सनातन धर्म में श्रावण मास (सावन) का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है। यह महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और इसी महीने में उनकी आराधना करने से भक्तों को शीघ्र फल की प्राप्ति होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण मास की शुरुआत आषाढ़ पूर्णिमा के अगले दिन से होती है और यह मास श्रावण पूर्णिमा तक चलता है। यह महीना बारिश का होती है। प्रकृति हरी-भरी हो जाती है और वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है।
बता दें कि भगवान शिव को त्रिदेवों में संहारक की भूमिका दी गई है। शिव का रूप तप, वैराग्य और करुणा का प्रतीक है। वे सृष्टि के आरंभ से ही निर्गुण और सगुण रूप में पूजे जाते रहे हैं। शिव की पूजा से सभी पापों का नाश होता है, जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है, रोग और शोक दूर होते हैं, और जीवन में शांति, सुख, वैवाहिक समृद्धि, संतान सुख एवं मनोकामना पूर्ति होती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब देवता और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो चौदह रत्नों के साथ कालकूट विष भी निकला। यह विष इतना प्रचंड और घातक था कि उससे तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। तब समस्त देवताओं और ऋषियों के आग्रह पर भगवान शिव ने इस विष को अपनी कंठ में धारण किया जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और वे ‘नीलकंठ’ कहलाए। विष के प्रभाव को शांत करने के लिए देवताओं ने उन्हें गंगाजल अर्पित किया और बेलपत्र, धतूरा, आक आदि से उनका अभिषेक किया।
मान्यता है कि यह समुद्र मंथन श्रावण मास में ही हुआ था। इसलिए इस मास में शिवजी का जलाभिषेक, बेलपत्र अर्पण, उपवास, रुद्राभिषेक और महामृत्युंजय मंत्र का जाप अत्यंत फलदायक माना गया है। धर्म और साधना का चातुर्मास का विशेष समय यह मास तप, उपवास, ब्रह्मचर्य और संयम का प्रतीक है। साधक इस मास में विशेष रूप से शिव पुराण, रुद्राष्टाध्यायी, शिव तांडव स्तोत्र आदि का पाठ करते हैं।
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