विज्ञापन की दुनिया में पीयूष पांडे का जादुई सफर
विज्ञापन की दुनिया में ऐसे क्रिएटिव मास्टर कम ही आते हैं, जो न केवल ब्रांड को ऊंचाइयों तक ले जाएं, बल्कि आम लोगों के दिलों में भी गहरी छाप छोड़ दें। पीयूष पांडे ऐसे ही क्रिएटिव जीनियस थे, जिन्होंने भारतीय विज्ञापन जगत को पूरी तरह बदल दिया।
1955 में जयपुर, राजस्थान में जन्मे पीयूष पांडे ने बचपन से ही क्रिएटिविटी और बहुआयामी प्रतिभा दिखाई। उनके परिवार में भाई प्रसून पांडे फिल्म निर्देशक हैं और बहन ईला अरुण गायिका एवं अभिनेत्री। बचपन में ही उन्होंने रणजी ट्रॉफी में क्रिकेट खेला और पढ़ाई में उत्कृष्ट अंक हासिल किए। इसके बाद दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से इतिहास में पोस्ट-ग्रेजुएशन किया।
विज्ञापन में कदम और यादगार क्रिएशंस
कम उम्र में ही पीयूष पांडे ने विज्ञापन जगत में कदम रखा। 27 साल की उम्र में उन्होंने अपने भाई प्रसून पांडे के साथ रेडियो जिंगल्स में आवाज दी और रोजमर्रा के उत्पादों के लिए क्रिएटिव काम करना शुरू किया। 1982 में उन्होंने ओगिल्वी इंडिया जॉइन किया और 1994 में बोर्ड में शामिल हुए। उनके नेतृत्व में ओगिल्वी ने भारत की विज्ञापन दुनिया में कई अनूठे और यादगार अभियान चलाए।
सबसे यादगार क्रिएशंस

• फेविकॉल – ट्रक वाला विज्ञापन (2007): साधारण चिपकाने वाले गोंद को घर-घर में प्रसिद्ध किया। ट्रक पर लोग गिरते नहीं और गाड़ी चलती रहती है।
• कैडबरी डेयरी मिल्क – क्रिकेट वाला विज्ञापन (2007): बच्चा छक्का मारकर खुशी में नाचता है और मोहल्ला झूम उठता है। “कुछ खास है जिंदगी में” की टैगलाइन लोगों के दिलों में उतर गई।
• एशियन पेंट्स – हर घर कुछ कहता है (2002): परिवार की भावनाओं को दीवारों पर जीवित किया। टैगलाइन ने लाखों घरों को छू लिया।
• हच (वोडाफोन) – पग वाला विज्ञापन (2003): मोबाइल कनेक्टिविटी को दोस्ती और विश्वास से जोड़ा। “भाई, हच है ना!” हर घर में प्रसिद्ध हुआ।
• पल्स पोलियो – दो बूंदें जिंदगी की: स्वास्थ्य जागरूकता को लोगों तक पहुंचाने वाला क्रांतिकारी अभियान।
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राजनीतिक विज्ञापन में छाप
2014 में पीयूष पांडे ने बीजेपी के ‘अबकी बार मोदी सरकार’ स्लोगन को तैयार किया। यह नारा आज भी लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय है। इसके जरिए उन्होंने साबित किया कि विज्ञापन सिर्फ उत्पाद बेचने का माध्यम नहीं, बल्कि भावनाओं और संदेशों को जनता तक पहुँचाने का जरिया भी है।
साथ ही उन्होंने ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ अभियान के माध्यम से संगीत और विज्ञापन का जादू दिखाया, जिसने भारत की सांस्कृतिक एकता को नई ऊँचाई दी।
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पुरस्कार और सम्मान
पीयूष पांडे और उनके भाई प्रसून पांडे को 2018 में Cannes Lions का St. Marks Award मिला, जो उनकी आजीवन रचनात्मक उपलब्धियों का सम्मान था। 2023 में उन्होंने ओगिल्वी इंडिया के कार्यकारी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया और सलाहकार की भूमिका संभाली।
उनकी सोच ने सैकड़ों युवा क्रिएटिव्स को प्रेरित किया, जो आने वाली पीढ़ियों में भारतीय विज्ञापन को नई दिशा देने के लिए तैयार हैं।
पीढ़ियों तक याद रखे जाएंगे पीयूष पांडे
पीयूष पांडे का आदर्श था— “सिर्फ मार्केट को नहीं, दिल से बोलो।” उनके सहयोगी और सहकर्मी उन्हें मार्गदर्शक और क्रिएटिव गुरु के रूप में याद करते हैं। उनके बनाए विज्ञापन, स्लोगन और जिंगल्स अब भारतीय संस्कृति का हिस्सा बन गए हैं।
उनकी रचनात्मकता ने यह साबित किया कि अगर कहानी में दिल और भावना हो, तो वह किसी भी ब्रांड या अभियान को घर-घर में पहुँचाने की शक्ति रखती है। भारतीय विज्ञापन दुनिया का यह जादूगर हमेशा याद रखा जाएगा।
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