- Advertisement -

आरा: वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय आरा के कुलपति की नियुक्ति में योग्यता को नजरअंदाज करने के मामले में अब नया मोड़ आ गया है. हाल ही में इस मामले को लेकर दायर की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान पटना उच्च न्यायालय की दो सदस्यीय खंडपीठ ने राज्य सरकार एवं वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के कुलसचिव को एक सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है.इस जनहित याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश के विनोद चन्द्रन और न्यायाधीश पार्थ सारथी ने की.

माननीय पटना उच्च न्यायालय की दो सदस्यीय खंडपीठ ने याचिकाकर्ता विद्या शंकर व अन्य की जनहित याचिका सीडब्ल्यूजेसी संख्या – 12504/2024 पर सुनवाई करते हुए याचिका को सुनवाई योग्य माना और तल्ख टिप्पणी की. कुलपति की नियुक्ति में योग्यता को नजरअंदाज करने जैसे गंभीर मामले पर उच्च न्यायालय ने तुरंत जवाबी हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है.
वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय आरा के कुलपति डॉ. शैलेन्द्र कुमार चतुर्वेदी की नियुक्ति में सर्च कमिटी के गठन में जहां अनियमितता बरती गई है वहीं कुलपति के पद पर नियुक्ति के लिए दस सालों के कार्यानुभव के साथ प्रोफेसर पद की योग्यता को नजरअंदाज भी किया गया है.
याचिकाकर्ता ने राजभवन और राज्य सरकार से आरटीआई से प्राप्त सूचनाओं के बाद पाया कि वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति के लिए गठित सर्च कमिटी असंवैधानिक और अवैध है.

सर्च कमिटी द्वारा कुलपति के पद पर नियुक्ति के लिए डॉ. शैलेन्द्र कुमार चतुर्वेदी की विश्वविद्यालय में दस सालों के कार्यानुभव के साथ प्रोफेसर के पद पर कार्य करने की निर्धारित योग्यता को नजरअंदाज करते हुए कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए चयन किया जिसके बाद तत्कालीन राज्यपाल सह कुलाधिपति फागू चौहान ने उन्हें कुलपति बनाया. इन तथ्यों के सामने आने के बाद याचिकाकर्ता विद्या शंकर व अन्य ने राज्यपाल सह कुलाधिपति और राज्य सरकार को साक्ष्य सहित आवेदन देकर उनसे डॉ. शैलेन्द्र कुमार चतुर्वेदी की नियुक्ति को निरस्त करने की मांग की थी.बावजूद इसके राजभवन और राज्य सरकार द्वारा इस नियुक्ति को निरस्त नहीं किया गया तब जनहित में याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.

कुलपति की नियुक्ति के लिए राजभवन द्वारा गठित सर्च कमिटी में नियमतः तीन ऐसे प्रतिनिधि होने चाहिए जिनमें एक कुलाधिपति, एक राज्य सरकार और एक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानि यूजीसी के चेयरमैंन द्वारा नामित प्रतिनिधि प्रमुख रूप से शामिल हों.

वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति के लिए गठित सर्च कमिटी में यूजीसी के चेयरमैंन द्वारा नामित सदस्य को नहीं बुलाया गया. इस तरह यह सर्च कमिटी पूरी तरह से असंवैधानिक एवं अवैध है और इस सर्च कमिटी द्वारा डॉ. शैलेन्द्र कुमार चतुर्वेदी की नियुक्ति भी अवैध हैं.दूसरी बात यह कि डॉ. शैलेन्द्र कुमार चतुर्वेदी देश के किसी भी मान्यताप्राप्त विश्वविद्यालय में दस सालों के कार्यानुभव के साथ प्रोफेसर के पद पर कार्य करने की बात तो दूर एक साधारण व्याख्याता तक नहीं रहे हैं. डॉ. चतुर्वेदी प्राइवेट शिक्षण संस्थान से जुड़े रहे हैं. वे नारायणा ग्रुप ऑफ इंस्टिच्यूशंस कानपुर में कार्यरत थे.

तीसरा बिंदु यह है कि देश के किसी भी मान्यताप्राप्त विश्वविद्यालय में दस सालों के कार्यानुभव के साथ प्रोफेसर नहीं होने के तथ्य का खुलासा न हो जाय इसके लिए डॉ. शैलेन्द्र कुमार चतुर्वेदी ने वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय में कुलपति के पद पर योगदान देने के बाद अपना लास्ट पे सर्टिफिकेट यानि एलपीसी जमा नहीं किया और तत्कालीन कुलसचिव से मिलकर बिना एलपीसी जमा किये ही वेतन लेना शुरू कर दिया.उन्हें यह भय था कि अगर वे एलपीसी जमा करते तो उनके निजी संस्थान से जुड़े रहने की बात का खुलासा हो जाता कि उनकी योग्यता कुलपति बनने की नहीं है.

उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार और वीकेएसयू के कुलसचिव से इस मामले में जवाबी हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है इससे यह बात स्पष्ट है कि कुलपति की नियुक्ति में राजभवन और राज्य सरकार की मिलीभगत से चल रहे खेल का खुलासा होना तय है.

- Advertisement -

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here