Desk: लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) की तीन दशक की राजनीति को करीब से जानने वाले आसानी से बता देंगे कि राजद का दुश्मन नंबर वन भाजपा (BJP) है, परंतु तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) की टीम भाजपा को नहीं, जदयू को जानी दुश्मन मानकर चल रही है। इसीलिए उसके निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi), गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) एवं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) की तुलना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ज्यादा है।
चुनाव में हार के बाद बदली चाल
तेजस्वी यादव समेत लालू परिवार के बयान बता रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनने और सत्ता प्राप्त करने से चूक जाने के बाद राजद ने अपनी चाल में तब्दीली कर ली है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग (National Democratic Alliance) की नई सरकार बनने के कुछ दिन बाद तक सब यथावत चल रहा था। भाजपा और जदयू के बीच खटपट का इंतजार किया जा रहा था। यह वह दौर था जब रांची रिम्स में इलाज कराते हुए लालू प्रसाद अपने मिशन में जुटे थे और उन्हें लग रहा था कि उनके प्रयासों से महागठबंधन को सत्ता में वापसी का मौका मिल सकता है। किंतु करीब महीने भर की कोशिशों के बाद भी कामयाबी नहीं मिली तो लालू और तेजस्वी समेत राजद के तमाम नेता पुराने पैटर्न पर लौट आए। नीतीश कुमार पर हमले शुरू कर दिए। प्रवक्ताओं को भी उसी लाइन पर आगे बढऩे का निर्देश दे दिया गया।
नीतीश के रहते तेजस्वी को खतरा
राजनीतिक विश्लेषक (Political Aanlyst) अभय कुमार का मानना है कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों (Political Rivals) की रैंकिंग बदलने के पीछे का मकसद साफ है। तेजस्वी यादव को अहसास है कि नीतीश कुमार के प्रभावी रहते हुए सत्ता में उनकी वापसी बहुत मुश्किल है। बिहार की राजनीति से जदयू का अगर सफाया हो गया तो उसका सीधा फायदा राजद को मिलेगा। तब बिहार में दो ही दलों भाजपा और राजद के बीच ही मुकाबला होगा। आरपार की लड़ाई में तीसरे के लिए कोई गुंजाइश नहीं बचेगी। पिछले 15 वर्षों से नीतीश कुमार बिहार में तीसरा कोण बनाते आ रहे हैं, जिसका ज्यादा नुकसान राजद को हो रहा है।
वोट बैंक के प्रति आश्वस्त
भाजपा से जदयू के गठबंधन (BJP-JDU alliance) के कारण राजद (RJD) अपने परंपरागत वोट बैंक (vote bank) के प्रति भी आश्वस्त है। तेजस्वी को लगता है कि उनका माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण में सेंध भाजपा और जदयू के प्रयासों से नहीं लग सकती है। भूपेंद्र यादव को बिहार का प्रभारी बनाकर और एक अवधि तक यादवों की मनुहार करने के बाद भाजपा को भी अब अंगूर खट्टïे लगने लगे हैं। यही कारण है कि मंत्रिमंडल विस्तार में नंद किशोर यादव सरीखे वरिष्ठ नेताओं को भी दरकिनार कर दिया गया। राज्य सरकार में यादवों का प्रतिनिधित्व नहीं बढ़ाया गया। तेजस्वी को असदुद्दीन ओवैसी (Assadudin Owaisi) की पार्टी एआइएमआइएम (AIMIM) से डर जरूर है, मगर नुकसान का खतरा उन्हीं इलाके में है, जहां मुस्लिमों की आबादी 40 फीसद से ज्यादा है। बाकी क्षेत्रों में भाजपा के जीतने का डर दिखाकर आसानी से उन्हें राजद अपने पक्ष में कर सकता है।