंथी एकता को लेकर है। चीन लंबे समय से यह मानता रहा है कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव जैसे बड़े प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ाने के लिए नेपाल में एक मजबूत और एकजुट कम्युनिस्ट नेतृत्व जरूरी है।

2018 में नेकपा-एमाले और नेकपा-माओवादी सेंटर का विलय चीन की कूटनीतिक सफलता माना गया था, लेकिन ओली और प्रचंड के बीच बढ़ती तनातनी ने इस एकता को 2021 में तोड़ दिया। यह टूट सिर्फ दलों की नहीं, बल्कि विचारधारात्मक भरोसे की भी थी।

Nepal Elections: ओली बनाम विद्या देवी भंडारी: नेतृत्व की लड़ाई

केपी शर्मा ओली और पूर्व राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के रिश्तों में आई दरार ने एमाले के भीतर सत्ता संघर्ष को उजागर कर दिया है। पार्टी संविधान में उम्र सीमा और कार्यकाल की बाधा को हटवाकर ओली ने साफ कर दिया कि वे नेतृत्व छोड़ने के मूड में नहीं हैं।

दूसरी ओर, विद्या देवी भंडारी ने सक्रिय राजनीति में लौटने की इच्छा जाहिर कर दी है। चीन यात्रा के बाद उनके इस कदम को अंतरराष्ट्रीय संकेतों से जोड़कर भी देखा जा रहा है। हालांकि, पार्टी की केंद्रीय समिति में उनकी दावेदारी को भारी बहुमत से खारिज कर दिया गया, जिससे साफ हो गया कि एमाले के भीतर नेतृत्व परिवर्तन आसान नहीं होगा।

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Nepal Elections: आगे क्या? नेपाल की राजनीति का अनिश्चित भविष्य

इन तमाम घटनाक्रमों के बीच नेपाल की राजनीति कई दिशाओं में खिंचती नजर आ रही है—चुनावी सहमति, न्यायिक दखल, विकल्प की तलाश और वामपंथी विघटन। 2026 का आम चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि राजनीतिक स्थिरता और लोकतांत्रिक परिपक्वता की भी परीक्षा होगा।

क्या नेपाल शांतिपूर्ण चुनाव की कसौटी पर खरा उतरेगा, या आंतरिक संघर्ष लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करेगा—इसका जवाब आने वाले महीनों में मिलने वाला है।

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