आलोक मेहता, (पद्मश्री, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक)
इंदिरा राज के दौरान 1973 -74 में गुजरात में असंतुष्ट कांग्रेसी कहते थे कि मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल अपने भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों की आवाज़ बंद करने के लिए ‘प्रपंचवटी’ में षड्यंत्र करते थे। चिमनभाई के मंत्रणा कक्ष को यही नाम दिया गया। कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेता राहुल गांधी उसी गुजरात से सत्ता की लड़ाई का एलान करते हुए अपने सलाहकारों से मंत्रणा कर पार्टी में असंतुष्टों को हटाने की घोषणा कर रहे हैं और इसका कारण मंदिर, हिंदुत्व जैसे मुद्दों पर उन लोगों के कुछ विचार भारतीय जनता पार्टी से मिलते जुलते हैं। राहुल गाँधी ने अहमदाबाद के कांग्रेस महाधिवेशन से पहले और बाद में भी बड़े बदलाव और भाजपा खसकर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध अभियान के लिए आक्रामक भाषण दिए। इसलिए गुजरात के पुराने कांग्रेसी या पत्रकार प्रपंचवटी को याद कर रहे हैं। वे यह भी याद दिला रहे कि इसी गुजरात से चिमनभाई पटेल जैसे नेताओं के कारण कांग्रेस का पतन हुआ।
सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी के सलाहकार प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष भारत सिंह सोलंकी जैसे नेताओं को पार्टी से निकालना चाहते हैं? तभी तो कांग्रेस महाधिवेशन के दौरान उन्हें कहीं सामने नहीं आने दिया। राहुल के सेनापति वेणुगोपाल भले ही नए हैं लेकिन क्या सोनिया गाँधी और उनकी करीबी पुरानी सहयोगी अम्बिका सोनी तो जानती हैं कि भारत सिंह के पिता माधव सिंह सोलंकी ने न केवल गुजरात कांग्रेस में बल्कि केंद्र में विदेश मंत्री रहते बोफोर्स कांड सहित कई मामलों में गांधी परिवार की कितनी सहायता की थी।
महाधिवेशन में प्रियंका गांधी की अनुपस्थिति को भी प्रपंचकारियों का षड्यंत्र माना जा रहा है। उन्हें यह भय लगा रहता है कि प्रियंका के रहने पर लोग राहुल गाँधी के प्रति अधिक न आशा रखते हैं और न कोई आकर्षण। कई तो उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के नारे लगा देते हैं। सचमुच यह बहाना अजीब लगता है कि निजी विदेश यात्रा के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के कारण प्रियंका नहीं रही। क्या पार्टी के ऐतिहासिक महत्वपूर्ण सम्मेलन के लिए परिवार की एक जिम्मेदार सांसद अपने यात्रा टिकट नहीं बदल सकती हैं? यही नहीं जिस वक्फ कानून में संशोधन के पारित होने पर राहुल आग उगल रहे हैं, उस प्रस्ताव पर मतदान के समय उनकी ‘प्रिय बहन’ सांसद विरोध का वोट देने तक नहीं आई। वहां तो बड़ा भाई ही प्रतिपक्ष का नेता है तो क्या प्रियंका भी सरकारी कानून से सहमत रही हैं ? तो क्या उन पर भी अनुशासन कार्रवाई हो सकती है ? कांग्रेस की कोशिश गुजरात की धरती से भारतीय जनता पार्टी, विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधी चुनौती देने की रही है।
पिछले महीने राहुल गांधी गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में थे, तब उन्होंने कांग्रेस पार्टी के कुछ नेताओं पर भाजपा के लिए काम करने का आरोप लगाया था। राहुल गांधी ने अधिवेशन में दिए अपने भाषण में कहा कि कांग्रेस दलित, मुस्लिम व ब्राह्मण को साधती रही और अति पिछड़ा जातियां (ओबीसी) हमसे दूर चली गईं। यह और बात है कि एक समय कांग्रेस का नारा था कि न जात पर-न पात पर, इंदिरा जी की बात पर, मुहर लगेगी हाथ पर।
ओबीसी को आरक्षण की सिफारिश करने वाले मंडल आयोग के विरोध में राहुल गांधी के पिता स्वर्गीय राजीव गांधी ने संसद में सबसे तीखा भाषण दिया था। आरक्षण का दायरा बढ़ाने के विरुद्ध इंटरव्यू दिए थे। धीरे धीरे पिछड़े, दलित, आदिवासी और मुस्लिम कांग्रेस से दूर होते गए और क्षेत्रीय पार्टियों में चले गए। वहीँ ब्राह्मण क्षत्रिय और वणिक समुदाय राम मंदिर आंदोलन के बाद भाजपा के साथ अधिक जुड़ते चले गए। जहां-जहां क्षेत्रीय दल जैसे समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, द्रमुक, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी सत्ता में आए, वहां मुस्लिम कांग्रेस से छिंटक गया। हालांकि, मुस्लिमों को दोबारा अपने साथ लाने की कांग्रेस की कोशिशें तेज हो रही हैं। राहुल गांधी कह रहे हैं कि मुस्लिम हितों को लेकर वो पीछे नहीं हटेंगे। यह और बात है कि यह कोशिशें उसके सहयोगी दलों को रास नहीं आ रही हैं। जम्मू कश्मीर के अनुच्छेद ३७० को ख़त्म करने, नागरिकता संशोधन कानून और अब वक्फ संशोधन कानून पर कांग्रेस का रुख देश के बहुसंख्यकों को रास नहीं आया है।
पिछले दिनों संपन्न प्रयागराज महाकुंभ और सद्गुरु के कार्यक्रम में शामिल होने पर जिस तरह से कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार की पार्टी के अंदर से आलोचना हुई, उसने भी कांग्रेस को लेकर बहुसंख्यकों को निराश किया। अहमदाबाद अधिवेशन प्रतीक के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल स्मृति स्थल पर हुआ और उनका नाम लेकर भाजपा संघ पर हमले किए गए लेकिन गुजरात में ही सरदार पटेल के लिए बने विश्व के सबसे बड़े ‘स्टैचू ऑफ यूनिटी ‘को देखने आज तक राहुल गांधी नहीं गए हैं।
कांग्रेस के नेता स्टैचू ऑफ यूनिटी पर जाने से परहेज करते हैं, क्योंकि इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बनवाया है। सरदार पटेल की विरासत को अपने हाथों से जाता देख कांग्रेस परेशान भी है। गुजरात में पिछले तीन दशक से कांग्रेस पार्टी सत्ता से बाहर है। विगत् विधानसभा चुनाव में तो उसका अब तक का सबसे निराशाजनक प्रदर्शन रहा था। लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को बहुत अधिक सफलता गुजरात में नहीं मिली, लेकिन राहुल गांधी को शायद लग रहा है कि गुजरात के रास्ते वह देश की सत्ता को पुनः हासिल कर सकते हैं। शायद राहुल गांधी गुजरात से नरेंद्र मोदी को सीधी चुनौती देकर अपने कथित विपक्षी गठबंधन के सहयोगियों को बताना चाहते हैं कि वो गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में हैं।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि राहुल गाँधी और उनकी प्रपंच चौकड़ी संसद से सड़क तक जिन अम्बानी, अडानी समूहों के विरुद्ध लगातार गंभीरतम हमले कर रही है, वे गुजराती ही हैं और उनके औद्योगिक समूहों से लाखों लोगों को रोजगार मिल रहा है और उनकी कंपनियों में करोड़ों रुपयों के शेयर भी लगे हुए हैं। यही नहीं अन्य उद्योगपति भी इस तरह की दबावी राजनीति से विचलित हैं। कांग्रेस की राजनीति को जानने वाले क्या यह भूल सकते हैं कि इन्ही अम्बानी अडानी , टाटा, बिरला, डालमिया, हिंदुजा समूहों ने ही कांग्रेस को अधिकाधिक मदद की, फंडिंग की, देश विदेश में बचाया।
आखिरकार मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेता के परिवार ही तो इन समूहों से कांग्रेस को सहायता दिलाते थे। वह तो गनीमत है कि वे पुराने बहीखातों के राज नहीं खोल रहे हैं। मुस्लिम नेताओं में गुलाम नबी आज़ाद जैसे दिग्गज राहुल टीम से तंग आकर बाहर गए। सबसे वफादार अहमद पटेल की बेटी मुमताज को पिछले चुनाव में टिकट तक नहीं दिया और सीट केजरीवाल पार्टी को दे दी। बिहार में इसी साल चुनाव है, लेकिन पुराने कांग्रेसी नेता या कार्यकर्त्ता क्या तेजस्वी की पालकी उठाने को तैयार होंगे?
बिहार उत्तर प्रदेश आदि में वेणुगोपाल क्या किसी एक चुनाव क्षेत्र में किसी को जितवा सकते हैं? दक्षिण में राजीव की हत्या में लिट्टे का साथ देने के आरोप तो सोनिया गाँधी की कांग्रेस ने लगाए और नरसिंह राव को सहित पार्टी तुड़वा दी और हरवा दी। अब राहुल को उसी द्रमुक प्रिय है, लेकिन क्या दिल दिमाग से उसका साथ देंगें। इसलिए ‘प्रपंचवटी” से राहुल के सिंहासन का रास्ता कैसे निकलेगा?
प्रपंचवटी से राहुल गाँधी कांग्रेस को सत्ता में लाने का दिवा स्वप्न
