अपने बच्चों को ‘पीयर ग्रुप’ के दवाब से बचाये

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गणेश दत्त पाठक (वरिष्ठ पत्रकार)
बोर्ड की परीक्षाओं के परिणाम आने लगे हैं। बच्चे और अभिभावक अब कैरियर संवारने की जुगत में लग चुके हैं। कुछ बोर्ड के रिजल्ट आ गए हैं कुछ के आनेवाले हैं। अब बच्चों को कुछ अभिभावक उच्च शिक्षा के लिए बड़े शहरों के लिए भेजने की तैयारी में लगे हैं। लेकिन परिवार के स्तर पर एक होम वर्क की बड़ी आवश्यकता है। बच्चों को जो संगी साथी मिलने जा रहे हैं यानी उनके भावी पीयर ग्रुप के बारे में सचेत करना आवश्यक है। क्योंकि जरूरी नहीं कि उनका पीयर ग्रुप सकारात्मक ही मिले। पीयर ग्रुप नकारात्मक भी मिल सकता है। यह नकारात्मक पीयर ग्रुप बेहद खतरनाक होता है। क्योंकि भोले भाले बच्चे जब अपने खराब संगे साथियों के संगत में आते हैं तो वहां नियंत्रण रखने वाला कोई परिवार का सदस्य नहीं मौजूद रहता है। इससे बच्चों के भटकने की आशंकाएं होती है। बच्चों को बाहर भेजने के पहले उनके पीयर ग्रुप के बारे में बच्चों को सचेत और सतर्क करना आवश्यक होता है।
दसवीं और बारहवीं में पढ़ने वाले बच्चे बेहद भोले भाले होते हैं। जब ये बच्चे बड़े शहरों में जाते हैं तो उनका सामना अन्य संगी साथियों से होता है। ये पियर ग्रुप अच्छा भी हो सकता है और खराब भी। सामान्य तौर पर पीयर ग्रुप एक समूह होता है जिसमें शामिल बच्चों और युवाओं की समान आयु, रुचि और सामाजिक स्थिति होती है। यह समूह अक्सर स्कूल, कॉलेज, कोचिंग इंस्टीट्यूट में बनते हैं। इसके सदस्य एक दूसरे से जुड़ते हैं और एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। बच्चों के कुछ पीयर ग्रुप सकारात्मक होते हैं जिसमें अच्छे बच्चे शामिल होते हैं इसके बच्चे एक दूसरे को प्रेरित करते हैं अच्छे संस्कार एक दूसरे को सिखाते हैं जबकि कुछ पीयर ग्रुप नकारात्मक होते हैं जिसके बच्चे गलत हरकतों से लैस होते हैं, नशा आदि के शिकार होते हैं। इनके संगत में आने से बच्चे भी बिगड़ जाते हैं। जबकि कुछ पीयर ग्रुप मिश्रित प्रकार के होते हैं जिसमें सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव वाले बच्चे होते हैं। अब यह संयोग होता है कि किस तरह के पीयर ग्रुप के पास बच्चा जाता है।
सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि पीयर ग्रुप के दवाब में बच्चे आसानी से आ जाते हैं। इसलिए अभिभावकों की जिम्मेवारी है कि पीयर ग्रुप के पास जाने से पहले ही बच्चों को सतर्क और सचेत कर दिया जाय। बच्चे पीयर ग्रुप के दवाब में इसलिए आसानी से आ जाते हैं क्योंकि अबोध बच्चे अपने समूह के साथ तालमेल बिठाने और स्वीकृति प्राप्त करने के लिए बेहद उत्सुक होते हैं। बच्चे सामाजिक स्वीकृति की आवश्यकता को महसूस करते हैं और अपने पीयर ग्रुप के साथ तालमेल बिठाने के लिए दवाब में आ जाते हैं। बच्चों का आत्म मूल्य और आत्म सम्मान अक्सर उनके पीयर ग्रुप की राय पर निर्भर करता है। यदि वे अपने पीयर ग्रुप की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते हैं तो उन्हें आत्म सम्मान की कमी महसूस हो सकती है। पीयर ग्रुप के दवाब में बच्चे अक्सर भावनात्मक दवाब को महसूस करते हैं। यदि बच्चे अपने पीयर ग्रुप की अपेक्षाओं पर नहीं उतरते हैं तो उन्हें चिंता, तनाव और अवसाद जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। बच्चों में सामान्यतया सीखने और अनुकरण करने की प्रवृति होती है। यदि उनके पीयर ग्रुप में कोई नकारात्मक आदतें या व्यवहार होती है तो बच्चे शीघ्रता से उसका अनुकरण करते हैं। यहीं सबसे बड़ी समस्या है। अनेक युवा पीयर ग्रुप के दवाब में ही नशे की दलदल में फंसते हैं। घर परिवार से दूर बच्चे स्वतंत्रता का उपभोग करते हैं। उनके परिवारजनों की अनुपस्थिति उन्हें मनमाने गतिविधियों के लिए प्रेरित करती है। लेकिन सत्य यह भी है कि कभी कभी सकारात्मक पीयर ग्रुप के प्रभाव में जब बच्चे आते हैं तो उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव भी आते हैं।
पीयर ग्रुप के नकारात्मक प्रभाव बेहद खतरनाक भी साबित होते हैं। पीयर ग्रुप के दवाब के कारण बच्चों का आत्मविश्वास डांवाडोल हो जाता है। यदि बच्चे अपने मित्रों के दवाब में आते हैं और अपने विचारों और निर्णयों पर विश्वास नहीं करते हैं तो इससे उनके आत्मविश्वास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। बच्चे यदि अपने पीयर ग्रुप के नकारात्मक व्यवहार और आदतों को अपनाते हैं तो इससे उनके व्यक्तित्व और भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंकाएं होती है। कभी कभी यह भी देखा जाता है कि बच्चे कभी ऐसी संगत में फंस जाते हैं जहां पढ़ाई के प्रति लापरवाही का व्यवहार होता है। ऐसा करने से उनके शैक्षणिक प्रदर्शन पर नकारात्मक असर पड़ता है। मित्रों के दवाब में आने पर कभी कभी बच्चों में तनाव, चिंता अवसाद की स्थिति भी देखी जाती है। कारण यह होता है कि बच्चे संगी साथियों के दवाब में वह काम करते हैं जो उनके मूल्यों और आदर्शों के खिलाफ होता है। संगी साथियों के दवाब में बच्चे परिवार और समाज से दूरी भी बना लेते हैं। ऐसे में बहुत जरूरी है कि बच्चों को पीयर ग्रुप के दवाब में आने से बचाने के लिए सार्थक प्रयास किए जाएं। निश्चित तौर पर इस संदर्भ में बड़ी भूमिका परिवार और अभिभावक गण को ही निभानी पड़ती है।
पीयर ग्रुप के दवाब में आने से बचाने के लिए अभिभावकगण को कुछ होमवर्क अवश्य करने चाहिए। मसलन बच्चों से अभिभावक को खुलकर बात करनी चाहिए। उनकी भावनाओं को समझने का प्रयास करना चाहिए। बच्चों को अपनी भावनाएं और संवेदनाओं को खुलकर प्रकट करने के लिए अभिभावक को प्रेरित करना चाहिए। इससे बच्चे पीयर ग्रुप के दवाब के बारे में सहजता से संवाद कर पाएंगे। ऐसे में नकारात्मक व्यवहार पर तत्काल लगाम लगाया जा सकता है। बच्चों की उपलब्धियों की नियमित सराहना की जानी चाहिए ताकि उन्हें प्रोत्साहन मिले । इससे बच्चे अपने निर्णयों पर विश्वास कर सकेंगे और पियर ग्रुप के दवाब में आने से बच पाएंगे। बच्चों को अभिभावकों द्वारा सदैव यह बताना चाहिए कि क्या गलत और क्या सही है? इससे बच्चों की वैचारिक सीमाएं निर्धारित हो जाती हैं। वे हर नकारात्मक आदत या व्यवहार से सचेत रह पाएंगे। बच्चों को अभिभावकगणों और शिक्षकों द्वारा हमेशा यह बताया जाना चाहिए कि कौन मित्र अच्छे होते हैं और कौन मित्र बुरे ? कैसी संगति अच्छी होती है और कैसी संगति बुरी ? इससे बच्चे मित्रों के चयन के संदर्भ में सचेत रहते हैं। बच्चों को संगति और मित्रों के बारे में निरंतर जागरूक करने के प्रयास परिवार में चलते रहने चाहिए। अभिभावकों को चाहिए कि वे बाहर जाकर पढ़ने वाले अपने बच्चों के व्यवहार की नियमित मॉनिटरिंग करते रहें। बच्चों के व्यवहार या संवाद में किसी भी तरह के परिवर्तन पर अभिभावक और परिवार को सतर्क हो जाना चाहिए। ऐसा न हो कि बच्चों की आर्थिक सहायता तक ही परिवार सीमित रह जाए।
बच्चे बाहर पढ़ने अपने भविष्य के बेहतर निर्माण के लिए जाते हैं लेकिन कुसंगति उनके भविष्य को तबाह कर देती है कभी कभी। इसलिए अपने बच्चों को सजग और सचेत करना हर अभिभावक का अहम कर्तव्य हो जाता है। थोड़ी सी सजगता और सतर्कता हमारे बच्चों के भविष्य को बचा सकती है।

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