बलूचिस्तान की शेरनी महरंग से सहमा पाक

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अरुण नैथानी
हाल के दिनों में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के एक के बाद एक घातक हमलों व एक ट्रेन के अपहरण से पाकिस्तान सहमा हुआ है। जिसका नजला शांतिपूर्ण ढंग से बलूचिस्तान की आजादी की मांग कर रहे संगठनों पर गिर रहा है। पिछले दशकों में सुनियोजित ढंग से आजादी की मांग कर रहे हजारों राष्ट्रवादी बलूचों के लापता होने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। बलूचिस्तान में पिता, पति व पुत्र के इंतजार में हजारों आंखें पथरा गई हैं। ये लोग क्वेटा से लेकर इस्लामाबाद तक लगातार आंदोलन करके अपनों की हकीकत जानना चाहते हैं। इन्हीं में शामिल हैं डॉ. महरंग बलूच, जिनसे पाकिस्तान सरकार खौफ खाती है। जो शांतिपूर्ण ढंग से पाक का निरंकुश एजेंडा विफल बना रही है। सहमी पाक सरकार ने पिछले दिनों महरंग बलूच को हिरासत में ले लिया। दरअसल, बीएलए के लगातार बढ़ते हमलों के बाद पाक सरकार ने शांतिपूर्ण आंदोलन का दमन तेज कर दिया है, जिसकी चपेट में शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन करने वाली मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. महरंग भी आई है।
उल्लेखनीय है कि महरंग के पिता अब्दुल गफ्फार लैंगोव एक राष्ट्रवादी बलूच नेता थे। वर्ष 2009 में उनका सुरक्षा बलों ने अपहरण कर लिया था। जिसके तीन साल बाद उनकी लाश बुरी स्थिति में मिली थी। लेकिन आज महरंग पाक दमन के खिलाफ एक मुखर आवाज बन चुकी है। बहराल, हाल के बीएलए के एक के बाद एक बड़े हमलों ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। खासकर, हालिया ट्रेन अपहरण के मामले ने, जिसने बलूचों की अस्मिता के संघर्ष की आवाज को दुनिया को सुनाया है।
दरअसल, बलूचिस्तान के लोगों की आवाज बन चुकी, नई पीढ़ी की नेता महरंग की गिरफ्तारी पाक हुक्मरानों की हताशा का ही नतीजा है। वास्तव में पाक सेना व खुफिया संगठनों द्वारा पिता की हत्या के बाद महरंग ने प्रतिरोध की आवाज बनने का फैसला किया था। पिता की मौत के बाद सुरक्षा बलों ने उनके भाई को भी वर्ष 2017 में उठा लिया था। उन्हें तब तीन माह तक हिरासत में रखकर यातनाएं देने के बाद छोड़ा गया। उसके बाद महरंग ने तय किया कि वह गैरकानूनी रूप से लोगों को उठाने और उनकी हत्या के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ेंगी। उन पर आज तरह-तरह के प्रतिबंध लगाए जाते हैं, उन्हें गिरफ्तार किया जाता है, धमकियां दी जाती हैं, लेकिन महरंग पीछे मुड़कर देखने को तैयार नहीं हैं। वे कहती हैं कि बलूच लोग बिना अत्याचार के स्वाभिमान से जीना चाहते हैं। हम हिंसा व भय से मुक्ति चाहते हैं। हजारों लोगों के गायब होने का सिलसिला अब बंद होना चाहिए।
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है। यह प्रांत पाक का 44 फीसदी भू-भाग रखता है। यह गैस, सोना व तांबा आदि दुर्लभ खनिजों व प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है। जिस पर चीन समेत दुनिया के देशों की नजर है। वास्तव में जब भारत विभाजन हुआ तो पाक हुकमरानों ने बलूचिस्तान के कबाइली नेताओं को स्वायत्तता देने का वायदा किया। लेकिन बाद में राष्ट्रवादी बलूच नेताओं को धोखा देकर वहां सेना के बल पर दमन शुरू कर दिया। कालांतर में दमन के विरोध में कुछ प्रतिरोधियों ने बंदूकें उठा ली। उनका आरोप था कि पाकिस्तान ने यहां के प्राकृतिक संसाधनों का निर्मम दोहन तो किया लेकिन समृद्धि, शेष पाक व पाकिस्तानी पंजाब में आई। इसके विरोध में ही बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी जैसे संगठनों का उदय हुआ।
वास्तव में इस सबसे अमीर प्रांत की जनता बदहाली का जीवन जी रही है। यहां सड़कों, बिजली, पानी व स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है। चीन की महत्वाकांक्षी योजनाओं के चलते यहां विदेशी पत्रकारों तक के जाने की मनाही है। इस राज्य के प्राकृतिक संसाधनों व संप्रभुता को चीन के हवाले किए जाने से इस क्षेत्र में सशस्त्र प्रतिरोध के सुर तेज हुए हैं। ऐसे में दमन व अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने वाली बलूचिस्तान की शेरनी महरंग बलूच को गिरफ्तार करने की अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने निंदा की है। सवाल बलूचों की आवाज दबाने को लेकर भी उठ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि दुनिया की चर्चित टाइम मैगजीन ने महरंग को दुनिया के सौ उभरते नेताओं में शामिल किया है।
महरंग को तब गिरफ्तार किया गया था जब वे क्वेटा में दमन के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थी। उन पर देशद्रोह व आतंक फैलाने जैसे आरोप लागए गए हैं। उनकी गिरफ्तारी का विरोध कर रहे कुछ प्रदर्शनकारी भी इस कार्रवाई के दौरान मारे गए। बलूच यकजेहती कमेटी के तत्वावधान में आंदोलन की अगुआ बनी महरंग बलूच की गिरफ्तारी के खिलाफ बलूचिस्तान में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। सोशल मीडिया के जरिये उनकी गिरफ्तारी का विरोध किया जा रहा है। लोग उनके पिता के बलिदान व महरंग के योगदान को याद कर रहे हैं। बलूच लोग इस बत्तीस वर्षीय युवा बलूच नेता में अपनी उम्मीदों का अक्स देखते हैं। उनका मानना है कि उनके प्रतिरोध से बलूच नागरिकों का लापता होने का सिलसिला रुकेगा। उन्हें विश्वास है कि देर-सवेर पाक हुक्मरानों को उनके दमखम के आगे झुकना ही पड़ेगा।
वैसे हाल के दिनों में डॉ. महरंग के प्रयासों से यह बदलाव देखने में आया है कि बलूच राष्ट्रीय अस्मिता का आंदोलन अब युवा प्रतिरोध का प्रतीक बनता जा रहा है। विश्वविद्यालयों से निकलने वाले छात्र बलूच आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं। पाक के दमन के बावजूद उनके प्रतिरोध के सुर मुखर हो रहे हैं। इतना ही नहीं जैसे-जैसे पाक सेना व खुफिया एजेंसियों का दमन बढ़ रहा है, युवा हथियार उठाने को मजबूर हो रहे हैं।

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