पटना: जन सुराज पार्टी के संस्थापक और राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) ने बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल मचा दी है। अपने ‘बिहार बदलाव यात्रा’ के दौरान पीके ने कहा कि इस चुनाव के बाद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। उन्होंने जनता से अपील की कि वे जात-पात और धर्म से ऊपर उठकर अपने बच्चों के भविष्य के लिए वोट करें।
प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार के लोग अब बदलाव चाहते हैं। उनके मुताबिक, लगभग 56% जनता राजनीतिक परिवर्तन की उम्मीद में है। जन सुराज पार्टी इसी बदलाव की दिशा में एक विकल्प बनकर उभरी है। पहले लोग जंगलराज के डर से नीतीश को वोट देते थे, लेकिन अब जनता विकल्पहीन नहीं रही।
बिहार बदलाव यात्रा में प्रशांत किशोर का जनसंवाद और जनता की राय
पीके लगातार गांव-गांव जाकर लोगों से मिल रहे हैं और उनकी परेशानियाँ सुन रहे हैं। उन्होंने कहा, “इस बार बिहार को नई सोच की ज़रूरत है। अगर हम फिर जात और धर्म के नाम पर वोट देंगे तो बच्चों का भविष्य अंधकारमय रहेगा।”
जन सुराज पार्टी का दावा है कि जनता अब “नई दवा” चाहती है, “एक्सपायरी दवा” नहीं — यह उनकी राजनीति की सबसे बड़ी थीम बन गई है।

100 भ्रष्ट मंत्रियों और IAS अधिकारियों की सूची तैयार – पीके का बड़ा खुलासा
प्रशांत किशोर ने अपने भाषण में चौंकाने वाला खुलासा किया कि उनके पास 100 भ्रष्ट मंत्रियों और IAS अधिकारियों की लिस्ट है। उनका कहना है कि अगर जन सुराज सरकार बनती है, तो 100 दिन के अंदर सात बड़े काम पूरे किए जाएंगे।
उन्होंने वादा किया कि जिन लोगों ने राज्य का पैसा लूटा है, उन्हें स्पेशल कोर्ट में ट्रायल कराकर जेल भेजा जाएगा और जनता का पैसा वापस लिया जाएगा।
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एनडीए और राजद – दोनों पर प्रशांत किशोर का निशाना
प्रशांत किशोर ने कहा कि मौजूदा एनडीए सरकार अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार है। हालांकि उन्होंने नीतीश कुमार की ईमानदारी की तारीफ की, लेकिन कहा कि उनके आस-पास बैठे लोग अराजकता फैला रहे हैं।
उन्होंने कहा, “नीतीश जी ईमानदार हैं, लेकिन उनके मंत्रियों की वजह से सरकार की छवि लालू यादव के शासन से भी खराब हो चुकी है।”
पीके ने राजद और लालू परिवार पर भी हमला किया। उन्होंने कहा कि “लालू यादव को गरीबों की नहीं, अपने बेटे की चिंता है। अगर वे सच्चे जननेता हैं, तो किसी गरीब को मुख्यमंत्री बनाएं।”
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प्रशांत किशोर की राजनीति का प्रभाव और बढ़ती लोकप्रियता
प्रशांत किशोर का यह बयान सिर्फ एक दावा नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति में सियासी भूचाल है।
उनकी “बदलाव यात्रा” के बाद से ग्रामीण इलाकों में उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। उन्होंने खुद कहा कि “सत्ता का अनुभव नहीं, जनता का अनुभव ही असली ताकत है।”
जनसुराज पार्टी ने पिछले उपचुनावों में लगभग 10% वोट हासिल किए थे, जो किसी नई पार्टी के लिए बड़ी उपलब्धि है। बिहार जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य में यह वोट शेयर बड़ा असर डाल सकता है।
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निष्कर्ष – बिहार में बदलाव की बयार या नया सियासी प्रयोग?
प्रशांत किशोर का दावा चाहे विवादास्पद हो, लेकिन उनके तर्क और अभियान ने बिहार की राजनीति में एक नई चर्चा को जन्म दिया है।
क्या वाकई नीतीश युग का अंत होने वाला है, या फिर यह सिर्फ राजनीतिक रणनीति है — इसका जवाब तो चुनाव परिणाम ही देंगे।
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