PM modi and Valdimir Putin
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अवंतिका आदित्य की कलम से

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय रूस यात्रा ने अंतर्राष्ट्रीय राजनय में अपनी गहरी चाप छोड़ी है। इस यात्रा से न केवल द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूती मिली है बल्कि युद्ध के खिलाफ और शांति के पक्ष में भारत का रुख भी एक बार फिर प्रभावी ढंग से रेखांकित हुआ है। पीएम मोदी की इस यात्रा को लेकर दुनिया भर में कितनी उत्सुकता थी इसका अंदाजा विभिन्न देशों की प्रतिक्रियाओं से भी मिलता है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की इस यात्रा पर अपनी निराशा जाहिर करते हुए इसे शांति प्रयासों को झटका तक बता चुके थे। अमेरिका ने भी यात्रा को लेकर अपनी चिंता जता दी। खुद पीएम मोदी ने भी राष्ट्रपति पूतिन के साथ बातचीत में इसका जिक्र किया कि उनके रूस आने पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हैं। मौजूदा अंतरराष्ट्रीय हालात को ध्यान में रखें तो अमेरिका और यूक्रेन की प्रतिक्रियाओं में कोई अचरज वाली बात नहीं है।

यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ही अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों का जोर इस बात पर रहा है कि भारत रूस से अपनी करीबी खत्म करे। भारत ने शुरू से ही यह स्पष्ट कर रखा है कि वह अपने राष्ट्रहित पर आधारित स्वतंत्र विदेश नीति पर कायम रहेगा। इसके बावजूद यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से पीएम रूस नहीं गए थे। दोनों देशों के बीच होने वाली सालाना द्विपक्षीय शिखर बैठक भी 2022 के बाद से नहीं हो पाई थी। इससे रूस के कुछ हलकों में यह धारणा बनने लगी थी कि भारत अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रभाव में रूस से दूरी बनाए रखना चाहता है। पीएम मोदी की इस यात्रा के पीछे जहां द्विपक्षीय रिश्तों को संदेहों और अविश्वासों से मुक्त करने की बात थी, वहीं अंतरराष्ट्रीय हलकों में यह स्पष्ट संदेश भेजना था कि भारत को किसी तरह के दबाव के जरिए इस या उस पक्ष में झुकाना संभव नहीं है।

इस यात्रा के दौरान दोनों देशों में सहयोग बढ़ाने के समझौते तो हुए ही, पीएम मोदी ने पूतिन के साथ बातचीत में पूरी बेबाकी से कहा, ‘युद्ध के मैदान से कोई हल नहीं निकलता।’ यह पीएम मोदी का वैसा ही बयान है जैसा दो साल पहले समरकंद में पूतिन से बातचीत के दौरान उन्होंने दिया था कि ‘यह युद्ध का दौर नहीं है’। यह खबर भी सुकून देने वाली है कि रूस ने भारत के आग्रह पर न केवल रूसी सेना के सपोर्ट स्टाफ के रूप में भारतीयों की नियुक्ति रोकना स्वीकार कर लिया है बल्कि नियुक्त किए जा चुके युवाओं को स्वदेश भेजने पर भी मान गया है। कुल मिलाकर पीएम मोदी की यह यात्रा सफल कूटनीति के एक उत्तम उदाहरण के रूप में याद रखी जाएगी।

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