अशोक भाटिया (समीक्षक और विश्लेषक )
कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को वीर सावरकर पर की गई विवादित टिप्पणी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी फटकार सुनाई है। अदालत ने राहुल गांधी से कहा कि उन्हें स्वतंत्रता सेनानियों का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। यदि भविष्य में ऐसे बयान दिए गए तो अदालत इस पर स्वतः संज्ञान लेगी। यह फटकार केवल राहुल गांधी के लिए ही नहीं बल्कि उन जैसे अन्य नेताओं के लिए भी एक चेतावनी है।राहुल गांधी ने 17 दिसंबर 2022 को महाराष्ट्र के अकोला के एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में वीर सावरकर पर अपमानजनक टिप्पणी की थी। उन्होंने सावरकर को अंग्रेजों का नौकर और पेंशन लेने वाला बताया था। वीर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता थे। उनके योगदान को लेकर विभिन्न दृष्टिकोण रहे हैं, लेकिन राहुल गांधी का यह बयान आलोचनाओं के साथ-साथ कानूनी विवादों का कारण बना।
सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी के बयान पर सख्त नाराजगी जताई। अदालत ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान करना बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। न्यायमूर्ति ने राहुल को कहा, आप एक जिम्मेदार राजनेता हैं, आपको इस प्रकार के गैर-जिम्मेदाराना बयान नहीं देने चाहिए। अदालत ने चेतावनी भी दी। सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता ने यह भी कहा कि राहुल गांधी ने बिना इतिहास को पूरी तरह समझे ऐसा बयान दिया। आप उन लोगों के बारे में कैसे ऐसा कह सकते हैं जिन्होंने देश को आज़ादी दिलाई ? राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी अंग्रेज अधिकारियों को पत्र भेजते थे तो लिखते थे- योर फेथफुल सर्वेंट। तो क्या उसके चलते आप महात्मा गांधी को भी अंग्रेजों का नौकर कहेंगे ? स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान करना गलत है।
बहुत समय से राहुल गाँधी और कॉन्ग्रेस पार्टी लगातार वीर विनायक दामोदर सावरकर का अपमान करने में लगी हुई रही है । ‘मैं माफ़ी नहीं माँगूँगा, मैं सावरकर नहीं हूँ’ – सावरकर मनुस्मृति को मानते थे जो संविधान के बिल्कुल उलट है। सावरकर को संविधान में भारतीयता भी नहीं दिखा था।राहुल गाँधी बार-बार ये डायलॉग बोलते रहे हैं और कांग्रेस पार्टी इसका वीडियो भी शेयर करती रही है। ये अलग बात है कि राफेल से लेकर ‘मोदी’ सरनेम वाले लोगों को गाली देने तक, राहुल गाँधी अदालतों में माफ़ी माँगते रहे हैं। इतने चुनाव हारने के बावजूद बार-बार एक महान स्वतंत्रता सेनानी का अपमान किया जा रहा है।
राहुल दोहराते है कि मैं सावरकर नहीं हूं। सच तो यह है कि वे कभी सावरकर बन भी नहीं सकते। जब राहुल गाँधी के दादी के पिता जवाहरलाल नेहरू नहीं बन पाए, तो राहुल गाँधी क्या बनेंगे ? जवाहरलाल नेहरू जब नाभा जेल में थे, तब उनके पिता ने न जाने कहाँ-कहाँ पैरवी कर के उन्हें 12 दिनों में ही निकलवा लिया था। जबकि, वीर सावरकर ने 11 वर्षों तक जेल भी नहीं, बल्कि उससे भी खौफनाक कालापानी की सज़ा भुगती। उनके भाई गणेश भी उसी जेल में थे, लेकिन दोनों की मुलाकात तक नहीं होती थी।
भले ही आज सावरकर की देशभक्ति पर आज राहुल सवाल उठाते रहे हैं लेकिन उनकी दादी इंदिरा गांधी ने आज से 42 साल पहले 20 मई 1980 को सावरकर को ‘देश का महान सपूत’ कहा था। 2018 के अक्टूबर माह की बात है कि जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और भाजपा आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय वीर सावरकर और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से जुड़े एक मसले पर एक राय थी। अमित मालवीय ने एक ट्वीट किया था, जिसमें एक इमेज पोस्ट की गई थी। जिसमें इंदिरा गांधी और वीर सावरकर की तस्वीरें थी । इंदिरा गांधी के वीर सावरकर के बारे में दिया गया बयान भी था। जिसमें इंदिरा गांधी ने कहा था कि सावरकर द्वारा ब्रिटिश सरकार की आज्ञा का उल्लंघन करने की हिम्मत करना हमारी आजादी की लड़ाई में अपना अलग ही स्थान रखता है। इस तस्वीर में एक और बात बताई गई कि इंदिरा गांधी ने महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर के योगदान को पहचाना था। 1970 में वीर सावरकर के सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया था। इसके साथ पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सावरकर ट्रस्ट में अपने निजी खाते से 11,000 रुपए दान किए थे। इतना ही नहीं इंदिरा गांधी ने साल 1983 में फिल्म डिवीजन को आदेश दिया था कि वह ‘महान क्रांतिकारी’ के जीवन पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाएं।’ भारत के लोग बड़ी संख्या में अंदमान निकोबार द्वीप के उस सेल्युलर जेल में जाकर अपना शीश नवाती रही है जहां सावरकर ने कठोर यातना भुगती थी। वहां जानेवालों में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी थे। उन्होंने ही अंडमान निकोबार के हवाई अड्डे का नाम 2005 में वीर सावरकर रखा था।
सीधी बात है कि राहुल गाँधी, आप सावरकर बन भी नहीं सकते। भारत के सूचना आयुक्त उदय माहुरकर ने अपनी पुस्तक में बताया है कि कैसे कई स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर से प्रेरित थे। उन्होंने लिखा है कि कैसे वामपंथी बार-बार इस तथ्य को नज़रअन्दाज़ करते हैं कि बलिदानी भगत सिंह वीर सावरकर की पुस्तक ‘1857 का स्वतंत्रता समर’ से प्रेरित थे।वीर सावरकर ने सन् 1952 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ हुई अपनी एक 12 साल पुरानी मुलाकात का भी जिक्र किया था। नेताजी के बॉम्बे स्थित आवास पर हुई इस बैठक में सावरकर ने उन्हें एक महत्वपूर्ण सलाह दी थी। ये सलाह ये थी कि वैश्विक मंच पर दुश्मन के दुश्मन को दोस्त माना जाए और देश स्थायी दुश्मन नहीं होता, बस राष्ट्रहित ही स्थायी है। इस मुलाकात के कुछ ही महीनों बाद नेताजी भारत छोड़ कर अंग्रेजों को चकमा देते हुए निकल गए।
सावरकर की सलाह का ही योगदान था कि सुभाष चंद्र बोस ने ‘आज़ाद हिंद फ़ौज का पुनर्गठन किया और उसमें जान फूँकी। भगत सिंह के चाचा अजित सिंह भी अंग्रेजों की सेना में विद्रोह कराने के लिए वीर सावरकर की मदद कर रहे थे। खुद भगत सिंह ने लिखा था कि वीर सावरकर विश्व-बंधुत्व में यकीन रखने वाले बहादुर हैं। उन्होंने अपनी डायरियों में 6 बार वीर सावरकर की पुस्तक ‘हिन्दू पदपादशाही’ से उद्धरण लिया है। इतिहासकारों के मुताबिक सरदार भगत सिंह वीर सावरकर की राष्ट्रभक्ति और स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका से किस कदर प्रभावित थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सरदार भगत सिंह ने वीर सावरकर द्वारा 1857 के स्वतंत्रता संग्राम पर लिखी गयी किताब ‘1857- इंडिपेंडेंस समर ‘ का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित करवाया था और इसे अन्य क्रांतिकारियों को बांटा भी था।
भगत सिंह के सावरकर के प्रति क्या विचार थे इसका एक उदाहरण कलकत्ता से प्रकाशित होने वाली मतवाला मैगज़ीन में लिखे उनके लेख में मिलता है। जहाँ 15 नवंबर और 22 नवंबर 1924 को प्रकाशित अंक में सरदार भगत सिंह लिखते हैं कि ‘विश्वप्रेमी वह वीर है जिसे भीषण विप्लववादी, कट्टर अराजकतावादी कहने में हम लोग तनिक भी लज्जा नहीं समझते – वही वीर सावरकर। विश्वप्रेम की तरंग में आकर घास पर चलते-चलते रुक जाते कि कोमल घास पैरों तले मसली जाएगी।’ यह लेख सरदार भगत सिंह ने बलवंत सिंह के छद्म नाम से लिखा गया था।
वह कांग्रेस ही थीं, जिसने वीर सावरकर को महात्मा गाँधी की हत्या में फँसाने की साजिश रची। जबकि वीर सावरकर का स्पष्ट मानना था कि अराजकतावादी गतिविधियों का सहारा लेना विदेशी शत्रु के खिलाफ तो ठीक है, लेकिन अपने ही देश के लोगों के खिलाफ ये रास्ता नहीं आजमाया जा सकता। जिस राष्ट्र के लिए उन्होंने जीवन खपा दिया, उसी देश में उन्हें जेल में ठूँस दिया गया। पहले अंग्रेजों से यातनाएँ मिलीं, फिर नेहरू सरकार में प्रताड़ना।वीर सावरकर इन चीजों से काफी टूट गए थे। उदय माहुरकर ने एक बार बड़ी बात लिखी है कि बाबासाहब भीमराव आंबेडकर ने सावरकर के वकील और ‘हिन्दू महासभा’ के नेता भपोतकर से दिल्ली में गुप्त मुलाकात कर के कहा था कि उन्हें लगता है कि सावरकर के खिलाफ केस कमजोर है और वो बरी होंगे। उन्होंने मजबूती से मुकदमा लड़ने को प्रेरित किया। आंबेडकर 2 बार अदालत में भी सुनवाई के दौरान पहुँचे, एक बार अपनी पत्नी के साथ।
अब बताइए, क्या राहुल गाँधी कभी वीर सावरकर बन सकते हैं? ऐसा व्यक्ति, जिनसे सुभाष चंद्र बोस सलाह लें, ऐसा व्यक्ति, जिनसे भगत सिंह प्रेरणा लें, ऐसा व्यक्ति, जिनकी सुनवाई में आंबेडकर अपनी पत्नी के साथ पहुँचें, एक ऐसे व्यक्ति, जिनके साथ महात्मा गाँधी वैचारिक बहस करते हों, एक ऐसे व्यक्ति, जिनसे जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री रहते इतना डर लगता है कि उनकी पेंशन रोक देते हैं, उन्हें जेल में डाल दिया जाता है। ज्ञात हो कि चित्रगुप्त ने ‘लाइफ ऑफ बैरिस्टर सावरकर’ नामक एक किताब लिखी थी। हमें ये भी विदित है कि किस तरह महात्मा गाँधी और जवाहरलाल नेहरू ने राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव को बचाने की चेष्टा नहीं की। जब क्रूर अंग्रेजों ने इन तीनों वीरों को फाँसी पर लटका दिया, तब सावरकर के रत्नागिरी स्थित आवास पर युवा बलिदानियों की याद में काला झंडा लगाया गया था। इससे पहले एक भगवा झंडा उनके घर की पहचान हुआ करता था।
वीर स्वरकार ने तीनों बलिदानियों के लिए एक कविता भी लिखी, जो महाराष्ट्र में काफी लोकप्रिय हुआ। 4 महीने बाद ‘श्रद्धानन्द’ पत्रिका में उन्होंने एक लेख के जरिए इन बलिदानियों को याद किया। कांग्रेस पार्टी को लगता है कि उन्हें गाली देकर पार्टी को मुस्लिमों के वोट मिल जाएँगे। सबसे बड़ी बात तो ये कि महाराष्ट्र में पार्टी की यूनिट ये सब बर्दाश्त करती है, चाटुकारिता के कारण कोई नेता आवाज़ नहीं उठाता। काकोरी प्रकरण में बलिदान हुए अशफाक उल्लाह खान की याद में भी वीर सावरकर ने एक लेख लिखा था। ऐसे वीर सावरकर पर राहुल गाँधी कीचड़ उछालते रहते हैं! आसमान पर थूकने का परिणाम क्या होता है, ये राहुल गाँधी को मालूम होना चाहिए।
राहुल सात जन्मों में भी सावरकर नहीं बन सकते सावरकर के खिलाफ टिप्पणी पर राहुल को सुप्रीम कोर्ट की फटकार
