समीक्षा बैठक की रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को सौंपी गई
नई दिल्ली, एजेंसी: लोकसभा चुनाव में भाजपा की घटी सीटों को लेकर लगातार समीक्षा हो रही है। राज्यों की समीक्षा बैठकों की पूरी जानकारी केंद्र से साझा की जा चुकी है। पार्टी से जुड़े सूत्रों के अनुसार देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में खिसके भाजपा के जनाधार को लेकर हुई समीक्षा बैठकों में तीन मुद्दे पर यह आम सहमति बनी कि अगर इनको वक्त से पहले समझ लिया गया होता, तो प्रदेश में यह स्थिति नहीं होती। ठीक इसी तरह महाराष्ट्र में भी हुई हार की समीक्षा में कई महत्वपूर्ण और चौंकाने वाली जानकारियां सामने आई हैं।
इसमें पहला और महत्वपूर्ण बिंदु यही है कि दोबारा मिले सांसदों के टिकट पर विधायकों की न तो राय मिल सकी और न उनकी ओर से उतनी मदद की गई। नतीजा यह हुआ कि लोकसभा के प्रत्याशी चुनाव तो लड़ते रहे, लेकिन उनके क्षेत्र में आने वाले कई विधायकों ने अंदरखाने मजबूती से विरोध किया। पार्टी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, हारी हुईं सभी लोकसभा सीटों पर इस बात का आकलन किया जा चुका है कि किस विधायक ने पार्टी के प्रत्याशी का विरोध किया।
सूत्रों के मुताबिक, यह भी जानने की कोशिश की गई कि विरोध करने की वजह क्या रही। क्या तत्कालीन सांसद या प्रत्याशी का व्यवहार उस तरह का नहीं रहा, जिससे उसकी पार्टी के जन प्रतिनिधि मदद करते। स्थानीय जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता के साथ-साथ उनका प्रत्याशी का मदद न करना पार्टी के लिए नुकसानदायक रहा। इसके अलावा महत्वपूर्ण बात यह भी निकल कर सामने आई कि जिस तरीके से संविधान के मामले पर विपक्ष ने दलितों को एकजुट किया, उसमें पार्टी अपना पक्ष मजबूती से नहीं रख सके।
समीक्षा रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि दलित वोट बैंक संविधान के मामले पर भाजपा से छिटकता रहा। इस मामले में जो डैमेज कंट्रोल शुरू हुआ वह अंत तक संभाला नहीं जा सका। इसके साथ ही ओबीसी वोटर में भी मजबूत सेंधमारी हुई। इस सेंधमारी का नतीजा यह हुआ कि पार्टी से जुड़े कार्यकर्ता अन्य दलों की ओर चले गए। यह भी जिक्र है कि अफसरशाही के निरंकुश होने से पार्टी को खासा नुकसान हुआ। इसे लेकर लगातार स्थानीय जनप्रतिनिधियों की ओर से अलग-अलग मौकों पर आवाज भी बुलंद की जाती रही थी। जानकारी के मुताबिक, दो दिन पहले भारतीय जनता पार्टी की कोर कमेटी की बैठक लखनऊ में हुई थी। उसके बाद तैयार की गई समीक्षा रिपोर्ट को केंद्रीय नेतृत्व के साथ साझा भी किया गया है। पार्टी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में हार वजहों के कारणों पर अगली रणनीति तैयार की जाने लगी है।
पार्टी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी के कमजोर प्रदर्शन की प्रमुख वजहों में सहयोगी दलों के संगठनात्मक स्तर के ढांचे का मजबूत न होने की बात सामने आई है। सूत्रों का कहना है कि शिवसेना और एनसीपी ने मजबूती से उनके साथ चुनाव तो लड़ा, लेकिन लोकसभा चुनाव होने तक दोनों दल पूरे प्रदेश में अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने की प्रक्रिया से गुजर रहे थे। कहा यही जा रहा है कि प्रत्याशियों के चयन से लेकर सहयोगियों की मदद में तो कोई कमी नहीं हुई। पार्टी से जुड़े सूत्रों की मानें तो भारतीय जनता पार्टी के लिए भी यह चुनाव अपने संगठनात्मक स्तर को बूथ स्तर पर मजबूत करने के लिहाज से मजबूती से लड़ा जा रहा था। जिसका फायदा भारतीय जनता पार्टी को बूथ स्तर पर मिलता हुआ दिखाई दे रहा है।