राहुल का जेन जेड और विद्यार्थी परिषद

"छात्रसंघ चुनावों से निकला नया भारत का संदेश!"

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शशि सिन्हा

(वरिष्ठ पत्रकार )
हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय छात्र संघ (एचसीयू) चुनाव में सात वर्षों बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की धमाकेदार जीत ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि यह संगठन देश के विश्वविद्यालयी राजनीति में अपनी पैठ लगातार गहरी करता जा रहा है। अध्यक्ष से लेकर खेल सचिव तक, सभी छह पदों पर एबीवीपी की विजय केवल चुनावी आँकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह युवाओं के मनोविज्ञान और उनके राजनीतिक झुकाव का भी दर्पण है।
दिल्ली विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय, गुवाहाटी और पटना विश्वविद्यालय से लेकर अब हैदराबाद विश्वविद्यालय तक, एबीवीपी की बढ़ती लोकप्रियता यह स्पष्ट कर रही है कि युवाओं का भरोसा लगातार इस संगठन पर मजबूत हो रहा है। यह वही युवा वर्ग यानि ‘जनरेशन ज़ेड’ है जिससे सरकार के विरोध में खड़े होने का आह्वान कांग्रेस नेता राहुल गांधी बार-बार कर रहे हैं। लेकिन जमीन पर तस्वीर उलट दिखाई देती है क्योंकि युवा वर्ग कांग्रेस समर्थित छात्र संगठन एनएसयूआई की बजाय एबीवीपी पर भरोसा जता रहे हैं।
देखा जाये तो आज के छात्र केवल रोजगार या डिग्री की तलाश में नहीं हैं, वे स्थिरता, अवसर और सांस्कृतिक आत्मविश्वास चाहते हैं। एबीवीपी इन्हीं तीन स्तंभों पर अपनी राजनीति गढ़ रही है। इसके एजेंडे में जहाँ एक ओर शैक्षणिक सुधार और अवसरों की माँग है, वहीं दूसरी ओर भारतीय संस्कृति और परंपराओं पर गर्व करने का भाव भी है। यही कारण है कि देश भर में बड़ी संख्या में छात्र इसे अपना प्रतिनिधि मानने लगे हैं।
हम आपको याद दिला दें कि राहुल गांधी ने हाल ही में कई मंचों से युवाओं को सरकार की नीतियों के खिलाफ खड़ा होने का आह्वान किया था। उनका मानना था कि जनरेशन ज़ेड वर्तमान शासन से निराश है और बदलाव चाहता है। लेकिन एबीवीपी की लगातार होती जीत इस दावे को खारिज करती है। दरअसल, युवा विरोध की बजाय सकारात्मक विश्वास दिखा रहे हैं— वह सरकार की नीतियों में भरोसा जता रहे हैं और उसी के अनुरूप एबीवीपी को आगे बढ़ा रहे हैं।

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एबीवीपी के विजय रथ के आगे बढ़ते जाने की घटना को राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो कहा जा सकता है कि विश्वविद्यालयों में एबीवीपी की जीतें केवल छात्र राजनीति तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह आने वाले समय में राष्ट्रीय राजनीति में दक्षिणपंथी विचारधारा की गहरी जड़ों का संकेत देती हैं। साथ ही राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए यह परिणाम गंभीर चिंता का विषय हैं। उनकी लगातार हार यह दर्शाती है कि उनका संदेश युवाओं तक पहुँच नहीं पा रहा है। कांग्रेस की ओर से जिस वर्ग को ‘बाग़ी’ कहकर प्रस्तुत किया गया, वह वर्ग स्थिरता और अवसरों की तलाश में राष्ट्रवादी एजेंडे को समर्थन दे रहा है।
दूसरी ओर, यह भी समझना होगा कि एबीवीपी का विस्तार केवल चुनाव जीतने तक सीमित नहीं है। यह संगठन छात्रों के साथ निरंतर संवाद करता है, उनकी समस्याओं को उठाता है और उन्हें सांस्कृतिक-सामाजिक गतिविधियों से जोड़ता है। यही सक्रियता इसे अन्य छात्र संगठनों की तुलना में कहीं अधिक प्रासंगिक और आकर्षक बना देती है। युवाओं के लिए यह केवल एक राजनीतिक मंच नहीं, बल्कि अपने सपनों और आकांक्षाओं को व्यक्त करने का साधन बनता जा रहा है।
बहरहाल, आज की छात्र राजनीति भविष्य की राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय कर रही है। एबीवीपी की लगातार सफलताएँ संकेत देती हैं कि आने वाला भारत युवाओं के उस वर्ग के हाथों में होगा, जो राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक गर्व और अवसरों के लिए संघर्ष जैसे मूल्यों पर विश्वास करता है। राहुल गांधी का युवाओं को विपक्षी राजनीति की ओर मोड़ने का प्रयास विफल दिखाई देता है, क्योंकि वास्तविकता यह है कि युवा स्थिरता और स्पष्ट दृष्टि की ओर आकर्षित हैं। कहा जा सकता है कि एबीवीपी की यह यात्रा केवल संगठन की विजय नहीं है, बल्कि यह उस विश्वास की जीत है जो भारत का नया युवा वर्ग एक स्थिर, आत्मविश्वासी और अवसरों से परिपूर्ण भारत में देखना चाहता है।

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