संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल उठाते राहुल गांधी

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डॉ. आशीष वशिष्ठ (वरिष्ठ पत्रकार)
नवंबर 2024 में महाराष्ट्र चुनाव में करारी पराजय के बाद कांग्रेस और उसके कुछ सहयोगी दलों ने चीखना शुरू कर दिया था- ‘ईवीएम में भूत है, जो भाजपा को ही वोट भेजता है।’ अप्रैल 2025 को विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने अपने अमेरिका दौरे के दौरान बोस्टन में एक मीटिंग को संबोधित करते हुए महाराष्ट्र चुनाव का हवाला देते हुए, चुनाव पर बड़े सवाल उठाए थे। उन्होंने आरोप लगाया कि भारत में चुनाव आयोग ‘कंप्रोमाइज्ड’ है।
ताजा संदर्भ राहुल गांधी ने ‘मैच-फिक्सिंग महाराष्ट्र’ शीर्षक से 7 जून को एक लेख लिखा। ये कई अखबारों में छपा। इसमें उन्होंने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं और भाजपा ने सुनियोजित तरीके से चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित किया। यह कोई पहला ऐसा मौका नहीं है जब राहुल गांधी ने संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल उठया हो या फिर उन्हें कटघरे में खड़ा करने का काम किया हो। वो आदतन अक्सर ऐसा करते रहते हैं ।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 निर्वाचन आयोग को स्वतंत्र और स्वायत्त संस्था के रूप में स्थापित करता है जिसे संसद, राष्ट्रपति, विधानसभा और सभी निर्वाचित निकायों के चुनाव निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से संपन्न कराने का दायित्व दिया गया है। यह संस्था न तो कार्यपालिका के अधीन है और न ही किसी राजनीतिक दबाव में काम करती है। भारतीय निर्वाचन आयोग केवल एक प्रशासनिक निकाय नहीं बल्कि विवाद-निराकरण और मतदाता-विश्वास निर्माण की भी जिम्मेदारी निभाता है। आयोग मतदान प्रक्रिया को विश्वसनीय बनाने के लिए कई स्तर पर काम करता है।
राहुल गांधी सस्ती लोकप्रियता पाने के कुछ भी बयान देते हैं, पर तर्क और तथ्य की कमी होती है। इससे समाज में भ्रम फैलता है और लोकतांत्रिक प्रक्रिया कमजोर पड़ती है। विदेशी धरती पर जाकर वो देश का अपमान, मोदी सरकार की आलोचना और संवैधानिक संस्थाओं की निष्पक्षता पर सवाल उठाने का कोई अवसर चूकते नहीं हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी ने अमेरिका के नेशनल प्रेस क्लब में कहा कि ‘भारत में लोकतंत्र पिछले 10 सालों से टूटा (ब्रोकेन) हुआ था, अब यह लड़ रहा है।’ उनका यह कहना लोकतंत्र की मूल भावना पर ही सवाल उठाता है। खासकर तब जब भारत में लगातार चुनाव होते रहे हैं और सरकारें बदलती रहीं हैं। बीते 10-11 वर्षों में देश में कई ऐसी सरकारें बनी हैं, जिसे बीजेपी को हराने के बाद कांग्रेस को मौका मिला है। मतलब, अगर नतीजे राहुल और उनकी पार्टी के लिए अच्छे रहें तो लोकतंत्र ठीक है और नहीं तो वह ‘ब्रोकेन हो जाता है।
सितंबर 2023 में राहुल गांधी ने ब्रसेल्स में यूरोपियन यूनियन में कहा कि भारत में ‘फुल स्केल एसॉल्ट’ हो रहा है। उन्होंने भारतीय संस्थाओं की निष्पक्षता पर संदेह जताया। मई 2022 में लंदन में ‘आइडियाज फॉर इंडिया’ सम्मेलन में राहुल ने कहा कि भारत की संस्थाएं ‘परजीवी’ बन गई हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ‘डीप स्टेट’ (सीबीआई, ईडी) भारत को चबा रहा है। यहां ‘डीप स्टेट’ का मतलब सरकार के अंदर छिपे हुए ऐसे ताकतवर लोग हैं जो अपने फायदे के लिए काम करते हैं। यहां ‘डीप स्टेट’ का मतलब सरकार के अंदर छिपे हुए ऐसे ताकतवर लोग हैं जो अपने फायदे के लिए काम करते हैं। राहुल गांधी ने भारत की तुलना पाकिस्तान जैसे अस्थिर लोकतंत्र से भी कर दी।
2017 में ही अमेरिका में राहुल गांधी ने कहा कि भारत अब वह नहीं रहा जहां हर कोई कुछ भी कह सकता है। उन्होंने विदेश की धरती पर भारत में ‘फ्री स्पीच’ की स्थिति पर संदेह पैदा करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि भारत में सहनशीलता खत्म हो गई है। जबकि, हकीकत ये है कि राहुल गांधी संसद से लेकर बाहर तक जब जो जी में आता है, बयान देते रहे हैं और सरकार को छोड़ दें, शायद ही कोई संवैधानिक संस्था बची हो, जिस पर उन्होंने निशाना न साधा हो।
राहुल गांधी यह क्यों भूल जाते हैं कि भारतीय चुनाव आयोग ने ही वे चुनाव संपन्न करवाए हैं, जिनके दम पर वह आज विपक्ष के नेता पद पर बैठे हुए हैं। उनके परिवार के तीन-तीन सदस्य इन्हीं चुनावी प्रक्रियाओं का सहारा लेकर संसद में मौजूद हैं। यहीं की संवैधानिक संस्थाओं ने उन्हें इतनी राहत दी हुई है कि नेशनल हेराल्ड केस में गंभीर आरोपों के बावजूद वो और उनका मां सोनिया गांधी को जमानत मिली हुई है।
बीते कुछ वर्षों में राजनीतिक तौर पर भले ही भारत की चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठाने का चलन बन गया हो लेकिन भारत के चुनाव आयोग की प्रशंसा केवल देश के भीतर ही नहीं संयुक्त राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय चुनाव पर्यवेक्षकों और कई विदेशी सरकारों द्वारा भी की गई है। हार्वर्ड कैनेडी स्कूल के 2020 के एक अध्ययन में भारत के चुनाव आयोग को ‘वन ऑफ़ दी मोस्ट रोबस्ट इलेक्टोरल इंस्टीटूशन्स ग्लोबली’ (विश्व स्तर पर सबसे मजबूत चुनावी संस्थाओं में से एक) कहा गया। यही नहीं, 2014, 2019 और 2024 के आम चुनावों में भारत ने पूरी दुनिया को दिखाया कि तकनीक, प्रशिक्षण और जनता की भागीदारी के माध्यम से एक निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव संभव है।
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी से लिखित में तथ्यों की मांग की और चर्चा के लिए भी आमंत्रित किया है और अब यह दायित्व बनता है कि आरोप लगाने वाले नेता उन्हें उचित प्रक्रिया के अनुसार प्रस्तुत करें। हालांकि राहुल गांधी के पूर्व रिकार्ड के हिसाब से ऐसा लग नहीं रहा है कि वो चुनाव आयोग के सामने जाएंगे। इसके लिए उन्होंने अभिषेक सिंघवी, विवेक तन्खा जैसे बड़े वकीलों और पार्टी के अन्य नेताओं को रखा हुआ है। राहुल गांधी का काम सिर्फ आरोप लगाना है। अगर एजेंसी आरोपों को जवाब देना चाहती है तो वह सुनना उनका काम नहीं है। कमोबेश ऐसा ही आचरण उनका संसद में भी है। आरोप लगाकर, सामने वाले का पक्ष या जवाब सुनने की बजाय कोई नया आरोप लगाने की तैयारी में जुट जाते हैं। तथ्य और तर्क से उनका कोई लेना देना नहीं रहता।
नवंबर 2024 में विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस की ओर से इसी तरह के मुद्दे उठाए गए थे। आयोग ने 24 दिसंबर 2024 को कांग्रेस पार्टी को एक विस्तृत जवाब दिया था, जिसकी प्रति चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध है। इससे यह साफ जाहिर होता है कि राहुल गांधी इस अध्याय का पटाक्षेप नहीं चाहते हैं। उनकी पार्टी इस मामले को जिंदा रखना चाहती है ताकि आगे के चुनाव नतीजों को सुविधा को हिसाब से संदिग्ध बनाया जा सके। चुनाव आयोग ने बार-बार यह सिद्ध किया है कि वह किसी भी राजनीतिक दबाव, मीडिया उन्माद या सार्वजनिक सनसनी से परे केवल संविधान और मतदाता के प्रति जवाबदेह है। इसलिए आज जरूरत है कि हम आलोचना करें लेकिन तथ्यों पर करें। सवाल उठाएं लेकिन समाधान के साथ और सबसे अहम कि लोकतंत्र की मजबूती, सतत निगरानी और निष्पक्षता बरकरार रखने के लिए बनायी गयी संस्थाओं का सम्मान बनाए रखें, ताकि आमजन की लोकतंत्र और उसकी संस्थाओं के प्रति आदर का भाव बना रहे।

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