हर साल की तरह इस बार भी दशहरे के अवसर पर पटना का ऐतिहासिक गाँधी मैदान रंग-बिरंगी रोशनी, उल्लास और भीड़ के जोश से गूंज उठा। हज़ारों लोग अपनी आँखों में उमंग लिए वहाँ पहुँचे थे, ताकि वे बुराई के प्रतीक रावण के दहन का भव्य नज़ारा देख सकें। दशहरे का यह पर्व केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव भी है जो अच्छाई की बुराई पर जीत का संदेश देता है।
गाँधी मैदान में उमड़ी भीड़ का उत्साह
सुबह से ही गाँधी मैदान में रौनक देखने लायक थी। बच्चे हाथों में गुब्बारे लिए उत्साहित थे, महिलाएँ पारंपरिक परिधानों में सजी थीं और युवा मित्रों संग इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बनने आए थे। रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण के विशालकाय पुतले मैदान में खड़े थे। लोगों की निगाहें घड़ी की सुइयों पर टिकी थीं, जैसे ही शाम ढलनी शुरू हुई, हजारों आँखें उस क्षण की प्रतीक्षा कर रही थीं जब पुतलों में आग लगेगी और लपटों के बीच से अच्छाई की जीत का संदेश गूंजेगा।
लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था।
अचानक बदली मौसम की तस्वीर
जब रावण दहन अपने अंतिम चरण में था, तभी आसमान काले बादलों से घिर गया। तेज़ हवाओं के साथ मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। चंद मिनटों में ही मैदान की चहल-पहल पानी में भीगकर धीमी पड़ने लगी। आयोजकों ने बारिश थमने का इंतज़ार किया, लेकिन हालात बिगड़ते गए।
भीगते-भीगते रावण का पुतला धीरे-धीरे गलने लगा। जिस पुतले को आग की लपटों में जलते देखने के लिए हजारों लोग खड़े थे, वह बिना दहन हुए ही बारिश की मार से धराशायी हो गया। लोगों की उम्मीदों और खुशियों पर मानो पानी फिर गया।
भीड़ की मायूसी
हालाँकि बारिश के बावजूद लोग मैदान छोड़ने को तैयार नहीं थे। हर किसी को उम्मीद थी कि जैसे ही बारिश थमेगी, पुतले को फिर से खड़ा करके दहन किया जाएगा। लेकिन जब यह साफ हो गया कि रावण का पुतला जलाया नहीं जा सकता, तो भीड़ में मायूसी छा गई।
बच्चों के चेहरे पर निराशा साफ झलक रही थी, बुज़ुर्ग लोग इस दुर्लभ घटना को ‘ग्रहण’ बता रहे थे, और युवा निराश मन से लौट रहे थे। इस बार पटना के लोग रावण दहन के उस अद्भुत दृश्य से वंचित रह गए, जिसका इंतज़ार वे पूरे साल करते हैं।
दशहरे का महत्व और संदेश
दशहरा भारत का वह पर्व है जो हर किसी को यह याद दिलाता है कि चाहे बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हो, अंततः अच्छाई की ही जीत होती है। रावण दहन केवल एक परंपरा नहीं है, यह हमारी संस्कृति की गहराई में बसा संदेश है। इस दिन हम पुतले जलाकर प्रतीकात्मक रूप से अपने अंदर छिपी बुराइयों – जैसे क्रोध, ईर्ष्या, घृणा और लोभ – को भी समाप्त करने का संकल्प लेते हैं।
पटना के इस आयोजन में भले ही रावण दहन नहीं हो सका, लेकिन लोगों का उत्साह यह साबित करता है कि त्योहार का असली महत्व केवल पुतला दहन में नहीं, बल्कि उस संदेश में है जो यह पर्व हमें देता है। बारिश ने भले ही आग बुझा दी हो, पर अच्छाई की जीत का दीपक हर किसी के दिल में जलता रहा।
अधूरी रही परंपरा, लेकिन बना यादगार पल
गाँधी मैदान का यह दृश्य लोगों के लिए अविस्मरणीय बन गया। यह पहली बार था जब बारिश की वजह से रावण दहन अधूरा रह गया। आने वाले सालों में लोग जब दशहरे की बातें करेंगे तो 2025 का यह साल ज़रूर याद करेंगे, जब रावण जलकर नहीं, बल्कि गलकर गिर गया था।
पटना का यह दशहरा इस बार अधूरा जरूर रहा, लेकिन इसने लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि त्योहार का असली आनंद केवल परंपराओं में नहीं, बल्कि उस सामूहिक भावना और एकता में है, जो हमें एक साथ जोड़ती है। बारिश ने भले ही रावण दहन का उत्सव रोक दिया हो, मगर लोगों के दिलों में अच्छाई की जीत का विश्वास और भी प्रबल हो गया।