आतंकवाद के खिलाफ कड़ी चेतावनी है ‘आपरेशन सिंदूर’

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ले.जन. डीएस हुड्डा (से.नि.)
(थल सेना की उत्तरी कमान के पूर्व कमांडर)
छह-सात मई की रात, भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, जिसमें पाकिस्तान में आतंकवादी ढांचे के खिलाफ शृंखलाबद्ध सैन्य हमले किए गए। नौ आतंकी शिविरों को निशाना बनाया, जिनमें से पांच पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में और चार उसके पंजाब प्रांत में थे। सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्यों में मुरीदके और बहावलपुर रहे। लाहौर के नजदीक मुरीदके लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और उसके प्रमुख संगठन जमात-उद-दावा का मुख्यालय है। द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ), जिसने पहलगाम नरसंहार की जिम्मेदारी ली, एलईटी से संबंधित बताया जाता है। बहावलपुर जैश-ए-मोहम्मद का गढ़ है। इसके बाद दो दिन औ र यह आपरेशन चला जिसमें दोनों ओर से सीमा पर गोलाबारी हुई। भारत ने दुश्मन के कई शहरों पर मिसाइलें गिराई वहीं पाक की ओर से भी ऐसी कोशिशें हुई। अब 10 मई को सीजफायर का ऐलान हुआ। ऑपरेशन सिंदूर 2016 और 2019 में सीमा पार किए गए सैन्य हमलों की तुलना में – पैमाने और दायरे में – काफी बड़ा रहा। इसका संदेश कहीं अधिक तगड़ा और स्पष्ट है। जिसमें, पाकिस्तान से निबटने के लिए भारत की भविष्य की रणनीति में किए गए कुछ महत्वपूर्ण बदलाव झलकते हैं।
प्रथम, बड़े आतंकी हमलों का दंडात्मक प्रतिकर्म होगा। चूंकि 2016 और 2019 के सीमित हमले पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को एक औजार की भांति इस्तेमाल किए जाने वाली अपनी राष्ट्रीय नीति त्यागने में असरदार नहीं रहे, इसलिए उन लोगों को दर्द महसूस करवाना जरूरी बन गया, जो आतंकवादी करतूतों को नियंत्रित कर रहे हैं। यदि पाकिस्तानी सेना आतंकवादी नेतृत्व पर लगाम लगाने को तैयार नहीं, तो भारत सैन्य संसाधन का उपयोग करके ऐसा करेगा। भारत ने रणनीतिक और सामरिक कारणों से लंबे समय तक संयम मुद्रा अपनाए रखी। हालांकि, बदलते सुरक्षा परिवेश, विशेषत: पहलगाम हमले ने, पुनर्संतुलन में उत्प्रेरक का काम किया। 6-7 मई की रात बहावलपुर और मुरीदके जैसी अंदरूनी जगहों को निशाना बनाना संकेत है कि भारत अब सरसरी जवाबी कार्रवाई पर्याप्त नहीं मानता। नया दृष्टिकोण सीमा पार से आतंकवाद को बढ़ावा देने वालों के लिए लागत-लाभ वाली गणना बदलने का प्रयास करता है।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद सरकार के प्रवक्ता द्वारा दी गई प्रस्तुति में, सीमा पार से चलाए जा रहे आतंकवाद से हुई क्षति को रेखांकित करने के वास्ते पिछले आतंकी हमलों (2001 में संसद पर हमले से लेकर मुंबई 2008, उड़ी 2016, पुलवामा 2019 और पहलगाम हमले) का लेखा-जोखा दिखाया गया, जिसके अंत में ‘…अब और नहीं’ स्क्रीन पर चमका। भले ही यह प्रस्तुति नाटकीय दिखाई दे, लेकिन यह भारत के संकल्प को रेखांकित करती है कि वह पाकिस्तानी धरती से निकल रहे आतंकवाद को और बर्दाश्त नहीं करेगा।
द्वितीय, सीजफायर के बाद पाकिस्तानी सेना के सामने दो विकल्प हैं। या तो वह स्वयं द्वारा लंबे समय से पोषित सैन्य-जिहाद परिसर को खत्म करे या फिर देश को भारत के साथ विनाशकारी संघर्ष में डुबाने का जोखिम उठाए। जो पाकिस्तान को और अधिक अस्थिरता और संकट में धकेल सकता है। दशकों से, पाकिस्तानी सेना ने जिहादी समूहों को अपनी रणनीतिक संपत्ति के रूप में माना है, उनका उपयोग भारत को जख्म देने के लिए किया जाता है, जबकि आधिकारिक रूप से इनकार करता है। ऑपरेशन सिंदूर के ज़रिए भारत वे स्पष्ट किया कि राज्य और उसके द्वारा प्रायोजित छद्म स्वरूपों के बीच कोई अंतर नहीं है। पाकिस्तान में कई अंदरूनी जगहों को निशाना बनाकर भारत ने संकेत दे दिया है कि सुरक्षित पनाहगाहें भी अब उतनी सुरक्षित नहीं रही।
प्रेस ब्रीफिंग में 6-7 मई की कार्रवाई पर विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने कहा कि भारत की ‘कार्रवाई नपी-तुली, चीजों को और आगे न भड़काने वाली, आनुपातिक और जिम्मेदाराना थी। इसके निशाने का केंद्र आतंकवादी ढांचे को नष्ट करना और भारत में भेजे जाने वाले आतंकवादियों को निष्क्रिय करना था’। यह पाकिस्तान के लिए संदेश था कि अगर वह किसी भी सैन्य जवाबी कार्रवाई से परहेज करे और आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लगाने के दीर्घकालीन उपाय करे, तो बढ़ते तनाव को नियंत्रित किया जा सकता है। हालांकि पाकिस्तानी सेना ने प्रतिक्रिया में युद्ध जैसे हालात रखे, जिसका भारतीय सेना ने माकूल जवाब दिया।
तृतीय, भारत इस बारे में स्पष्ट है कि परमाणु युद्ध की नौबत बनने से जरा पहले तक, सीमित पारंपरिक संघर्ष के वास्ते गुंजाइश मौजूद है। जब भी भारत-पाकिस्तान संकट बनता है, तो पाकिस्तान सबसे पहले अपना परमाणु कार्ड लहराने लग जाता है। मंत्री हनीफ अब्बासी ने कहा कि अगर भारत सिंधु जल संधि को निलंबित करके पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति रोकता है, तो इस्लामाबाद परमाणु हथियारों से हमला करने को तैयार रहेगा। पाकिस्तान के राजदूत ने भी ऐसी धमकी दी। पाकिस्तान की परमाणु ब्लैकमेलिंग से भारत अब खुद को बंधक नहीं मानता। पारंपरिक बलों के इस्तेमाल के जरिए पाकिस्तान के अंदर घुसकर आतंकी ढांचे को निशाना बनाने में वाले तौर-तरीके में धीरे-धीरे बदलाव आया है। ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तानी पंजाब समेत कई आतंकी गढ़ों पर धावा बोलने में, हवाई हमले की उपयोगिता के रूप में नया मानक स्थापित हुआ है।
चतुर्थ, भारत में हुए आतंकी हमलों के तार पाकिस्तान से जोड़ने वाले प्रत्यक्ष सबूत उपलब्ध करवाने की कुछ अंतरराष्ट्रीय हलकों की मांग अब जाती रही है। भारत दशकों से पाक प्रायोजित आतंकवाद का शिकार रहा है और जब भी वह कहता है कि आतंकवाद का स्रोत पाकिस्तान है, तो यह बात सही है। समस्या यहां हमले करने वाले की नहीं, बल्कि पाकिस्तान में बैठे आतंकवादी और उस सैन्य नेतृत्व की है, जो आतंकवाद को पाल-पोस रहे हैं। अकाट्य सबूत की मांग छद्म युद्ध की प्रकृति को नजरअंदाज करती है। आतंकी संगठनों का ढांचा ही इस प्रकार तैयार किया जाता है कि सिद्ध करना मुश्किल हो जाए। भारत में आतंकी हमलों की निरंतरता, अपराध करने वालों की पहचान, प्रशिक्षण केंद्र और फंडिंग स्रोत- ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र की ओर इशारा करते हैं जो राज्य के संरक्षण बिना काम नहीं कर सकता।
पंचम, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए भी एक संदेश है। आतंकवाद को शह-मदद करने वाले पाकिस्तान को जवाबदेह ठहराने में संयुक्त राष्ट्र जैसी वैश्विक संस्थाओं की अक्षमता को लेकर भारत में निराशा है। बेशक,भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय जनमत और कूटनीतिक समर्थन जुटाना अहम है किंतु पाकिस्तान के आतंकवाद का जवाब देने में, भारत के लिए विकल्पों पर निर्णय लेते वक्त अड़चन बनने में ये कारक अहम नहीं रहे। इस बार उकसावे के बावजूद संयम बरतने का आह्वान करने वाली बातों को भारत ने नजरअंदाज किया। तीन दिन चले ऑपरेशन सिंदूर ने नए सैद्धांतिक मानदंड स्थापित किए हैं कि आतंकी ढांचे पर हमला किया जाएगा; कि परमाणु हमले का डर दिखाना छिपकर करतूतें करने वालों को नहीं बचा पाएगा; कि वैश्विक समुदाय की नैतिक दुविधा भारत की संप्रभुता के विकल्पों को नजरअंदाज नहीं कर सकती; कि पाकिस्तानी सेना को जिहादी समूहों के साथ लंबे समय से जारी अपने गठजोड़ के परिणामों का सामना करना होगा। यह स्थिति दक्षिण एशिया को कम स्थिर क्षेत्र बनाती है। यदि पाकिस्तान अब भी आतंकवाद को राज्य नीति के औजार के रूप में इस्तेमाल करने की राह पर बढ़ता रहा, तो उसे भविष्य में कठोर सच्चाई का सामना करना होगा।

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