रामबहादुर राय, जिनका नाम पत्रकारिता और सामाजिक सक्रियता में आज भी आदर्श के रूप में लिया जाता है, अपने जीवन को संगठन, आंदोलन और लेखन के तीन मुख्य आयामों में विभाजित कर चुके हैं। पद्म भूषण और पद्मश्री जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से अलंकृत, राय साहब की जीवन यात्रा केवल व्यक्तिगत उपलब्धियों का प्रतीक नहीं है, बल्कि वह एक समय और समाज की वास्तविकताओं का दर्पण भी हैं।
पत्रकारिता में अनूठी पहचान
4 फरवरी 1946 को उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिले में जन्मे श्री राय ने पत्रकारिता के क्षेत्र में शुचिता और पवित्रता का आदर्श प्रस्तुत किया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर छात्र राजनीति में सक्रिय होने के बाद उन्होंने जयप्रकाश आंदोलन में भाग लिया। उनका पत्रकार के रूप में पहला बड़ा मुकाम दैनिक ‘आज’ में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम पर आंखों देखा वर्णन था। इसके बाद युगवार्ता फीचर सेवा, हिन्दुस्तान समाचार संवाद समिति और ‘जनसत्ता’ जैसी प्रमुख संस्थाओं से जुड़कर उन्होंने संवाददाता से लेकर मुख्य संपादक तक का सफर तय किया।
उनकी पत्रकारिता केवल सूचना तक सीमित नहीं रही; उन्होंने राजनीति, समाज और संविधान के गहन विश्लेषण को जन-जन तक पहुंचाया। उनके स्तंभ और फीचर्स ने पाठकों को सत्य और निष्पक्षता की परंपरा से जोड़ा।
संगठनकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता
पत्रकारिता के अलावा, रामबहादुर राय सामाजिक संगठन और शिक्षण संस्थाओं से जुड़े रहे। प्रज्ञा संस्थान, युगवार्ता ट्रस्ट, दशमेश एजुकेशनल चेरिटेबल ट्रस्ट, इंडियन नेशनल कमीशन फॉर यूनेस्को और भानुप्रताप शुक्ल न्यास जैसी संस्थाओं में उनके योगदान ने उनके बहुआयामी व्यक्तित्व को और मजबूत किया।
लेखन में गहनता और संवाद
राय साहब की प्रमुख किताबों में ‘आजादी के बाद का भारत झांकता है’, ‘भारतीय संविधान: एक अनकही कहानी’, ‘रहबरी के सवाल’, ‘मंजिल से ज्यादा सफर’ और ‘काली खबरों की कहानी’ शामिल हैं। ये पुस्तकें न केवल राजनीतिक और सामाजिक विश्लेषण प्रस्तुत करती हैं, बल्कि पाठक को संवाद के माध्यम से सोचने और समझने का अवसर भी देती हैं।
उनकी किताबों की सबसे बड़ी विशेषता उनकी सहजता और संवाद शैली है, जिससे जटिल विषय भी सरल और पठनीय बन जाते हैं। प्रो. कृपाशंकर चौबे की किताब ‘रामबहादुर राय: चिंतन के विविध आयाम’ उनके जीवन और योगदान को उजागर करती है।
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राजनीतिक दृष्टि और मूल्यांकन
रामबहादुर राय ने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और वीपी सिंह जैसी हस्तियों के साथ संवाद करके उनके अनुभवों और दृष्टिकोण को साझा किया। उन्होंने जेबी कृपलानी, जयप्रकाश नारायण और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक बालासाहब देवरस के विचारों को पाठकों तक पहुंचाया।
उनकी पत्रकारिता में सत्य, निष्पक्षता और साहसिक दृष्टिकोण हमेशा प्रमुख रहे हैं। भ्रष्टाचार और राजनीति के भीतर झूठे प्रचार के बावजूद उनकी कलम हमेशा सच्चाई की दिशा में रही।
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जीवन का संदेश और प्रेरणा
रामबहादुर राय का जीवन दर्शाता है कि सच्चाई, संघर्ष और समर्पण से ही समाज और पत्रकारिता में स्थायी बदलाव लाया जा सकता है। उनके अनुभव हमें यह सिखाते हैं कि पत्रकारिता केवल सूचना का माध्यम नहीं, बल्कि लोक जागरण और नैतिक नेतृत्व का साधन भी है।
उनकी मौजूदगी आज भी हिंदी पत्रकारिता की उस परंपरा की याद दिलाती है, जो बाबूराव विष्णुराव पराड़कर से लेकर प्रभाष जोशी तक पहुंची। उनके जीवन और कार्य से पाठक प्रेरित होते हैं और समाज में सकारात्मक बदलाव के लिए प्रेरणा लेते हैं।
कुल मिलाकर, रामबहादुर राय का जीवन एक प्रेरक संगीत और संघर्ष की कहानी है। पत्रकार, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक है। प्रो. कृपाशंकर चौबे की नई पुस्तक इस बहुआयामी व्यक्तित्व को समझने और उनके योगदान को सम्मानित करने का श्रेष्ठ माध्यम है।
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