पप्पू यादव का चुनाव आयोग पर बड़ा हमला: बिहार की वोटर लिस्ट पर उठाए गंभीर सवाल, कहा- लोकतंत्र को नीलाम करने का खेल

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Highlights
  • • पूर्णिया सांसद पप्पू यादव का चुनाव आयोग पर सीधा हमला। • बिहार की मतदाता सूची से 47 लाख नाम घटने पर सवाल। • पूछा – कितने रोहिंग्या, बांग्लादेशी और म्यांमारी वोटर शामिल हैं? • बिहार और महाराष्ट्र की वोटर लिस्ट पर आंकड़ों का फर्क उठाया मुद्दा। • 83 लाख वयस्क आबादी का नाम मतदाता सूची में क्यों नहीं – पप्पू यादव। • SIR रिपोर्ट के आधार पर 69.3 लाख नाम काटे जाने पर चिंता। • चुनाव आयोग से बूथवार डेटा और हलफनामा जारी करने की मांग। • लोकतंत्र को “नीलाम करने वाला खेल” करार दिया। • चुनाव से पहले मतदाता सूची पर गंभीर राजनीतिक बहस तेज। • बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले बड़ा विवाद।

बिहार की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने हाल ही में प्रकाशित बिहार की अंतिम मतदाता सूची (SIR के बाद) को लेकर चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने न केवल इस सूची की पारदर्शिता पर सवाल उठाए बल्कि सीधे चुनाव आयोग को चुनौती दी कि वह देश के सामने हलफनामा दाखिल करे कि बिहार की वोटर लिस्ट में कोई भी विदेशी मतदाता शामिल नहीं है।

रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों पर सवाल

बुधवार को सोशल मीडिया पर लगातार पोस्ट करते हुए पप्पू यादव ने चुनाव आयोग को आड़े हाथों लिया। उन्होंने पूछा कि बिहार की मतदाता सूची में कितने रोहिंग्या, बांग्लादेशी, म्यांमारी और अन्य घुसपैठिए शामिल हैं। साथ ही, उन्होंने आयोग से मांग की कि बूथवार डेटा सार्वजनिक किया जाए, ताकि यह साफ हो सके कि मतदाता सूची में कहीं विदेशी नागरिकों को तो शामिल नहीं किया गया है।

उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि अगर चुनाव आयोग यह साबित नहीं कर सकता तो उसे देश से माफी मांगनी चाहिए। उनके अनुसार, “भाजपा की झूठ और नफ़रत की एजेंसी को चुनाव आयोग बनाने के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए।

बिहार और महाराष्ट्र की वोटर लिस्ट पर तुलना

पप्पू यादव ने आंकड़ों का हवाला देते हुए एक बड़ा सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि बिहार में अचानक 47 लाख मतदाता घट गए, जबकि महाराष्ट्र में मात्र चार महीने के भीतर 40 लाख नए वोटर बढ़ गए

उन्होंने कटाक्ष करते हुए लिखा –

हम बिहारी बदनाम हैं कि हम सबसे ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं, जनसंख्या वृद्धि दर में सबसे आगे हैं। तो फिर वोटर वृद्धि दर में महाराष्ट्र कैसे आगे है?

उनका कहना है कि बिहार में केवल साढ़े 21 लाख नए मतदाता जुड़े, जबकि लाखों नाम काट दिए गए। यह मतदाता सूची में पारदर्शिता की कमी और मनमानी का सबूत है।

83 लाख वयस्क आबादी क्यों नहीं मतदाता?

पप्पू यादव ने एक और महत्वपूर्ण तथ्य सामने रखा। उनके अनुसार, बिहार की कुल वयस्क आबादी 8.3 करोड़ से अधिक है, जबकि मतदाता सूची में केवल 7.419 करोड़ मतदाता दर्ज हैं। यानी लगभग 83 लाख वयस्क नागरिकों का नाम वोटर लिस्ट में शामिल ही नहीं है।

उन्होंने चुनाव आयोग से सीधे पूछा कि आखिर इतने बड़े स्तर पर 83 लाख वयस्क आबादी वोटर क्यों नहीं बन पाई? यह लोकतंत्र को कमजोर करने वाला कदम है।

बिना नोटिस 69.3 लाख नाम कटने पर सवाल

पप्पू यादव ने दावा किया कि SIR के आधार पर 69.3 लाख नाम मतदाता सूची से काट दिए गए। उन्होंने आयोग से पूछा –

• क्या इनमें से प्रत्येक मतदाता या उनके परिजनों को नोटिस भेजा गया था?

• क्या चुनाव आयोग यह शपथपत्र दे सकता है कि अब सूची में कोई भी मृतक व्यक्ति या डुप्लीकेट नाम नहीं है?

उन्होंने राहुल गांधी के पहले दिए गए बयान का हवाला देते हुए कहा कि, “बिना नोटिस किसी भी मतदाता का नाम सूची से नहीं काटा जा सकता।

लोकतंत्र को नीलाम करने का खेल

सांसद ने अपनी पोस्ट में इसे सीधे-सीधे “लोकतंत्र को नीलाम करने का खेल” करार दिया। उनका आरोप है कि वोटर लिस्ट में की गई यह भारी कटौती लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर गहरे सवाल खड़े करती है।

उन्होंने दो टूक कहा कि चुनाव आयोग को अब पारदर्शिता दिखानी होगी और जनता को यह बताना होगा कि आखिर इतनी बड़ी गड़बड़ी कैसे हुई।

पप्पू यादव के सवालों ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। एक तरफ जहां उन्होंने मतदाता सूची में विदेशी घुसपैठियों की बात उठाई, वहीं दूसरी ओर मतदाताओं की भारी कटौती और असमान वृद्धि दर को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया। अब देखना यह होगा कि चुनाव आयोग इस पर क्या जवाब देता है।

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