पितृपक्ष 2025 शुरुआत और समापन, जानिए किस दिन करें श्राद्ध

By Aslam Abbas 107 Views Add a Comment
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पितृपक्ष 2025 की शुरुआत इस साल 7 सितंबर से हो रही है और समापन 21 सितंबर दिन रविवार को होगा। बता दें कि हर साल भाद्रपद (भादो) मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष की शुरुआत होती है और अश्विन मास की अमावस्या तिथि को समापन होती है। लगभग 15 दिन की इस अवधि को श्राद्ध पक्ष या महालय पक्ष भी कहते हैं। साथ ही इस दिन साल 2025 का अंतिम चंद्र ग्रहण भी लगने वाला है।

वैदिक ग्रंथों और धर्मशास्त्रों में पितृपक्ष को विशेष स्थान दिया गया है। इस अवधि में पितर पृथ्वी लोक पर आते हैं और परिजनों के यहां के निवास करते हैं। पितृपक्ष में हर तिथि को किसी ना किसी का श्राद्ध होता है, ऐसे में सबसे ज्यादा पितृपक्ष में सवाल होता है कि सर्पदंश, विष, हत्या या आत्महत्या आदि लोगों का श्राद्ध कब किया जाए।

पितृपक्ष में पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध कर्म, तर्पण और दान पुण्य के कार्य किए जाते हैं. ये 15 पितरों की कृतज्ञता को प्रकट करने और उनकी आत्मा को शांति पहंचाने के लिए उत्तम दिन हैं. गरुड़ पुराण और धर्मसिन्धु के अनुसार, इस काल में पितरों की आत्माएं धरती पर अपने वंशजों के पास आती हैं और श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान से तृप्त होकर आशीर्वाद देती हैं. जिससे परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है और सभी तरह के दोषों से राहत भी मिलती है. पितरों की कृपा से जीवन में संतान सुख, आयु, आरोग्य और समृद्धि बनी रहती है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अगर पितरों का श्राद्ध न किया जाए तो जातक को पितृदोष का सामना करना पड़ता है, जिससे वंश में रुकावटें, संतान कष्ट, आर्थिक बाधाएं और मानसिक अशांति बनी रहती है. मनुस्मृति और गरुड़ पुराण में स्पष्ट कहा गया है कि जो श्राद्ध नहीं करता, वह पितरों और देवताओं दोनों से विमुख हो जाता है. पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि यह पितरों के प्रति हमारा ऋण चुकाने का एक तरीका है, देवऋण, ऋषिऋण और पितृऋण में से पितृऋण सबसे प्रमुख है।

अब सवाल आता है कि जिन व्यक्तियों की अपमृत्यु अर्थात किसी प्रकार की दुर्घटना, शस्त्रप्रहार, सर्पदंश, विष, हत्या, आत्महत्या या फिर किसी की अस्वाभाविक मृत्यु हुई हो तो वे कब श्राद्ध कर्म करें. ध्यान रखें कि इनका श्राद्ध मृत्यु तिथि वाले दिन नहीं करना चाहिए, यह गलत है. अपमृत्यु वाले व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म और तर्पण हमेशा चतुर्दशी तिथि को ही करना चाहिए. इनकी मृत्यु किसी भी तिथि में हुई हो लेकिन इनका श्राद्ध हमेशा चतुर्दशी तिथि को ही किया जाता है।

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