महेश खरे (वरिष्ठ पत्रकार )
भारत-अमेरिका की आज जब भी बात होती है तो प्रेसीडेंट डोनाल्ड ट्रंप और पीएम नरेन्द्र मोदी की दोस्ती की चर्चा जरूर होती है। ट्रंप के एजेंडे में अमेरिका फर्स्ट है तो मोदी के मन में भी इंडिया फर्स्ट का भाव है। यह छुपा हुआ कार्ड नहीं, खुली किताब की तरह फ़रवरी में हुई मुलाकात में दुनिया के सामने आ चुका है। देश हित दौनों की प्राथमिकता में है। शायद इसीलिए व्यापारिक मसलों पर तकरार नहीं, इकरार के संकेत मिलते रहते हैं। अब देखिए, ट्रंप ने चीन और भारत समेत सभी ट्रेड पार्टनरों पर जैसे को तैसा (रेसीप्रोकल) टैरिफ लगा दिया है। इसमें चीन से तकरार और भारत के साथ दोस्ती ढ़ूंढ़ेंगे तो आसानी से नजर आ जाएगी। चीन के सामान पर जहां कुल मिलाकर 54 पर्सेंट टैरिफ लगाया गया है वहीं भारत पर एशिया में सबसे कम 26 पर्सेंट है। कारण समझ में आता है। जानकार तो यह भी कहने से चूक नहीं रहे कि भारत ने ट्रंप की डेड लाइन 2 अप्रैल से पहले ही जो ‘सदाशयता’ दिखाई उसी के ‘दोस्ताना जवाब’ में 26 पर्सेंट की ‘सौगात’ मिली है। 2 अप्रैल 2025 अब दो बातों के लिए याद किया जाएगा। एक बकौल ट्रंप अमेरिका का ‘लिबरेशन डे’ और दूसरा रेसीप्रोकल टैरिफ डे। ट्रंप कहते हैं कि दुनिया ने अमेरिका को खूब ठगा है। अब यह नहीं चलेगा। अमेरिकी सामान पर जो देश जितना टैरिफ लगाएगा उसके सामान पर अमेरिका भी उतना ही टैरिफ वसूलेगा।
हालांकि ट्रंप इस ‘पत्थर की लकीर’ के पूरी तरह फकीर बन नहीं पाए हैं। यानि रेसीप्रोकल टैरिफ 50 फीसदी ही लगा पाए। यह टैरिफ भी कितने समय चल पाएगा। अभी यह भी भरोसे के साथ नहीं कहा जा सकता। ट्रंप ने स्वयं ही कहा है कि टैरिफ के मामले में जो देश सहयोगी मुद्रा दिखाएगा उसके सामानों पर टैरिफ घटाया भी जा सकता है। यानि ट्रंप ने राहत की खिड़की खुली रखी है।
खिड़की से याद आया भारत की भी कई देशों के बीच फ्री ट्रेड व्यापार की खिड़की खुली हुई है। भारत ने कई देशों और क्षेत्रीय समूहों के साथ मुक्त व्यापार समझौते किए हैं। जिनमें जापान, दक्षिण कोरिया, आसियान, श्रीलंका, मॉरीशस, संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ शामिल हैं। इसके अलावा अमेरिका समेत कुछ देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत चल रही है। ट्रंप के रेसीप्रोकल टैरिफ की घोषणा से इस बातचीत में स्वाभाविक रूप से तेजी आएगी। चीन तो पहले ही कह चुका है कि वह भारत का और भी सामान खरीदने को तैयार है। प्रश्न यही है कि ट्रंप ने जाने अनजाने क्या दुनिया को नई टैरिफ वार में झौंक दिया है?
क्या चीन टैरिफ के मुद्दे पर टकराव के मूड में हैं? उसकी तैयारी तो पूरी दिखती है। टैरिफ पर चीन का जवाब भी अमेरिका को तिलमिलाने वाला ही रहा। चीन ने अमेरिकी सामानों पर 34 फीसदी का जवाबी टैरिफ घोषित कर दिया है। नई दरें 10 अप्रैल से लागू हो जाएंगी। यदि अमेरिका के टैरिफ से नाराज़ देश चीन के साथ हो लिए तो अमेरिका के लिए नया सिरदर्द खड़ा हो जाएगा। इन देशों में ईयू, कनाडा, पेरू और मैक्सिको का नाम लिया जा रहा है। इन पर भी ट्रंप ने भारत से ज्यादा टैरिफ लगाया है। उधर डब्ल्यूटीओ में भी याचिकाएं दायर की गई हैं।अमेरिका पर इसका शायद ही कुछ असर पड़े। इसके अलावा ट्रंप की ट्रेड वार छेड़ने के एक दिन बाद ही चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ग्लोबल कोर्पोरेट लीडर्स के साथ बातचीत की है। बताते हैं इस बातचीत में अपने व्यापारिक हितों के लिए एकजुट रहने पर जोर दिया गया।
सवाल यह भी है कि ट्रेड वार के नतीजों से निपटने के लिए अमेरिका कितना तैयार है? क्या यूएस का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर इतना मजबूत है? हालांकि ट्रंप आत्म विश्वास से लबरेज हैं। लगता है जैसे कोई तुरुप का पत्ता उनकी जेब में है। तुरुप फेंकेगे और बाजी जीत जाएंगे। लेकिन शेयर बाजार कुछ और ही संकेत दे रहा है। डॉलर के 110 अंक से नीचे आकर 101 अंक छू जाने और अमेरिकी कंपनियों के दो ट्रिलियन डॉलर निकल जाने के बाद वाल स्ट्रीट में हड़कंप मच गया है। टैरिफ वार का दुनिया के साथ अमेरिकी बाजारों पर भी नकारात्मक असर हुआ है। एसएंडपी 500 और डाओ जोन समेत कई कंपनियों के शेयर नीचे आ गए। जापानी निक्केई में भी गिरावट दर्ज की गई। ग्लोबल मार्केट में घबराहट है। मैटल के दाम गिरे हैं। भारत के मैटल कॉपर और एल्यूमीनियम बाजार में गिरावट दर्ज की गई है। यह ट्रेंड अभी कुछ दिन जारी रहने का अनुमान है। सोने में भी करेक्शन आया है।
भारत के सामानों पर पांच अप्रैल से 10 फ़ीसदी टैरिफ लागू हो गया है। 26 फीसदी टैरिफ 9 अप्रैल से लागू होगा। फिलहाल भारत सरकार मौन है। उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय ट्रंप के जवाबी टैरिफ के संभावित नतीजों पर मंथन कर रहा है। अर्थशास्त्रियों का भी मानना है कि इस मुद्दे पर अभी संयम और सावधानी से ही काम लेना बेहतर होगा। वैसे भारत के सामने कई विकल्प खुले हुए हैं। लेकिन यह बाद की बात है। सबसे पहले भारत को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को और मजबूती देने की जरूरत है। शायद इस प्रश्न पर भी नए सिरे से विचार करना पड़े कि भारत की व्यापार नीति अमेरिका पर कितनी निर्भर रहे। 2024 तक अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा है। भारत के कुल निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी लगभग 18 प्रतिशत, आयात में 6.22 प्रतिशत और द्विपक्षीय व्यापार में 10.73 प्रतिशत है।
चीन के रुख के बाद अगर ट्रेड वार शुरू होती है तो भारत सरकार की चतुराई यही होगी कि वह सीधे तौर पर इस पचड़े में नहीं पड़े। हो सकता है उसे नए ट्रेड पार्टनर भी तलाशने पड़ें। खासतौर से पड़ौस में व्यापारिक रिश्तों को और मजबूती देनी होगी। लेकिन आज के माहौल में अमेरिका के साथ मैत्री भी जरूरी है।
उधर नई परिस्थितियों में भारत के लिए आपदा में अवसर भी मिल सकते हैं। ट्रंप ने फार्मा, आईटी, सेमीकंडक्टर, गोल्ड, इलेक्ट्रॉनिक आइटम को नए आदेशों से मुक्त रखा है। सबसे बड़ी राहत तो भारत के टेक्सटाइल क्षेत्र को मिली है। भारत से अमेरिका को अभी 2.8 बिलियन कपड़े का निर्यात होता रहा है। टेक्सटाइल सेक्टर में भारत का मुकाबला चीन समेत वियतनाम और बांग्लादेश से होता है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि ट्रंप ने अन्य एशियाई देशों से आने वाले कपड़े पर भारत की तुलना में ज्यादा टैरिफ लगाया है। नतीजतन भारत का कपड़ा टैरिफ बढ़ने के बाद भी सस्ता मिलेगा। भारत ने सही और व्यावहारिक नीति अपनाई तो टेक्सटाइल क्षेत्र में नए अवसर मिल सकते हैं।
मीडिया की खबरों को सही मानें तो राष्ट्रपति ट्रंप के कुछ तयशुदा गोल हैं। चुनाव प्रचार के दौरान वे इस पर खुलकर बोल भी चुके हैं। अमेरिका का व्यापार घाटा पाटने और अपने देश को अधिक अमीर बनाने के लिए ही ट्रंप ने टैरिफ के कांटों भरे रास्ते पर कदम बढ़ा दिए हैं। इसके साथ ही ट्रंप का इरादा चीन पर दवाब बनाना और यूरोपीय देशों को अपने पाले में करने की रणनीति पर अमल करने का है। अपने लक्ष्य को पाने के लिए ट्रंप किस हद तक कमर कसे हुए हैं अभी यह भरोसे के साथ नहीं कहा जा सकता। ट्रंप जानते हैं कि जिस कांटों भरी राह पर वे चल पड़े हैं उसमें पासे उल्टे भी पड़ सकते हैं। पहले ही दौर में आर्थिक मंदी की बातें तो होने लगी हैं। ट्रंप सरकार के सहयोगी एलेन मस्क को भारी-भरकम घाटे के झटके लग चुके हैं। फिलहाल ट्रंप ने टैरिफ की ‘पथरीली’ पिच सजा दी है। देखना यही है कि मोदी चुनौतियों के बावजूद कामयाबी के कितने चौके छक्के लगाते हैं।
टैरिफ की पिच पर भारत को सिक्सर का अवसर
