Patna: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनजर तेजस्वी यादव ने एक बड़ी और विवादित घोषणा की है। उन्होंने कहा कि जिन परिवारों में कोई सरकारी नौकरी नहीं है, उनके एक सदस्य को सरकारी नौकरी मिलेगी, और सरकार बनने के 20 दिन के अंदर इस पर नया बिल लाया जाएगा।
हालांकि, इस घोषणा के तुरंत बाद भाजपा ने इसे नामुमकिन बताया। भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री ऋतुराज सिन्हा ने आंकड़ों के साथ स्पष्ट किया कि यह वादा लोगों को भ्रमित करने वाला है।
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BJP का तर्क – यह गणित और हकीकत में संभव नहीं
ऋतुराज सिन्हा ने बताया कि बिहार में कुल 1.87 करोड़ बिजली कनेक्शन वाले परिवार हैं। इनमें लगभग 22 लाख सरकारी कर्मचारी हैं। तेजस्वी यादव का दावा है कि शेष 1.65 करोड़ परिवारों को सरकारी नौकरी दी जाएगी।
भाजपा का तर्क है कि इतने परिवारों को 20 दिन में सरकारी नौकरी देना सिर्फ नामुमकिन नहीं, बल्कि असंभव है।
ऋतुराज सिन्हा ने कहा:
“बिहार के चीफ सेक्रेटरी से लेकर चपरासी तक यदि सभी कर्मचारियों की संख्या जोड़ दें, तो भी कुल आंकड़ा लगभग 23 लाख ही बनता है।
और यह वादा केवल भ्रम फैलाने के लिए किया गया है।”
उन्होंने तेजस्वी यादव की शिक्षा और व्यवहार पर भी कटाक्ष किया। उनका कहना है कि यह वादा केवल झूठ बोलने और जनता को भ्रमित करने का प्रयास है।

राजनीति में इस घोषणा का असर और जनता की प्रतिक्रिया
तेजस्वी यादव की यह घोषणा चुनावी रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है। उनका उद्देश्य स्पष्ट है – गरीब और बेरोजगार वर्ग के बीच लोकप्रियता बढ़ाना।
लेकिन भाजपा ने इसे जनता को भ्रमित करने वाला और अवास्तविक वादा करार दिया।
ऋतुराज सिन्हा ने यह भी कहा कि प्रशांत किशोर का फोकस BJP पर है, और उनका एजेंडा राजद को मजबूत करना है।
इसका मतलब यह हुआ कि जनसुराज पार्टी को वोट देने वाले लोग, BJP के अनुसार, “जंगलराज” को पुनः बिहार में वापसी दिलाने में योगदान देंगे।
Tejashwi के वादे का विश्लेषण – क्यों है यह असंभव?
1. बिहार में कुल परिवार: 1.87 करोड़
2. सरकारी कर्मचारी: लगभग 22 लाख
3. शेष परिवारों को नौकरी देने की संख्या: 1.65 करोड़
4. समय सीमा: 20 दिन
यह गणित दर्शाता है कि इतनी संख्या में सरकारी नौकरी देना वास्तव में असंभव है, चाहे केंद्र और राज्य मिलकर प्रयास करें।
भाजपा का कहना है कि यह “जनता को भ्रमित करने का राजनीतिक हथकंडा” है।
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निष्कर्ष – वादा बनाम हकीकत
बिहार चुनाव 2025 में तेजस्वी यादव की घोषणा ने सियासी माहौल गरम कर दिया है।
एक ओर यह वादा गरीब और बेरोजगारों के लिए आशा की किरण लग सकता है,
तो दूसरी ओर BJP इसे अवास्तविक और धोखाधड़ी भरा मानती है।
यह स्पष्ट है कि चुनाव में वादों और गणित के बीच संतुलन, जनता के लिए निर्णायक साबित होगा।
क्या लोग सत्य और संभव के बजाय सपनों और वादों को महत्व देंगे?
यह चुनाव का सबसे बड़ा सवाल है।
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