प्रवीण बागी
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अहमदाबाद में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए जिस तरह की साफगोई दिखाई, उसे उनके किसी सामान्य बयान की तरह नहीं लिया जा सकता। सार्वजनिक तौर पर अपनी पार्टी के एक हिस्से को विरोधी पार्टी से मिलीभगत का दोषी बताना किसी भी नेतृत्व के लिए जोखिम भरा काम है। यह माना जाना चाहिए कि राहुल ने यह जोखिम सोच-समझ कर ही उठाया होगा। वे उन्हें पार्टी से अलग करने की बात कर रहे हैं।लेकिन इसके पीछे वास्तव में उनकी तैयारी कितनी है और वे क्या करना चाहते , यह जानने -देखने के लिए थोड़ी प्रतीक्षा करनी होगी।
राहुल गांधी के बयान की कुछ बातें खास तौर से ध्यान देने लायक हैं। उन्होंने पार्टी की विचारधारा को सर्वोच्च कसौटी बनाने की बात कहते हुए कार्यकर्ताओं से कहा कि इसे वे चुनावी हार-जीत से जोड़कर न देखें। उनका सारा फोकस इस बात पर है कि कांग्रेस सही अर्थों में भाजपा का विकल्प बने उसकी बी टीम न बने। अगर राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी को अपनी इस लाइन पर संगठित करते हुए कथित भाजपा समर्थक मन-मिजाज वाले नेताओं से पार्टी को मुक्त कर लेते हैं तो यह कांग्रेस पार्टी के लिए ही अच्छा होगा।
एक राजनीतिक दल के रूप में कांग्रेस को भी चुनाव का सामना करना है। ऐसे में उसका नेतृत्व चाहे या न चाहे उसके हर कदम, हर फैसले को चुनावी कसौटी से गुजरना ही होगा। किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए चुनाव ही सबसे बड़ा पैमान होता है। राहुल गांधी के ताजा बयान की भी सबसे बड़ी परीक्षा यही होगी कि दो साल बाद होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव में वह पार्टी के लिए कितना फायदेमंद या नुकसानदेह साबित होता है।
राहुल के साथ दिक्कत यह है कि उनपर भाजपा ने एक नाकाम नेता का ठप्पा लगा दिया है। वे किसी एक मुद्दे पर अधिक समय तक नहीं टिकते। मुद्दे बदलते रहते हैं। दशकों पहले पार्टी महासचिव के रूप में राहुल ने भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन को बदलने, उससे नए छात्रों को जोड़ने का जिम्मा लिया था, उसका क्या हश्र हुआ, वह सबके सामने हैं। कांग्रेस का छात्र संगठन कितना प्रभावी और शक्तिशाली बना यह देखने वाली बात है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि गुजरात कांग्रेस में अगर भाजपा के दलाल भरे हुए हैं तो इसके लिए जिम्मेवार कौन है ? और यह जानते हुए पार्टी अबतक चुप क्यों रही ?